अपने दर्द को समेटकर वर्षों से न्याय की आस में बैठे कश्मीरी हिन्दुओं की अब सुध ली जाने लगी है। कश्मीर घाटी में फिर से हिन्दुओं को बसाने के प्रयासों के साथ ही अब 90 के दशक में कश्मीरी हिन्दुओं की हत्याओं की जाँच कराने का निर्णय लिया गया है। जम्मू-कश्मीर राज्य जांच एजेंसी (एसआईए) ने न्यायमूर्ति नीलकंठ गंजू की हत्या के मामले की जाँच शुरू कर दी है। अगर यह जाँच सही दिशा में आगे बढ़ती है, तब कई नये तथ्य सामने आ सकते हैं। हत्याओं के पीछे की मानसिकता को एक बार फिर से उजागर किया जा सकता है। जो लोग एक-दो अपराधियों को हिन्दुओं के नरसंहार का जिम्मेदार बताकर संगठित इस्लामिक हिंसा पर पर्दा डालने की कोशिश करते हैं, उन्हें भी आईना दिखाया जा सकता है। यह भी स्मरण रखें कि पिछले वर्ष जब ‘कश्मीर फाइल्स’ फिल्म ने दर्दनाक सच को दिखाने का एक प्रयास किया, तब प्रगतिशीलों ने किस प्रकार फिल्म को प्रोपेगेंडा सिद्ध करने का प्रयास किया। जबकि फिल्म निर्माता विवेक अग्निहोत्री ने ऐसे सभी लोगों को खुली चुनौती दी कि वे उनकी फिल्म का एक फ्रेम भी झूठा साबित कर दें, तो वे फिल्म बनाना छोड़ देंगे। आज तक कोई उन फिल्म में दिखाए गए एक भी तथ्य को झुठलाने आगे नहीं आया है। परंतु इस सबके बाद भी प्रगतिशील खेमे के बुद्धिजीवी, लेखक एवं इतिहासकार पूरी निर्लज्जता के साथ यह सिद्ध करने का प्रयास करते हैं कि आतंकवादियों ने कुछ ही हिन्दुओं की हत्याएं कीं जबकि जिन्होंने कश्मीर में अत्याचार और राक्षसी हिंसा का सामना किया, उन हिन्दुओं के अनुसार उस दौर में 700 से अधिक हिन्दुओं की हत्या की गई थी। हालांकि, सरकारी आंकड़ों में यह संख्या 229 है। कुल 182 मामले दर्ज किए गए हैं, जिसमें कश्मीरी पंडितों की हत्या संबंधी दो मामले में ही नामजद रिपोर्ट दर्ज हैं। किसी भी मामले में अब तक आरोप पत्र जारी नहीं किया गया है। संगठित हिंसा का भय इतना अधिक था कि लोग आरोपियों का नाम लेने से भी डर रहे थे। इसलिए आज यह जाँच आवश्यक हो जाती है ताकि बाकी सत्य सामने आ जाए। सरकार की इस पहल से हिन्दुओं में यह उम्मीद जगी है कि लोगों की ओर से दिए जाने वाले साक्ष्यों से अन्य हत्याकांड से भी राज खुल सकता है। कश्मीरी हिंदुओं में इसे विश्वास बहाली की पहल के रूप में देखा जा रहा है। यह किसी को नहीं भूलना चाहिए कि जम्मू-कश्मीर में जिस स्तर की इस्लामिक हिंसा का सामना हिन्दुओं ने किया, उसका वर्णन करना अत्यंत कठिन है। इस्लामिक चरमपंथियों ने नृशंसता की सभी हदें पार कर दी थीं। हिन्दुओं को एक कतार में खड़ा करके गोलियों से भूना गया। महिलाओं की अस्मिता को लूटा गया। सरे राह नग्न किया गया। उन्हें आरा मशीन पर बीच से चीर दिया गया। अपने ही पति के रक्त से सने चावल खिलाए गए। उनके साथ यह सब किन्हीं अपरिचित गुंडों ने नहीं अपितु वर्षों से साथ रह रहे पड़ोसियों ने, उनके विद्यार्थियों ने, उनके ही खेत और घर में काम करनेवाले मजदूरों ने, नृशंस अपराध को अंजाम दिया गया। ‘हिन्दुओं कश्मीर खाली कर दो और अपनी महिलाओं को यहीं छोड़ जाओ’ जैसे पर्चे चिपकाकर उन्होंने अपनी कबीलाई और घिनौनी मानसिकता को प्रकट किया। बहरहाल, जब राज्य जाँच एजेंसी ने कश्मीर में हिन्दुओं की हत्याओं की जाँच शुरू कर दी है, तब विश्वास जागा है कि 90 के दशक में कश्मीर घाटी में जो कुछ हुआ, उसके पीछे की मानसिकता तो उजागर होगी ही, भविष्य के लिए भी सबक मिल सकता है।
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