मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान जैसे बड़े राज्यों के साथ ही तेलंगाना और मिजोरम के विधानसभा चुनावों की विधिवत घोषणा करके निर्वाचन आयोग ने चुनावी बिगुल फूंक दिया है। हालांकि राजनीतिक दल तो पहले से ही मैदान में उतर चुके थे और उन्होंने अपनी रणनीति को अमलीजामा पहनाना शुरू भी कर दिया था। विधानसभा चुनाव के मैदान को जीतने के लिए भारतीय जनता पार्टी विशेष रूप से सक्रिय दिख रही है। कांग्रेस के मुकाबले भाजपा अधिक आक्रामक मुद्रा में दिखायी दे रही है। कांग्रेस सहित अन्य राजनीतिक दलों के मुकाबले उसने सबसे पहले अपने प्रत्याशियों की घोषणा की। सोमवार को भी जैसे ही चुनाव आयोग ने निर्वाचन कार्यक्रम की घोषणा की, उसके लगभग तीन घंटे बाद ही भाजपा ने मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के लिए विधानसभा चुनावों के लिए अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी। ऐसा करके भाजपा ने संदेश देने का प्रयास किया है कि उसकी तैयारी कांग्रेस सहित अन्य राजनीतिक दलों से ज्यादा बेहतर है। एक-दो अपवाद छोड़ दें तो भाजपा में नेताओं में समन्वय है इसलिए वह इतनी जल्दी उम्मीदवारों की घोषणा कर पा रही है। जबकि कांग्रेस में अभी मंथन ही चल रहा है। दिल्ली में शीर्ष नेतृत्व की बैठक होने के बाद भी कांग्रेस अब तक अपने एक भी उम्मीदवार का नाम घोषित नहीं कर पायी है। एक तरह से कहना होगा कि भाजपा ने मनोवैज्ञानिक बढ़त लेना शुरू कर दिया है। हालांकि यह देखना होगा कि भाजपा की यह रणनीति मतदाताओं पर कितना असर डालती है। परंतु तो इतना तो तय है कि कांग्रेस के प्रत्याशियों के मुकाबले भाजपा के प्रत्याशियों को जनता के साथ संवाद स्थापित करने के लिए अधिक समय मिल गए है। मध्यप्रदेश की बात करें तो पूर्व में घोषित सभी प्रत्याशी जनता के बीच पहुँच चुके हैं। उन्होंने छोटे-छोटे समूहों में लोगों से बातचीत प्रारंभ कर दी है। आगामी योजनाएं भी बना ली हैं। चुनाव प्रचार के लिए पर्याप्त समय मिलने से भाजपा के प्रत्याशियों को लाभ मिलना स्वाभाविक ही दिखायी देता है। बहरहाल, छत्तीसगढ़ को छोड़कर सभी राज्यों में एक ही चरण में मतदान होना है। भाजपा और मिजोरम में 17 नवंबर को मतदान है, राजस्थान में 23 नवंबर, तेलंगाना में 30 नवंबर और छत्तीसगढ़ में 7 एवं 17 नवंबर को मतदान होना है। जबकि चुनाव का परिणाम 3 दिसंबर को आएगा। परिणाम किसके पक्ष में आएगा, अब यह सभी राजनीतिक दलों की तैयारियों पर निर्भर करेगा। इसके साथ ही चुनाव प्रचार के दौरान कौन-सा दल जनता का विश्वास जीत पाएगा, यह भी बहुत महत्व रखता है। चुनाव प्रचार के दौरान भी दृश्य बदलते हैं। आनेवाले दिनों में पाँचों राज्यों में चुनावी मैदान एक तरह से ‘चंदन चाचा के बाड़े’ जैसा रहेगा, जहाँ एक से बढ़कर एक धुरंधर राजनीतिक पहलवान मैदान में होंगे और अपने दांव-पेंच चलेंगे। इनमें कुछ पहलवान तो ऐसे भी हैं, जो बड़ी कुश्तियां जीत चुके हैं, जिनके बड़े ठाठ-बाट रहे हैं। बहरहाल, सभी राजनीतिक दलों से अपेक्षा यही है कि राजनीति का एक स्तर बना रहे। चुनाव प्रचार के दौरान एक-दूसरे को कमतर दिखाने के लिए निचले स्तर पर हम न गिरें। प्रचार में राजनीतिक शुचिता बनी रहे। संवाद में मर्यादा का ध्यान रहे। प्रतिद्वंद्वी की लकीर छोटी दिखाने के लिए जरूरी नहीं कि मर्यादा विहीन राजनीति की जाए, हम अपनी लकीर को बड़ा कैसे दिखा सकते हैं, इस पर जोर रहे तो अधिक अच्छा रहेगा। देश की जनता अपने नेताओं से यही अपेक्षा कर रही है कि वे स्वस्थ उदाहरण प्रस्तुत करें।
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