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मेवात की हिंसा : जेहादी मानसिकता सेकुलर चुप्पी और कठोर कार्रवाई की अपेक्षा

देश की राजधानी दिल्ली से लगभग 83 किलोमीटर की दूरी पर हरियाणा के मेवात क्षेत्र के मुस्लिम बाहुल्य जिले नूंह में सोमवार को मुसलमानों ने जिस प्रकार की हिंसा की है, उसको लेकर सरकार से लेकर हिंदू समाज को चिंतित होना चाहिए। इस आक्रमण को लेकर आज नहीं चेते तो देश को भविष्य में गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। नूंह में प्रतिवर्ष निकलने वाली ‘धार्मिक ब्रजमंडल यात्रा’ एवं हिन्दुओं के आस्था के केन्द्र पाण्डव कालीन प्राचीन ‘नल्लहडं शिव मन्दिर की धार्मिक यात्रा’ पर मुसलमानों ने भीड़ ने अचानक आक्रोशित होकर हमला नहीं किया है, अपितु यह सुनियोजित हमला है। कई दिन से इसकी तैयारी चल रही थी, यह तथ्य सामने आ रहे हैं। मुस्लिम समुदाय से आनेवाले नेताओं ने हिंदुओं को धार्मिक यात्रा नहीं निकालने की धमकी दी। भारत में सक्रिय कट्टरपंथी तत्वों ने तो लोगों को भड़काया ही, अमेरिका से संचालित इंडियन अमेरिकी मुस्लिम काउंसिल ने ट्वीट करके भी मेवात क्षेत्र के मुस्लिम समाज को भड़काने के काम किया। इसके अलावा सोशल मीडिया पर सांप्रदायिक नारों के साथ पोस्ट किए जा रहे थे। यानी कहना होगा कि यह योजनापूर्वक और जानबूझकर किया गया हमला है। इसके लिए विभिन्न स्तर पर पूर्व तैयारी की गई। जिसका ही परिणाम था कि हिंदू श्रद्धालुओं पर इस्लामिक जेहाद मानसिकता के समूहों ने न केवल पथराव किया अपितु आगजनी भी की और गोलियां भी चलाईं। हमलावरों ने पुलिसकर्मियों को भी नहीं छोड़ा। यह विचार करना चाहिए कि उत्पाती मुसलमानों के मस्तिष्क पर कौन–सा विचार हावी था कि उनके मन में पुलिस का भी भय नहीं रहा, पुलिस के जवानों को ही अपनी गोलियों का निशाना बनाने से उपद्रवी चूके नहीं? उल्लेखनीय है कि मेवात में मुस्लिम कट्टरता के कई घटनाक्रम पूर्व में भी सामने आते रहे हैं। मुस्लिम आबादी बढ़ने के साथ ही मेवात में हिंदुओं का रहना मुश्किल हो गया है। मुस्लिम समुदाय पर एक आरोप लगता है कि जहां इनकी आबादी का बाहुल्य हो जाता है, वहां अन्य धार्मिक समुदाय का रहना मुश्किल हो जाता है। मेवात के घटनाक्रम और वर्तमान हमला इस आरोप को पुनः पुष्ट कर रहा है। मेवात से जिस प्रकार से हिंदू पलायन और महिलाओं पर अत्याचार के दृश्य सामने आ रहे हैं, उससे जम्मू–कश्मीर में 1990 में जो कुछ हुआ उसकी भयानक स्मृतियां ताजा हो उठी हैं। मुस्लिम बाहुल्य कश्मीर घाटी से भी इसी प्रकार हिंदुओं को पलायन के लिए मजबूर किया गया। दुर्भाग्यपूर्ण है कि मेवात से आ रहे भयावह दृश्यों पर कांग्रेस से लेकर अन्य विपक्षी दलों में वैसी मुखरता नहीं दिखाई है, जैसी कि वे अन्य मामलों में दिखाते हैं। क्या यह माना जाए कि यहां मार खानेवाला हिंदू है और हमलावर मुस्लिम, इसलिए तथाकथित सेकुलर खेमे ने चुप्पी साध रखी है? हरियाणा में भाजपा की सरकार है इसके बाद भी कांग्रेस उसे मुखर होकर घेर नहीं रही है? हिंदू महिलाओं और सम्पूर्ण समाज पर मेवात में हो रहे अत्याचार पर संसद में बात हो, इसकी मांग भी कांग्रेस नहीं उठा रही है? क्या मेवात में जो कुछ हुआ, उस पर संसद में चर्चा नहीं होनी चाहिए? क्या इस हिंसा के पीछे के वास्तविक कारणों की जड़ में नहीं जाना चाहिए? मणिपुर में भी विपक्षी दल और उनके समर्थक बुद्धिजीवी तब तक चुप रहे, जब तक कि हिंदू मैतई समुदाय पिटता रहा, इसी तरह मेवात में भी वे हिंदुओं के नुकसान पर चुप हैं। उल्लेखनीय है कि 1990 में कश्मीर घाटी में हिंदू महिलाओं पर हुए नृशंस अपराधों पर भी यह वर्ग चुप रहा था। बहरहाल, राज्य सरकार को नूंह के हमले के साजिशकर्ताओं पर कठोर कार्रवाई करनी चाहिए। कार्रवाई में बहुत देर न हो इसलिए तेज गति से जांच करके सख्त संदेश उपद्रवियों को देना चाहिए। कठोर कार्रवाई से उपद्रवियों को संदेश तो जाता ही है, समाज के बाकी समुदायों के मन में भी एक विश्वास पैदा होता है। विश्वास है कि हरियाणा की सरकार आवश्यकता पड़ने पर केंद्र से सहयोग लेकर उपद्रवियों को उनके अपराध की सजा दिलाएगी।

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