बिहार में सरकार सत्ता के नशे में मदमस्त हो गई है। जिस तरह अंग्रेज सरकार विरोध-प्रदर्शन को कुचलने के लिए बल का प्रयोग करती थी, बीते दिन बिहार की राजधानी पटना में वैसा ही दृश्य दिखायी दिया। जब बिहार सरकार की पुलिस बेरहमी से भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं एवं वरिष्ठ नेताओं पर लाठी भांज रही थी। पुलिस के लाठीचार्ज में भाजपा के जिला महामंत्री विजय कुमार सिंह की मौत भी हो गई। जरा सोचिए, पुलिस की लाठी में इतनी बेरहमी कहाँ से आई होगी? इस लाठीचार्ज में विधानसभा में नेताप्रतिपक्ष विजय कुमार सिन्हा घायल हो गए और भाजपा के सांसद जनार्दन सिंह सिग्रीवाल का सिर फट गया जबकि उन्हें वाय प्लस श्रेणी की सुरक्षा मिली हुई है। साफ है कि पुलिस को खुलकर बर्बरता के खुले निर्देश थे। अन्यथा पुलिस की यह हिम्मत नहीं थी कि इतने बड़े नेताओं पर इस कदर लाठी भांजती। अकसर पुलिस लाठीचार्ज भीड़ को तितर-बितर करने के लिए करती है लेकिन पटना में पुलिस के इरादे कुछ और ही दिख रहे थे। पुलिसवाले भाजपा कार्यकर्ताओं के पीछे दौड़-दौड़कर लाठी का प्रहार कर रहे है। सत्ता की ठसक में जिस प्रकार नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की सरकार ने भाजपा कार्यकर्ताओं पर लाठी का प्रहार किया है, यह प्रहार केवल भाजपा कार्यकर्ताओं पर नहीं अपितु लोकतंत्र पर है। संविधान और लोकतंत्र की रक्षा के नाम पर सत्ता के लिए एकजुट हो रहे नेताओं ने बिहार में दिन-दहाड़े हुई लोकतंत्र की हत्या पर कुछ नहीं बोला है। सबने अपने मुंह सिल लिए हैं। इस घटना ने एक बार फिर विपक्षी गठजोड़ के लोकतंत्र बचाने के ढोंग की पोल खोल दी है। जरा सोचिए कि यदि इस प्रकार की घटना किसी भाजपा शासित राज्य में हो जाती तब यही दल ‘लोकतंत्र की हत्या’ का ढोल किस तरह पीट रहे होते? विपक्षी दलों के साथ ही तथाकथित सेकुलर बुद्धिजीवी, पत्रकार, यूट्यूबर और लेखक भी हाय-तौबा मचाने में कहीं आगे होते परंतु अभी किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही है। इस दोहरे आचरण ने ही जनता के सामने सब दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया है। पश्चिम बंगाल से लेकर बिहार तक और केरल से लेकर राजस्थान तक जिन राज्यों में कांग्रेस की छतरी के नीचे खड़े हो रहे राजनीतिक दलों की सरकारें हैं, वास्तव में वहीं लोकतंत्र खतरे में दिखायी दे रहा है। इन राज्यों में विपक्ष को लोकतांत्रिक ढंग से प्रदर्शन करने का अधिकार भी छीना जा रहा है। वहीं, सबको याद है कि शाहीनबाग से लेकर तथाकथित किसान आंदोलन तक उग्र एवं अराजक प्रदर्शन पर भी भाजपा सरकार ने इस प्रकार की कार्रवाई नहीं की जबकि उस समय तो जनता की ओर से माँग आ रही थी कि अराजक हो रहे प्रदर्शनकारियों पर कड़ाई से कार्रवाई हो। इसके बाद भी भाजपा सरकार ने उन्हें प्रदर्शन करने के लोकतांत्रिक अधिकार से वंचित नहीं किया। इस अंतर को देश की जनता खुली आँखों से देख रही है। उसे साफ दिख रहा है कि जो राजनीतिक दल मोदी सरकार पर संविधान एवं लोकतंत्र विरोधी होने का आरोप लगा रहे हैं, वास्तव में वे ही सत्ता में आते ही तानाशाही रवैया अपना लेते हैं। इस बात का साक्षी इतिहास भी है और वर्तमान में भी दिखायी दे रहा है। पटना में हुई लोकतंत्र की हत्या के मामले को भाजपा को जोर-शोर से उठाना चाहिए। बिहार एक बार फिर से ‘जंगलराज’ के अंधकार में जाना नहीं चाहता है।
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