कांग्रेस पर जनता का विश्वास इसलिए भी खत्म होते जा रहा है क्योंकि उनके नेताओं की कथनी और करनी में बड़ा-भारी अंतर है। कांग्रेस की ओर से बड़े जोर-शोर से एक जुमला उछाला जा रहा है- हम नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान खोल रहे हैं। परंतु कांग्रेस के नेता जिस प्रकार से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, हिन्दुत्व और राष्ट्रीय स्वयंसेवक सहित राष्ट्रीय विचार के संगठनों को लेकर नफरत प्रकट कर रहे हैं, उससे तो कांग्रेस के लिए भाजपा के नेताओं द्वारा दिया गया विश्लेषण अधिक उपयुक्त लगता है- ‘कांग्रेस नफरत का शॉपिंग मॉल है’। अभी हाल ही में, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रति अंधविरोध के चलते अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स से झूठी जानकारी पोस्ट की है, जिसको लेकर हिन्दू समाज आक्रोशित है। उनके विरुद्ध दर्ज करायी गई एफआईआर में शिकायतकर्ताओं ने कहा है कि झूठे तथ्यों के आधार पर कांग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्रद्धेय माधव सदाशिवराव गोलवलकर को अपमानित करने, समाज में जातीय एवं सांप्रदायिक वैमनस्यता फैलाने का प्रयास किया है। दिग्विजय सिंह के झूठ पर संघ की ओर से भी प्रतिक्रिया आई है। अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा कि “श्री गोळवलकर गुरुजी के संदर्भ में यह ट्वीट तथ्यहीन है तथा सामाजिक विद्वेष उत्पन्न करने वाला है।संघ की छवि धूमिल करने के उद्देश्य से झूठा फोटोशॉप्ड चित्र लगाया है।श्री गुरुजी ने कभी भी ऐसे नहीं कहा। उनका पूरा जीवन सामाजिक भेदभाव को समाप्त करने में लगा रहा”। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि मुख्यमंत्री जैसे संवैधानिक पद पर रह चुके नेता भी व्हाट्सएप पर प्रसारित झूठे एवं मानहानिपरक जानकारी को बिना पड़ताल के ही समाज के बीच प्रसारित कर देते हैं। कोई भी समझदार व्यक्ति उस पोस्टर को देखकर बता देगा कि यह एकदम फर्जी है लेकिन किसी के प्रति अपनी नफरत चरम पर हो तब सच कहाँ दिखेगा? जगत जानता है कि संघ के प्रति दिग्विजय सिंह का भाव सदैव नकारात्मक रहा है। वे अकसर संघ को लेकर नफरती बयान देते रहते हैं। कांग्रेस के नेताओं को बताना चाहिए कि दिग्विजय सिंह ने जो कहा है, वह मोहब्बत की बात है या फिर एक संगठन एवं विचार के प्रति घोर नफरत से भरी सोच? कांग्रेस बताए कि क्या उसने समाज में जातीय एवं सांप्रदायिक वैमनस्यता और सामाजिक समरसता के लिए जीवन समर्पित करनेवाले महान लोगों का अपमान करने के लिए झूठे तथ्य बेचने की दुकान खोल ली है? यूँ तो संघ कभी राजनेताओं की ओर से की जानेवाली बदजुबानी का जवाब देने में नहीं पड़ता है क्योंकि उसे पता है कि समाज को संघ की वास्तविक अनुभूति है। परंतु आक्रोशित सामाजिक एवं संघ के कार्यकर्ताओं द्वारा इस मामले में दिग्विजय सिंह के आपत्तिजनक एवं भ्रामक पोस्ट पर कार्रवाई की माँग उचित ही है। इस प्रकार के मिथ्या प्रचार को अनदेखा किया जाना सामाजिक सद्भाव के लिए घातक है। यह तो सत्य है कि दिग्विजय सिंह द्वारा प्रसारित पोस्ट में तथ्य और कथ्य, सब कुछ झूठ हैं। यहाँ तक कि श्रीगुरुजी की पुस्तक का नाम भी गलत है। अनेक कार्यकर्ताओं ने सही पुस्तक का लिंक देकर दिग्विजय सिंह को चुनौती दी है कि वे बताएं कि इस पुस्तक के किस पृष्ठ पर वे बातें लिखी हैं, जो उन्होंने अपनी पोस्ट में कही हैं। जाहिर है कि उन बातों का कोई अस्तित्व ही नहीं है। अब देखना होगा कि इस मामले में कांग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह की गति भी राहुल गांधी जैसी न हो जाए। राजनीतिक हल्कों में यह माना जाता है कि प्रारंभिक समय में दिग्विजय सिंह ही राहुल गांधी के राजनीतिक गुरु थे। बहरहाल, यह घटनाक्रम उन सब नेताओं के लिए सबक बनना चाहिए, जो बिना विचारे व्हाट्सएप पर आए कचरे को सार्वजनिक विमर्श में आगे बढ़ाकर सम्मानित व्यक्तित्व की मानहानि, समाज को भ्रमित करने और वैमनस्यता पैदा करने का काम कर बैठते हैं।
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