संसद को जिस प्रकार हंगामे की भेंट चढ़ाया जा रहा है, उसे देखकर यही कहा जा सकता है कि विपक्ष दिशाहीन हो गया है। समाधानमूलक चर्चा नहीं अपितु हंगामा खड़ा करना ही जिसका मकसद हो गया है। सत्ता पक्ष की ओर से स्वयं गृहमंत्री अमित शाह कह चुके हैं कि सरकार भी चाहती है कि मणिपुर की सच्चाई देश के सामने आए। इसलिए विभागीय मंत्री के रूप में चर्चा में भाग लेने को तैयार हैं। आज एक बार फिर सत्ता पक्ष की ओर से केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने संसद में कहा कि सरकार मणिपुर समेत किसी भी मुद्दे पर चर्चा से परहेज नहीं कर रही है, लेकिन विपक्ष को अपना अड़ियल रुख छोड़ना होगा। मणिपुर के साथ-साथ राजस्थान, छत्तीसगढ़ और बंगाल में जो हो रहा है, उस पर भी चर्चा होनी चाहिए। आप महिलाओं के लिए संवेदनशील नहीं है। अगर होते तो चर्चा शुरू होती। सदन की कार्यवाही को बाधित नहीं करते। पूरा देश देख रहा है कि आप देश के भविष्य को खराब कर रहे हैं। अगर संवेदनशील हैं तो तुरंत चर्चा शुरू कीजिए। यकीनन, यदि विपक्ष महिलाओं के मुद्दे पर जरा भी संवेदनशील होता, तब हंगामा नहीं बल्कि संवाद करता। परंतु जो दल इस बात से डरते हों कि चर्चा होने पर उनके द्वारा शासित राज्यों की यथास्थिति भी सामने आ जाएगी, वह चर्चा से भागनेवाला रास्ता ही चुनेंगे। इसकी बानगी अभी देश ने राजस्थान की विधानसभा में भी देखी, जहाँ कांग्रेस सरकार ने महिलाओं के हित की बात करने पर अपने ही मंत्री का न केवल बर्खास्त कर दिया अपितु सुरक्षाकर्मियों से उन्हें विधानसभा से बाहर भी निकलवा दिया। जाहिर है, जब मणिपुर पर चर्चा में यह मुद्दे भी सामने आएंगे तो कांग्रेस सहित तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, राजद, जदयू इत्यादि को बगलें झांकनी पड़ेंगी। अगर विपक्ष के पास कोई अच्छा मार्गदर्शक नेता होता, तब वह यही सलाह देता कि अपनी जिद छोड़कर संसद को चलने दिया जाए। वहाँ मणिपुर के साथ ही अन्य राज्यों में महिलाओं की सुरक्षा से जुड़े सभी मुद्दों पर खुलकर बात हो और कोई समाधान का रास्ता निकले। जब संवाद शुरू होगा, तब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से भी आग्रह किया जा सकता है कि वे इस मुद्दे पर देश को संबोधित करें और विपक्षी दलों को बताएं कि सरकार क्या कर रही है और क्या करेगी। हालांकि प्रधानमंत्री मानसून सत्र शुरू होने के दिन ही अपनी चिंता जाहिर कर चुके हैं। इसके बाद भी विपक्ष इस जिद पर अड़ा है कि पहले प्रधानमंत्री बोलें तभी संसद की कार्यवाही शुरू हो सकती है, तब यह कहना ही होगा कि विपक्ष चर्चा से बचने और देश को गुमराह करने का तरीका अपना रहा है। दिशाबोध नहीं होने के कारण से विपक्ष के नेता भाषा और व्यवहार की मर्यादा भी खो रहे हैं। संसद के बाहर कांग्रेस प्रवक्ताओं की भाषा-शैली में इतनी अधिक कड़वाहट है कि उसे देखकर लोग सोचने पर मजबूत हैं कि हम राजनीतिक संवाद को किस दिशा में ले जाना चाहते हैं। वहीं, आम आदमी पार्टी के नेताओं की तो संसद के बाहर भी और संसद के भीतर भी बहुत आपत्तिजनक भाषा एवं व्यवहार है, जिसके कारण उसके सांसद संजय सिंह को निलंबित करना पड़ा। आम आदमी पार्टी की ओर से जिस प्रकार की अराजकतावादी भाषा-शैली का उपयोग किया जाता है, वह संसदीय परंपरा के लिए शुभ नहीं है। जब सरकार चर्चा के लिए तैयार है, तब विपक्ष डर क्यों रहा है? संसद की कार्यवाही को चलने दिया जाए और समाधानमूलक संवाद के लिए सभी आगे आएं।
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