बीते दिनों अरुणाचल प्रदेश के स्थानों के बदलने की व्यर्थ करतूत करने वाले विस्तारवादी मानसिकता के कम्युनिस्ट देश चीन को भारत की ओर से स्पष्ट संदेश दिया गया है कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न अंग है और भारत की इंचमात्र भूमि भी कोई हथिया नहीं सकता है। भारत के गृहमंत्री अमित शाह ने अरुणाचल प्रदेश पहुँचकर ही चीन को उसकी घटिया हरकत का सशक्त उत्तर दिया है। भारत के इस उत्तर से चीन भी तिलमिला गया है। भारत की ओर से चीन को इस तरह उत्तर देने का यह पहला मामला है, जब चीन की विस्तारवादी हरकत का विरोध करने के लिए देश के गृहमंत्री ने सीमावर्ती क्षेत्र में प्रवास किया। चीन को भी यह बात अच्छी प्रकार समझ लेनी चाहिए कि न तो भारत उस दौर का है और न ही यहाँ का नेतृत्व उस तरह का है, जिसने चीन को अतिक्रमण का खुला अवसर दिया और यह कहते हुए अपनी जमीन पर कब्जा होने दिया कि “वह बंजर भूमि है। वहाँ घास का एक तिनका भी नहीं उगता है”। दु:ख की बात यह है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपनी ही भूमि के प्रति यह विचार संसद में रखे थे। तब कांग्रेस के ही सांसद एवं मंत्री महावीर त्यागी ने पंडित नेहरू को आईना दिखाया था। उन्होंने अपना गंजा सिर पंडित नेहरू को दिखाया और कहा- “यहां भी कुछ नहीं उगता तो क्या मैं इसे कटवा दूं या फिर किसी और को दे दूं”। मातृभूमि की एक-एक इंच जमीन के लिए हुई इस बहस का जिक्र आज भी होता है। दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि इसके बाद भी हमारे तत्कालीन नेतृत्व एवं उसके बाद की सरकारों ने कोई सीख नहीं ली, जिसका लाभ चीन ने उठाया और वह लगातार भारत की जमीन पर अतिक्रमण करता रहा। हैरानी होती है जब आज कांग्रेस के नेता सीमावर्ती क्षेत्रों में चीन द्वारा जमीन कब्जाने के संदर्भ में भाजपानीत केंद्र सरकार पर हमला बोलते हैं। कई बार ऐसा प्रतीत होता है कि कांग्रेस अपने अपराध छिपाने के लिए, जो आरोप उस पर हैं, उन आरोपों को वह दूसरों के माथे पर चिपका देना चाहती है। ताकी भविष्य में नये माथे पर चिपकाए गए नये टीके की ही बात हो, उसके शासनकाल में क्या हुआ, उसे लोग भूल जाएं। परंतु कांग्रेस का दुर्भाग्य है कि इस पारदर्शी समय में उसके यह सब प्रयास विफल हैं। जनता स्पष्ट देख पा रही है कि अपनी सीमाओं की रक्षा को लेकर नयी सरकार और नये भारत का दृष्टिकोण किस तरह बदला हुआ है। आज की सरकार खुलकर अपनी सेना के साथ खड़ी है। अवैध घुसपैठ एवं अतिक्रमण को रोकने के लिए हमलावर देश के सामने छाती तानकर खड़ी है। चीन ने जहाँ से भी भारत की जमीन पर कब्जाने का प्रयास किया, उसे वहीं मुंह की खानी पड़ी है। जब उसने कागजों में अरुणाचल प्रदेश के नाम बदलने की ओछी कवायद की तो उसका जवाब अन्य प्रकार से देने के साथ ही गृहमंत्री ने अरुणाचल प्रदेश में स्थित भारत के पहले गाँव किबिथू में पहुँचकर दिया। चीन अब भी न समझे, तो यह उसकी मूर्खता होगा। भारत कोई कमजोर या दब्बू राष्ट्र नहीं है, जो चीन की गीदड़ भभकी या उसकी ताकत से डरकर, उसके अतिक्रमण के विरुद्ध कुछ बोलेगा नहीं। यह भारत है, साफ संदेश देता है। गृहमंत्री अमित शाह ने ठीक ही कहा कि हम शांति से रहना चाहते हैं लेकिन अपनी जमीन पर एक इंच भी कब्जा नहीं होने देंगे। चीन को अपनी विस्तारवादी मानसिकता और भारत के साथ जोर-जबरदस्ती छोड़कर शांति एवं सह-अस्तित्व के संबंध बनाकर आगे बढ़ना चाहिए। दोनों देशों के बीच मित्रता बढ़ेगी, तो दोनों देशों का भला होगा।
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