प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार को हटाने के लिए कुछ विपक्षी दल सब प्रकार के गुणा-भाग लगा रहे हैं। इसी क्रम में आपसी विवाद, कड़वाहट और अपनी पार्टी की घोषित नीतियों को किनारे लगाकर 28 विपक्षी दलों ने कांग्रेस के साथ मिलकर एक गठबंधन बनाया है, जिसे नाम दिया है- ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलाइंस’। विपक्षी दलों की ओर से इसे संक्षिप्त में ‘इंडिया’ कहा जा रहा है। विपक्षी दलों के गठबंधन के इस नामकरण में उनका भय भी दिखायी देता है और चालाकी भी। उल्लेखनीय है कि कांग्रेस के नेतृत्व में पहले से एक गठबंधन है, जिसे यूपीए (यूनाइटेड प्रोग्रेशिव अलाइंस) के नाम से जाना जाता है। अब प्रश्न है कि जब पहले से गठबंधन के पास एक नाम था, तो नये नाम की आवश्यकता क्या थी? क्योंकि कांग्रेस के मुकाबले 2024 की तैयारी कर रही भाजपा ने अपने गठबंधन का नाम ‘राजग (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन)’ ही रखा है। भाजपा को ‘एनडीए’ का नाम बदलने की आवश्यकता इसलिए महसूस नहीं हुई क्योंकि उसे विश्वास है कि जनता को एनडीए पर भरोसा है। जबकि कांग्रेस और उसके साथ आए विपक्षी दल यूपीए नाम के साथ जाने से बचना चाहते हैं क्योंकि यूपीए पर पहले से ही भ्रष्टाचार के गहरे धब्बे लगे हैं। विपक्षी दलों का भय था कि वैसे ही उनके गठबंधन में शामिल ‘भ्रष्टाचार नेताओं’ को लेकर मुद्दा बनता रहता है, यदि यूपीए की पहचान को कायम रखा गया तब भाजपा को उनके गठबंधन को ‘भ्रष्टाचारियों का कुनबा’ कहने में सहूलियत होगी। इसलिए कांग्रेस ने चालाकी दिखाते हुए ऐसा नाम चुना, जिससे उनके गठबंधन का नाम लेकर आलोचना करने पर आलोचकों पर ‘भारत विरोधी’ होने का ठप्पा लगाया जा सके। इसके साथ ही चुनाव प्रचार अभियान में भी ‘इंडिया’ के नाम पर वोट माँगकर जनता को भ्रमित किया जा सके। विपक्षी दलों की ओर से यह अभियान शुरू भी कर दिया गया है- वे यह दावा कर रहे हैं कि देश में ‘इंडिया बनाम एनडीए’ की लड़ाई है, जिसमें इंडिया ही जीतेगा। लेकिन गठबंधन के नेता भूल रहे हैं कि अब वह समय नहीं रहा, जब जनता को इस प्रकार से छल लिया जाता था। देश की जनता को यह भली प्रकार पता है कि कांग्रेस सहित विपक्षी दलों का यह गठबंधन ‘इंडिया’ कतई नहीं है। भले ही चालाकी दिखाते हुए कांग्रेस के नेता, उसके सहयोगी दल एवं समर्थक बुद्धिजीवी अपनी समूची बुद्धि का उपयोग करके जनता के मन में यह बात बिठाने का प्रयत्न करें कि हमारे संविधान में लिखा है- ‘इंडिया दैट इज भारत’। इससे पहले भी कांग्रेसियों ने ऐसा प्रयत्न करके देख लिया, जब उनकी ओर से कहा गया था- ‘इंदिरा इज इंडिया’। जनता को तब भी भ्रमित नहीं किया जा सका और आज तो यह संभव ही नहीं है। दरअसल, कांग्रेस इस प्रकार की चालाकियां स्वतंत्रता के समय से करती आई है। उल्लेखनीय है कि महात्मा गांधी के कहने के बाद भी जानबूझकर स्वतंत्रता आंदोलन के साझे मंच ‘कांग्रेस’ को भंग नहीं किया गया, जबकि उसका उद्देश्य पूर्ण हो चुका था। यदि उस समय कांग्रेस को भंग कर दिया जाता और नये नाम के साथ नेता चुनाव में जाते तब उनको जनता का वैसा समर्थन नहीं मिलता। कांग्रेस के साथ लोगों का एक लगाव था, जिसका लाभ उस समय के नेताओं ने उठाया। कांग्रेस पर इसी तरह के आरोप उसके ‘झंडे’ को लेकर लगते हैं। जानकार मानते हैं कि कांग्रेस ने योजनापूर्वक अपने झंडे को राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा से मिलता-जुलता रखा। बहरहाल, आज के पारदर्शी और जागरूक समय में पूर्व की भाँति लोगों को भ्रमित नहीं किया जा सकता। देश की जनता को पता है कि वास्तव में ‘इंडिया’ कौन है? और उन्हें किस प्रकार का ‘इंडिया’ बनाना है।
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