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उत्तरप्रदेश के निकाय चुनाव परिणाम के निहितार्थ

कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की पराजय के बाद से बड़ा विचित्र-सा दृश्य बना हुआ है। कांग्रेस का उत्साहित होना स्वाभाविक है, उसे कर्नाटक में लंबे समय बाद पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ है। परंतु अन्य विपक्षी दलों एवं उनके समर्थकों का उत्साह और प्रसन्नता थोड़ा हैरान करती है। यह गजब है कि भाजपा को हारते देख विपक्षी दल अपनी पराजय और भविष्य में आसन्न चुनौतियों को अनदेखा कर रहे हैं। कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के शोर में उत्तरप्रदेश के निकाय चुनाव परिणाम पर किसी ने बारीकी से ध्यान ही नहीं दिया है। उत्तरप्रदेश के निकाय चुनाव के परिणाम संकेत दे रहे हैं कि वहाँ कांग्रेस के बाद अब सपा और बसपा के लिए खतरे की घंटी बजने लगी है। उत्तरप्रदेश में अब भाजपा की जड़ें गहरी जम चुकी हैं। वहीं, आम आदमी पार्टी और एआइएमआइएम की धमक से समाजवादी पार्टी एवं बहुजन समाजवादी पार्टी की बुनियाद दरक रही है। निकाय चुनाव में भाजपा का खूब डंका बजा। भाजपा के सामने कांग्रेस सहित सपा-बसपा मुश्किल में नजर आई। इन दोनों राजनीतिक दलों के बरक्स निर्दलीय प्रत्याशियों एवं नये राजनीतिक दलों ने बेहतर प्रदर्शन किया। परिणाम का विश्लेषण करें तो स्पष्ट नजर आता है कि सपा-बसपा के लिए आआपा और असदुद्दीन ओवैसी की एआइएमआइएम पार्टी नई चुनौती बनकर खड़ी हो रही हैं। उत्तरप्रदेश के विभिन्न चुनावों में हाथ-पैर मार रही आआपा अबकी बार कुछ सीटों पर जीत से आनंदित है। आम आदमी पार्टी के प्रत्याशियों ने बिजनौर, अलीगढ़, मुरादाबाद, अमरोहा, अयोध्या और कौशांबी में जीत दर्ज की है। खासकर सपा नेता आजम खां के गढ़ रामपुर में नगर पालिका अध्यक्ष पद पर आआपा की सना खानम को जीत हासिल होना काफी कुछ कहता है। इसके साथ ही ओवैसी की पार्टी के एक प्रत्याशी ने भी यहां से जीत हासिल की है। निकाय चुनावों में सपा, बसपा और कांग्रेस के खाते में 17 नगर निगम क्षेत्रों में से एक पर भी जीत नहीं मिलना काफी चौंकाने वाला रहा। हाल यह है कि बड़े-बड़े दावे करने वाले सपा-बसपा के मुकाबले आम आदमी पार्टी ने ज्यादा ठीकठाक प्रदर्शन किया है। हालांकि मेयर सीट आप के खाते में नहीं आई है लेकिन इस बार कई वार्डों में आप के प्रत्याशी जीतने में कामयाब रहे हैं। यही रुख रहा तो अगली बार आप यूपी में बड़ा कमाल दिखा सकती है जो विपक्ष के खतरे की घंटी है। उत्तरप्रदेश में 3 नगर पालिका अध्यक्ष, 6 नगर पंचायत अध्यक्ष और 100 से अधिक वार्ड सदस्य आम आदमी पार्टी की ओर से चुनाव लड़कर जीतने में कामयाब रहे। निकाय चुनाव में जिस तरह से आआपा ने इस बार बड़े पदों पर प्रदर्शन किया है, उससे केजरीवाल की नजर में इस बार उत्तरप्रदेश प्रभारी और राज्यसभा सांसद संजय सिंह का कद भी बढ़ेगा। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आने वाले समय में आआपा इन जगहों पर दिल्ली मॉडल लागू करेगी जिसकी घोषणा वो पहले ही कर चुकी है। यदि इन जगहों पर आआपा पांच साल तक जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने में सफल रही तो निश्चित तौर पर अगले निकाय चुनाव में आआपा विपक्ष के लिए बड़ा खतरा बनकर उभरेगी। इसके साथ-साथ विधानसभा और लोकसभा चुनाव में भी विपक्षी दलों का स्थान आआपा ले सकती है। वहीं, एआइएमआइएम ने सपा की यादव-मुस्लिम राजनीति के समीकरण को बिगाड़ दिया है। अब मुसलमान इस पार्टी की ओर बढ़ रहे हैं। मुसलमानों की राजनीति करनेवाले ओवैसी की पार्टी मुस्लिम संप्रदाय को अपनी पार्टी लगने लगी है। उल्लेखनीय है कि उत्तरप्रदेश के निकाय चुनाव को 2024 के आमचुनाव के संदर्भ में सेमी फाइनल की तरह देखा जा रहा था, जिसमें भाजपा ने तो अपना प्रदर्शन शानदार रखा लेकिन सपा-बसपा अपनी जमीन खोती हुई दिख रही हैं। अगर विपक्ष ऐसे ही भाजपा के अंध विरोध के चलते अपनी पराजय को अनदेखा कर, भाजपा की हार का जश्न मनाता रहा, तब उसकी यह मानसिकता उसे ही भारी पड़ सकती है।

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