बिहार सरकार ने जातिगत जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक कर दिए हैं। उनको लेकर जिस प्रकार की बहस प्रारंभ हुई है, उससे तो यही लगता है कि यह आंकड़े कहीं देश को बड़े खतरे की ओर न धकेल दें। राजनेता सत्ता की हवस में जातिगत विभेद को हवा देने का काम कर रहे हैं लेकिन जब यह विभेद गंभीर रूप धारण कर लेगा, तो यही नेता भाग खड़े होंगे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने भाषण में कहा ही है कि कुछ लोग समाज को जात-पात में बाँटकर सत्ता में आना चाहते हैं। ये लोग विकास विरोधी हैं। विकास के मुद्दे पर राजनीति करने की अपेक्षा जातिवादी राजनीति को हवा दे रहे हैं। प्रधानमंत्री ने स्पष्ट ही कहा है कि विकास विरोधी ये लोग गरीबों की भावनाओं से खेल रहे हैं। गरीबों को जात-पात में उलझाना चाहते हैं। दरअसल, मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति करनेवाले दल जातिगत आंकड़ों की राजनीति पर इसलिए उतर आए हैं क्योंकि वे हिन्दू समाज को कमजोर करना चाहते हैं। पिछले कुछ वर्षों से हिन्दुओं की एकजुटता ने उनके राजनीतिक गणित को बिगाड़ दिया है। अब वे दल अपना गणित ठीक करने के लिए हिन्दू समाज को जातियों में बाँटना और आपस में उलझाने की साजिशें रच रहे हैं। जातिगत आंकड़े सामने आएं, तब हिन्दू समाज को बहुत धैर्य और एकजुटता से काम लेना होगा। कुछ समझदार लोगों ने आंकड़ों को उसी ढंग से देखा और दिखाने का प्रयास भी किया। याद रखें कि आज कांग्रेस जातिगत आंकड़ों को जारी करने की माँग कर रही है लेकिन एक दौर था जब कांग्रेस इस प्रकार की राजनीति से बचती थी और इसे देश-समाज के लिए खतरा मानती थी। पंडित जवाहरलाल नेहरू और मौलाना आजाद जैसे नेताओं को अपना आदर्श बताते नहीं थकनेवाली कांग्रेस का आज का विचार इन नेताओं के विचार का सर्वथा विरोधी विचार है। पंडित नेहरू, मौलाना आजाद और यहाँ तक कि बाबा साहेब अंबेडकर ने भी यह तय किया था कि सरकार जातिगत जनगणना नहीं कराएगी, क्योंकि ये समाज में विभाजनकारी हो सकते हैं। उस समय केवल अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति की गणना की गई क्योंकि उन्हें आरक्षण देना था। संवैधानिक बाध्यता के कारण अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति की गणना की गई। लेकिन आज कांग्रेस अपने ही पुरुखों के विचार के विरुद्ध आचरण कर रही है। यह भी ध्यान रखना चाहिए कि कांग्रेस जब तक सत्ता में रही, उसने तब तक जातिगत जनगणना एवं उसके आंकड़े सार्वजनिक करने के विचार को स्वीकार नहीं किया। बिहार की भाँति कर्नाटक में एक दशक पहले ही जातिगत गणना कराई जा चुकी है लेकिन कांग्रेस ने कभी उसकी रिपोर्ट जारी करने की हिम्मत नहीं की। कांग्रेस की केंद्र सरकार ने भी जातिगत जनगणना करा ली थी लेकिन उसका डेटा कभी बाहर नहीं ला सकी। आज राहुल गांधी भाजपा सरकार से माँग करते हैं कि वह जातिगत आंकड़े जारी करे। भाजपा से माँग करने से पहले उन्हें यह बताना चाहिए कि इतने वर्षों तक सत्ता में रहने के बाद भी उन्होंने यह काम क्यों नहीं किया? जब उन्होंने 2011 की जनगणना में यह डेटा एकत्र कर लिया था तब सरकार से बाहर होने तक की किसकी प्रतीक्षा कर रहे थे? क्या कांग्रेस स्वयं को कमजोर मानती थी कि एक दृढ़ इच्छाशक्ति वाली सरकार की प्रतिक्षा कर रही थी, जो साहसिक निर्णय लेने में सक्षम हो। वास्तविकता यह है कि कांग्रेस का जो गंभीर एवं अनुभवी नेतृत्व है, वह भी जातिगत आंकड़ों को सार्वजनिक करने के खतरों से अवगत था, इसलिए कांग्रेस ने कभी ऐसी पहल नहीं की। आज कांग्रेस में जिनकी चलती है, उनकी सोच देश-समाज को लेकर कांग्रेस के ही अनुभवी नेतृत्व की तरह नहीं है।
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