प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने अब तक के कार्यकाल में जापान के साथ अच्छे और नजदीकी संबंध विकसित किए हैं। आज की स्थिति में अंतरराष्ट्रीय पटल पर जापान हमारा विश्वसनीय सहयोग बन गया है। जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा के दो दिवसीय भारत दौरे से यह संबंध और प्रगाढ़ हुए हैं। नई दिल्ली में वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले और दोनों ने तकनीक से लेकर लघु उद्योग के क्षेत्र में आपसी सहयोग बढ़ाने की चर्चा की। हालांकि उनकी इस यात्रा को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आकार ले रहे अंतरराष्ट्रीय समीकरणों की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इस संबंध में जापानी प्रधानमंत्री किशिदा ने खुलकर अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत करके स्पष्ट संकेत भी दिए हैं। इसके साथ ही भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस संदर्भ में महत्वपूर्ण संदेश दिया है। यह संदेश दुनिया के लिए है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा- “भारत-जापान विशेष रणनीतिक और वैश्विक साझेदारी हमारे साझा लोकतांत्रिक मूल्यों और अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में कानून के शासन के प्रति सम्मान पर आधारित है। इस साझेदारी को मजबूत करना न केवल हमारे दोनों देशों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति, समृद्धि और स्थिरता को भी बढ़ावा देता है”। स्पष्ट है कि भारत भी हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की आक्रामकता को कुंद करने के लिए कूटनीतिक पहल कर रहा है। भारत और जापान, दोनों का साथ आना और इस मुद्दे पर समान दृष्टिकोण रखना, इस क्षेत्र के लिए आवश्यक है। उल्लेखनीय है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामकता पर जापान की दृष्टि शुरू से रही है और इसके खतरों को लेकर भी उसकी सतर्कता के संकेत मिलते रहे हैं। ध्यान रहे, वह जापान के तत्कालीन प्रधानमंत्री शिंजो आबे ही थे, जिन्होंने 2007 में भारतीय संसद को संबोधित करते हुए हिंद महासागर और प्रशांत महासागर में उभरती सामरिक चुनौतियों के साझेपन को रेखांकित करते हुए इनमें तालमेल की आवश्यकता बताई थी। अपने उस ऐतिहासिक भाषण में उन्होंने एशियाई लोकतांत्रिक देशों में सहयोग बढ़ाने की आवश्यकता बताते हुए विशेष दृष्टिकोण भी प्रस्तुत किया था, जो आगे चलकर क्वाड – भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के साझा मंच- के निर्माण का मुख्य आधार बना। याद रखें कि प्रधानमंत्री मोदी और जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे के संबंध बहुत सुलझे हुए थे। दोनों के आपसी संबंधों के कारण भी भारत-जापान के बीच एक नयी ऊर्जा देखी गई। बहरहाल, चीन को लेकर जापान की आशंकाओं ने तब और मजबूती मिली, जब पिछले वर्ष यूक्रेन पर हमले के ठीक पहले उसने रूस के साथ अपने रिश्तों को सभी सीमाओं से परे बताया। आश्चर्य नहीं कि जापान ने अपने हितों की सुरक्षा को लेकर औरों पर निर्भर रहने के बजाय अपनी क्षमता बढ़ाने का फैसला किया। प्रधानमंत्री किशिदा रक्षा पर खर्च दोगुना बढ़ाने की घोषणा कर चुके हैं। साफ है कि आने वाले समय की जियो-पॉलिटिक्स में हिंद-प्रशांत क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। जापान इसमें भारत के साथ कदम से कदम मिलाते हुए आगे बढ़ना चाहता है। यह दौर इस दृष्टिकोण से भी खास है कि जहां भारत जी-20 की अध्यक्षता कर रहा है, वहीं जी-7 देशों की अध्यक्षता जापान के पास है। किशिदा ने मई में हिरोशिमा में होने वाली जी-7 देशों की बैठक के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आमंत्रित किया है और प्रधानमंत्री मोदी उस आमंत्रण को स्वीकार भी कर चुके हैं।
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