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आपातकाल की मानसिकता

कांग्रेस के नेतृत्व में बने आईएनडीआई गठबंधन की ओर से देश के 14 पत्रकारों की सूची जारी करते हुए उनका बहिष्कार किया गया है। इस गठबंधन में शामिल राजनीतिक दलों के प्रवक्ता अब से इन पत्रकारों से संवाद नहीं करेंगे। आईएनडीआई गठबंधन के इस निर्णय की भारी आलोचना हो रही है। केवल उनके समर्थक पत्रकार और बुद्धिजीवी ही मीडिया विरोधी इस कदम की सराहना कर रहे हैं। असल में कांग्रेस सहित अन्य राजनीतिक दल ऐसे ही पत्रकार चाहते हैं जो उनकी जी-हुजूरी करें। वे नहीं चाहते कि उनकी राज्य सरकारों से सवाल पूछे जाएं। वे नहीं चाहते कि उनके नेता जब हिन्दू धर्म के बारे में कुछ भी अनाप-शनाप बोलें, तब उनसे सवाल पूछे जाएं। वे नहीं चाहते कि देश की प्रतिष्ठा को धूमिल करनेवाले उनके बयानों पर चर्चा हो। जो कल तक प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक दिखाकर भारत की पत्रकारिता की स्वतंत्रता की बात करते थे, वे ही आज चाहते हैं कि पत्रकार उनसे तीखे सवाल नहीं पूछें। उल्लेखनीय है कि कांग्रेस के मुख्य नेता राहुल गांधी ने अपने विदेश दौरे पर भारतीय मीडिया के संदर्भ में कहा था कि भारत में मीडिया को स्वतंत्रता नहीं है। मेरा मानना है कि लोकतंत्र की मजबूती के लिए मीडिया की स्वतंत्रता आवश्यक है। उन्होंने यह भी कहा था कि मीडिया को आलेचना करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। नेताओं को अपनी आलोचना सुनने की क्षमता रखनी चाहिए। परंतु उनके नेताओं का व्यवहार क्या है? वे सब पत्रकारों से लड़ रहे हैं। पत्रकारों पर आक्षेप लगा रहे हैं। इसका मतलब तो यही हुआ कि कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों के नेताओं को आलोचना तो दूर, वे पत्रकार भी पसंद नहीं जो उनके मन की बात न कहें। विपक्ष को एक बात अच्छी प्रकार से समझ लेनी चाहिए कि मीडिया का काम विपक्ष या सत्ता पक्ष का भौंपू बनना नहीं है। मीडिया स्वतंत्रत है। जिसकी भी सोच और नीति देश एवं समाज के विरुद्ध होगी, उसकी आलोचना मीडिया करेगा। विपक्ष की गलतियों, भारत और हिन्दू विरोधी विचारों पर सवाल न पूछे जाएं, यह संभव नहीं है। जिन पत्रकारों ने कांग्रेस द्वारा देश पर थोपा गया आपातकाल देखा है, वे आईएनडीआई गठबंधन के इस निर्णय के पीछे उसी आपातकाल वाली मानसिकता की अनुभूति कर रहे हैं। कांग्रेस की सरकार और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के इशारे पर तब भी पत्रकारों की ऐसी ही सूचियां बनाई गईं थी। जो कांग्रेस की जी-हुजूरी कर रहे थे और ‘इंदिरा इज इंडिया’ का नारा लगा रहे थे, ऐसे पत्रकारों को सरकार ने सहूलियत दी और जिन्होंने कांग्रेस की सरकार को आईना दिखाने का प्रयास किया, उनकी बिजली काट दी गई, ताकि समाचारपत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित न हो पाएं। उनको जेल में डाल दिया गया। उनको भयाक्रांत किया गया। ऐसे समाचारपत्रों पर सेंसर बिठा दिया गया, जो भी प्रकाशन के लिए जाता, उसे एक बार सरकारी बाबू जाँचता था। आज भी कांग्रेस और उसके सहयोगी दल मीडिया से यही अपेक्षा कर रहे हैं। जहाँ उनकी सरकारें हैं, वहाँ वे पत्रकारों को भयाक्रांत करने के लिए पुलिस प्रकरण भी दर्ज करा रहे हैं। यह सूची भी पत्रकारों को डराने का एक उपक्रम है। अन्यथा इस सूची में और भी नाम होते। देश की आम जनता से आ रही प्रतिक्रियाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि मीडिया का मुंह बंद करने का यह प्रयास आईएनडीआई गठबंधन को बहुत भारी पड़ने वाला है। विशेषकर कांग्रेस को इसका अधिक नुकसान होगा। आपातकाल के साथ ही कांग्रेस के माथे पर मीडिया के बहिष्कार का यह एक और कलंक हमेशा के लिए चिपक गया है। आश्चर्य है कि कांग्रेस ने यह भूल कैसे की? उसे यह ध्यान क्यों नहीं आया कि जब भारत के पत्रकार आपातकाल के अत्याचार से नहीं डरे, तब इस बहिष्कार से क्या प्राप्त होगा। भारतीय जनता पार्टी आपातकाल के दौर में भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, मीडिया की स्वतंत्रता, लोकतंत्र और संविधान के लिए आगे आई थी, इस अवसर पर भी वह मीडिया के साथ खड़ी दिख रही है।

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