भाजपा सरकार के कामकाज का मूल्यांकन करें, तब स्पष्टतौर वह किसानों के प्रति संवेदनशील दिखायी देती है। किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य मिले और उनका जीवन स्तर बढ़े, इसे लेकर सरकार सजग रहती है। इसी संदर्भ में केंद्र सरकार ने खरीफ और मानसून में उगायी जानेवाली फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा कर दी है। उल्लेखनीय है कि इस वर्ष के लिए घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य पिछले कई वर्षों के मुकाबले सबसे अधिक है। यानी इस बार किसान को उसकी उपज का और बेहतर मूल्य मिल सकेगा। वर्ष 2023-24 के लिए 17 खरीफ की फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य को मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति में स्वीकृति दी गई, जिसकी अध्यक्षता स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने की। जिन फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा की गई है, उनमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण फसल धान है, जिसकी बुवाई अधिकतर राज्यों में शुरू हो चुकी है। धान का समर्थन मूल्य 2,183 रुपये प्रति क्विंटल घोषित किया गया है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 143 रुपये अधिक है। प्रमुख दालों के समर्थन मूल्य में भी उल्लेखनीय वृद्धि की गई है। दालों में देखें तो मूंग के न्यूनतम समर्थन मूल्य में सबसे अधिक 10.4 प्रतिशत की वृद्धि की गई है। जब से प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार ने मोटे अनाज को लेकर उत्साहजनक वातावरण बनाया है, तब से बाजरा की माँग बढ़ गई है। बाजरा की खेती करनेवाले किसानों को समुचित लाभ मिल सके, इसलिए बाजरा पर न्यूनतम समर्थन मूल्य उत्पादन की लागत से 82 प्रतिशत अधिक घोषित की गई है, जो किसानों को खूब प्रोत्साहित करेगी। वहीं, अरहर के लिए 58, सोयाबीन के लिए 52 और उड़द के लिए लागत की तुलना में 51 प्रतिशत अधिक न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा की गई है। स्मरण हो कि मोदी सरकार ने किसानों से वायदा किया था कि न्यूनतम समर्थन मूल्य को लागत से कम से कम डेढ़ गुना रखा जाएगा। न्यूनतम समर्थन मूल्य के संबंध में हालिया घोषणा को देखें तो किसानों से किए गए अपने वायदे को निभाने में सरकार सफल रही है। उपरोक्त फसलों के अलावा अन्य फसलों पर भी लागत के मुकाबले न्यूनतम समर्थन मूल्य कम से कम 50 प्रतिशत अधिक रखा गया है। खाद्य मंत्री पीयूष गोयल ने कहा है कि इस वर्ष जो कीमतें तय की गई हैं, उससे किसानों को लाभ होगा क्योंकि अभी खुदरा मुद्रास्फीति की दर, यानी महंगाई घट रही है। बहरहाल, अब सरकार के सामने चुनौती है कि उसने जो मूल्य घोषित किया है, उससे कम पर किसान की फसल न बिके। दरअसल मंडियों में बिचौलियों का कब्जा है, जो सरकार की मंशा को धरातल पर उतरने में बाधक बनते हैं। ये बिचौलिए किसानों की फसल का गलत मूल्यांकन करते हैं। इसके साथ ही मंडी में फसल लेकर आनेवाले किसानों को लंबी-लंबी कतारों में खड़ा कर दिया जाता है, उससे भी परेशान होकर किसान कम दाम में अपनी फसल बेचकर लौटने को मजबूर होता है। सरकार को चाहिए कि वह मंडी में किसानों से उपज खरीदी की प्रक्रिया पर कोई व्यवस्थित एवं पारदर्शी निगरानी तंत्र लागू करे। यदि सरकार इसमें सफल होती है तो वह किसानों की बेहतरी के लिए किए जा रहे प्रयासों को और प्रभावशाली बना सकती है, जिसके परिणाम और अधिक सुखद होंगे।
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