मानहानि मामले में दो साल कैद की सजा सुनाए जाने के बाद राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता रद्द होना और अब शासकीय आवास खाली करने का निर्देश को कांग्रेस की ओर से लोकतंत्र पर हमले के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। सबसे पहले तो कांग्रेस को यह स्पष्ट करना चाहिए कि उसके द्वारा जो देशभर में प्रदर्शन या सत्याग्रह किए जा रहे हैं, वे किसके विरुद्ध हैं- न्यायालय या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी? क्योंकि राहुल गांधी को सजा न्यायालय ने सुनायी है और कानून के अनुसार ही उनकी लोकसभा सदस्यता गई है। राहुल गांधी के साथ जो कुछ घट रहा है, उस सबके पीछे प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार नहीं अपितु न्याय व्यवस्था है। इसलिए प्रश्न आवश्यक है कि कांग्रेस के प्रदर्शन किसके खिलाफ हैं? हालांकि कांग्रेस को प्रश्नों का उत्तर देने की आदत नहीं है, जो भी उनसे प्रश्न पूछता है, वे उसे भाजपायी घोषित कर देते हैं या फिर उसका सार्वजनिक अपमान करने का प्रयास किया जाता है। राहुल गांधी की प्रेसवार्ता इसका नवीनतम उदाहरण है, जहाँ लगभग एक दशक से कांग्रेस का कवरेज करने वाले पत्रकार को लक्षित करके उसको उपहास का पात्र बनाया गया। बहरहाल, राहुल गांधी के इस प्रकरण को कांग्रेस भुनाने की कोशिश कर रही है। इस घटना को लोकतंत्र पर हमले के रूप में निरूपित करके उसने उन विपक्षी दलों को भी एकजुट कर लिया है, जो अब तक कांग्रेस के नेतृत्व में साझे विपक्ष का हिस्सा बनने से कन्नी काट रहे थे। भ्रष्टाचार के मामलों से मुसीबत में घिरी आम आदमी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस भी कांग्रेस के साथ खड़ी दिख रही हैं। इसलिए कुछ लोगों को लगने लगा है कि यह घटना कांग्रेस एवं राहुल गांधी के उभार का कारण बन सकती है। जैसे इंदिरा गांधी ने अपनी सदस्यता के खत्म होने के बाद ऐतिहासिक वापसी की थी, उसी तरह राहुल गांधी भी लौटेंगे। भले ही विपक्षी दलों की एकजुटता के कारण यह कयास लगाए जाने लगे हों, लेकिन इस बात की संभावनाएं बहुत कम हैं कि राहुल गांधी करिश्माई नेता के तौर पर उभरकर आएंगे। क्योंकि आज की स्थिति इंदिरा गांधी के समयकाल की तुलना में बहुत बदली हुई हैं। एक सबसे महत्वपूर्ण कारण है कि राहुल गांधी के प्रति जनता में उस तरह का विश्वास नहीं है, जैसा पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के प्रति था। आज के समय की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आज का समय पारदर्शी है, लोगों को बरगलाया नहीं जा सकता कि कांग्रेस लोकतंत्र और संविधान की रक्षा के लिए सत्याग्रह कर रही है, बल्कि जनता को स्पष्ट दिख रहा है कि राहुल गांधी को उसी संविधान के दायरे में सजा हुई है, जिसकी दुहाई कांग्रेस के नेता दे रहे हैं। विपक्षी दलों का साथ मिलने से कांग्रेस को यह नहीं भूलना चाहिए कि वे सब कांग्रेस के साथ क्यों खड़े होते दिख रहे हैं क्योंकि अनेक विपक्षी दलों के नेता भी भ्रष्टाचार के मामलों में जेल की सलाखों के पीछे हैं। ये दल भ्रष्टाचार के विरुद्ध सरकार की कड़ी कार्यवाही से डरकर सरकार पर दबाव बनाने के लिए एकजुट दिख रहे हैं। परंतु सच यह है कि आआपा, बीआरएस, तृणमूल और समाजवादी जैसे दल जब साथ मिलकर चुनाव लड़ने की बात आएगी और उसमें सीटों के बंटवारे का सवाल उठेगा तब तक यह विपक्षी एकजुटता ढेर हो जाएगी। इस विपक्षी एकता को अभी कई राज्यों के विधानसभा चुनावों की अग्निपरीक्षा से भी गुजरना है। सबसे बड़ी बात यह कि इस पूरी कवायद के बाद अगर कांग्रेस बनाम भाजपा या राहुल बनाम मोदी का ही दृश्य बनना है तो इसके लिए विपक्ष कितना तैयार हैं। स्वातंत्र्यवीर सावरकर के अपमान पर उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस का गठबंधन छोड़ने की चेतावनी दे दी है। अब देखना होगा कि भारत के यशस्वी क्रांतिकारी, राजनेता एवं समाजसेवी स्वातंत्र्यवीर सावरकर का अपमान करने की जिद राहुल गांधी कैसे छोड़ पाते हैं या कितने दिन तक अपनी जुबान पर नियंत्रण रख पाएंगे। आज उद्धव ठाकरे चुनौती दे रहे हैं तो आनेवाले समय में अन्य राजनीतिक दल और उनके नेता भी पीछे नहीं रहेंगे। समूचे दृश्य का विश्लेषण करें तो ध्यान आता है कि भले ही राहुल गांधी के पक्ष में हवा बनायी जा रही हो, लेकिन परिणाम वही आने की संभावनाएं हैं।
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