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कांग्रेस और परिवारवाद

परिवारवाद का भूत कांग्रेस का पीछा नहीं छोड़ता है। वह रह-रहकर कांग्रेस को घेर ही लेता है। इस बात तो चर्चाओं में रहनेवाले कांग्रेस के बुद्धिजीवी नेता एवं केरल से सांसद शशि थरूर ने ही परिवारवाद के जिन्न को बोतल से बाहर निकाल दिया है। तिरुवनंतपुरम में एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने यह कहकर राजनीतिक गलियारे में हलचल मचा दी है- “मेरा मानना है कि कांग्रेस पार्टी मल्लिकार्जुन खड़गे या राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने की पेशकश कर सकती है, क्योंकि कई मायनों में यह परिवार से चलने वाली पार्टी है”। उनके इस बयान का साफ मतलब है कि कांग्रेस को नेहरू-गांधी परिवार चलाता है। इससे पूर्व उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका की तरह भारत में व्यक्तिगत योग्यता से आप प्रधानमंत्री नहीं बन सकते क्योंकि हमारे यहाँ प्रधानमंत्री कौन होगा, यह पार्टी तय करती है। जबकि अमेरिका में जनता प्राथमिक तौर पर उम्मीदवार का चयन करती है, जो बाद में पार्टी की ओर से चुनाव लड़ता है। उल्लेखनीय है कि शशि थरूर कांग्रेस के कथित समूह-23 के सदस्य कहे जाते हैं। शीर्ष नेतृत्व की मंशा के विरुद्ध जाकर उन्होंने मल्लिकार्जुन खड़गे के खिलाफ कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव भी लड़ा था। चूँकि परिवार और पार्टी का साथ थरूर के पास नहीं था, इसलिए वे अध्यक्ष का चुनाव हार गए थे। अब जरा सोचिए, शशि थरूर ने क्यों कहा होगा कि “कांग्रेस परिवार से चलनेवाली पार्टी है”। कांग्रेस के संबंध में यह बात सामान्य व्यक्ति भी जानता है कि पार्टी में नेहरू-गांधी परिवार का वर्चस्व है। उसके अनुरूप ही पार्टी में फेरबदल होते हैं। जो परिवार से असहमत होते हैं या उनके अनुरूप नहीं चलते, उनकी क्या स्थिति हो जाती है, इस बात को समूह-23 के वरिष्ठ नेताओं की स्थिति को देखकर आसानी से समझा जा सकता है। इसलिए शशि थरूर जैसे अत्यंत बुद्धिमान कहे जानेवाले राजनेता ने कांग्रेस में परिवारवाद की बात कहकर कोई रहस्योद्घाटन नहीं किया है। हाँ, लेकिन परिवारवाद की छवि से बचने की कोशिश कर रही कांग्रेस के सामने असहज स्थितियां अवश्य ही पैदा कर दी हैं। राजनीतिक गलियारे से लेकर बुद्धिजीवी खेमे तक, शशि थरूर की बातों को गंभीरता से लिया जाता है। पाँच राज्यों के विधानसभा चुनावों की तैयारी में उलझी कांग्रेस सांसद थरूर की स्पष्ट बयानी से हिल गई। परिणाम यह हुआ कि अगले ही दिन शशि थरूर को अपने बयान के लिए सफाई देनी पड़ी। लेकिन जो कह दिया, उससे बुद्धिजीवी नेता कैसे पलट सकता है। इसलिए सफाई में भी उन्होंने यह तो कह ही दिया कि “सोमवार को मैंने एक निजी कार्यक्रम में जो बयान दिया था, वह कोई औपचारिक वक्तव्य नहीं था। मेरे बयान का गलत मतलब निकाला गया। मैंने बार-बार कहा है कि नेहरू/गांधी परिवार का डीएनए कांग्रेस पार्टी के साथ अटूट रूप से जुड़ा हुआ है। परिवार ही पार्टी की ताकत है। इसमें भी कोई संदेह नहीं है कि राहुल गांधी पार्टी के सबसे पसंदीदा नेता हैं”। यानी उन्होंने एक तरह से फिर दोहरा दिया कि कांग्रेस की ताकत ‘परिवार’ है। दरअसल, पूर्व के वक्तव्य से यह भी ध्वनित हो रहा था कि शशि थरूर चाहते हैं कि यदि कांग्रेस जीतती है तो उन्हें प्रधानमंत्री बनाया जाए लेकिन कांग्रेस में परिवारवाद है इसलिए प्रतिभाशाली होने के बावजूद उनके अवसर शून्य हैं। अपने स्पष्टीकरण में सांसद थरूर ने बस इसी हिस्से पर धूल डालने का काम किया बाकी ‘परिवार’ की सर्वोच्चता को उन्होंने स्वीकार ही किया है। देखना होगा कि विधानसभा चुनावों से ठीक पहले निकला परिवारवाद का भूत कांग्रेस को कितना नुकसान पहुँचाता है या नहीं।

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