राजस्थान में दलितों एवं महिलाओं पर अत्याचार के मामले बढ़ते जा रहे हैं। दुर्भाग्य की बात है कि कांग्रेस के शीर्ष नेता दूसरे राज्यों में होनेवाले अपराधों पर तो खूब हो-हल्ला करते हैं लेकिन अपनी सरकार की नाक के नीचे हो रहे अपराधों पर या तो चुप्पी साध लेते हैं या फिर बेतुकी बातें करके उसका बचाव करते हैं। यही स्थिति जयपुर जिले के जमवारामगढ़ में एक दलित के साथ किए गए घिनौने अपराध में देखने को मिल रही है। 51 वर्षीय दलित व्यक्ति के आरोपों के अनुसार, जमवारामगढ़ के डिप्टी एसपी शिवकुमार भारद्वाज ने उसके मुंह पर पेशाब की, जातिगत अपमान किया और यह सब उसने कांग्रेस विधायक गोपाल मीणा की उपस्थिति में किया। पीड़ित ने कांग्रेस विधायक मीणा पर भी जीभ से जूते साफ कराने के आरोप लगाए हैं। किसी के साथ भी इस प्रकार का व्यवहार घोर निंदनीय है। सभ्य समाज में इस प्रकार के अपराध के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। इस घिनौने अपराध के लिए आरोपितों की जितनी निंदा की जाए कम है। आपको याद होगा कि पिछले महीने मध्यप्रदेश में भी जनजाति समुदाय के एक युवक पर इस पेशाब करने का घिनौना मामला सामने आया था।। समूचा देश इस घटना से शर्मसार हो गया था। बहरहाल, अब दोनों ही मामलों में नेताओं एवं सरकार के आचरण का मूल्यांकन करना चाहिए। यह इसलिए भी आवश्यक है कि कांग्रेस अकसर भाजपा पर अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति की विरोधी होने के आरोप लगाती है। परंतु हकीकत क्या है, इन मामलों में हुई कार्रवाई के आधार पर कोई भी समझ सकता है। इस बीच आंध्र प्रदेश की घटना को भी ध्यान में रखें, वहाँ भी एक युवक पर पेशाब करने का मामला सामने आया था। भाजपा शासित राज्य मध्यप्रदेश में जब घिनौना अपराध हुआ, तो कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने खूब माहौल बनाया। उन्होंने स्वयं भी ट्वीट किए और अपने समर्थक इको-सिस्टम को भी सक्रिय कर दिया था। उस घिनौने अपराध पर राजनीतिक लाभ लेने के लिए प्रगतिशील समूह के तथाकथित रचनाधर्मियों ने बहुत ही घिनौने कार्टून एवं पोस्टर इत्यादि बनाए। सभी प्रकार की मर्यादाओं को तोड़कर भाजपा के साथ-साथ राष्ट्रीय विचार के संगठनों की छवि पर हमला किया गया। प्रोपेगेंडा का स्तर इतना निम्न था कि कई जगह पुलिस प्रकरण भी दर्ज कराने पड़े। वहीं, आंध्र प्रदेश हो या राजस्थान, वैसे ही घिनौने मामले में इस समूह ने कैसी चुप्पी ओढ़ रखी है। कांग्रेस विधायक के इस अपराध पर कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने न कोई ट्वीट किया है और न ही ऐसे व्यक्ति को पार्टी से बाहर किया है। जबकि मध्यप्रदेश में भाजपा ने एक झटके में विधायक के प्रतिनिधि बताए जा रहे आरोपी को खारिज कर दिया। उसके खिलाफ कठोर धाराएं लगाकर मामला दर्ज किया गया और उसे गिरफ्तार किया गया। उसके अवैध अतिक्रमण पर बुलडोजर चलाया गया। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पीड़ित के हृदय पर मरहम लगाने के लिए उसके पैर तक धोने का काम किया, ताकि समाज में एक सकारात्मक संदेश जाए। वहीं, राजस्थान में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। इस अंतर से साफ पता चलता है कि वास्तव में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदाय के सम्मान की चिंता किसे अधिक है? कौन है जो सिर्फ भाषणों में इन वर्गों के स्वाभिमान पर कोरी बयानबाजी करता है और कौन है जो आचरण में उसको उतारता है। यह जनता के सामने सब स्पष्ट है। यदि वाकई कांग्रेस को दलितों के हितों एवं उनके स्वाभिमान की चिंता होती, तब वह मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार से सबक सीखती और घिनौने अपराध को अंजाम देनेवाले आरोपियों को सबक सिखाती। कांग्रेस सरकार के इसी ढुलमुल रवैए के कारण राजस्थान में तेजी से अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति वर्गों पर अत्याचार बढ़े हैं। अगर कांग्रेस वाकई संवेदनशील है तो उसे जाँच पूरी होने तक कांग्रेस विधायक को पार्टी से बाहर करना चाहिए और राहुल गांधी एवं प्रियंका गांधी वाड्रा को इस अपराध की भर्त्सना करनी चाहिए। अगर इस प्रकार के अपराधों पर एक समान दृष्टिकोण नहीं अपनाया गया, तब इन पर रोक लगाना मुश्किल हो जाएगा।
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