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नेपाल में भारत के पक्ष में परिवर्तन

नेपाल में तेजी से हुए राजनीतिक परिवर्तन के कारण जो अब जो समीकरण बने हैं, वे कूटनीतिक दृष्टि से भारत के पक्ष में जाते दिखायी दे रहे हैं। बदलते राजनीतिक समीकरण के बीच राष्ट्रपति चुनाव में नेपाली कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रामचंद्र पौड्याल को भारी मतों से जीत प्राप्त हुई है। विगत दो माह पूर्व हुए राष्ट्रपति चुनावों में अस्वभाविक गठजोड़ों के कारण राजनीतिक उठापटक चलती रही। कम्युनिस्ट दलों के प्रभावशाली होने के कारण चीन का दखल भी देखा गया। राजनीतिक अस्थिरता और राजनीतिक दलों का बेमेल गठजोड़ नेपाल में लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन कर उभरा है। पिछले दिनों प्रचंड जब ओली के समर्थन से प्रधानमंत्री बने तो भारत में बेचैनी पैदा हो गई थी। भारत के सामरिक हितों के लिए चिंता के कारण के रूप में देखा जा रहा था क्योंकि दोनों कम्युनिस्ट नेताओं का व्यापक रूप से चीन की ओर झुकाव रहा है। यह नेपाल में भू-राजनीतिक प्रभाव के लिए प्रतिस्पर्धा करने की कोशिश कर रहे भारत और चीन के बीच आता है। ऐसा लग रहा था कि राष्ट्रपति, सभापति और प्रधानमंत्री के पद पर एक बार फिर से मार्क्सवादी-माओवादियों का कब्जा हो सकता है, जो वैचारिक रूप से चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के करीब हैं, इसलिए निश्चित रूप से इसका असर भारत पर पड़ता। ओली के कार्यकाल में दोनों देशों के रिश्तों में काफी खटास पैदा हुई थी। ओली जब प्रधानमंत्री थे, तब उनकी सरकार ने अपने भारत-विरोधी अभियान को जारी रखते हुए नेपाल की संसद से एक नए भौगोलिक मानचित्र को पास करा कर कालापानी और लिपुलेख क्षेत्र को नेपाल का हिस्सा बना लिया। नेपाली जनमानस में प्रभुसत्ता और राष्ट्रवाद के नाम पर भारत विरोधी अभियान चलाया जा रहा था। ऐसे में प्रचंड-ओली गठबंधन की तुलना में प्रचंड-देउबा गठजोड़ भारत के व्यापक हित में है। काठमांडू के साथ बेहतर संबंध सुरक्षित करने के लिए नई दिल्ली को नेपाल के राजनीतिक परिप्रेक्ष्य के सभी पक्षों के साथ जुड़ना चाहिए। नेपाल के साथ भारत के केवल सामाजिक, भौगोलिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रिश्ते ही नहीं हैं, बल्कि दोनों का रिश्ता ‘रोटी-बेटी’ का है। ऐसे में धार्मिक और सांस्कृतिक संबंधों को प्राथमिकता देनी चाहिए और साल 2015 के भूकंप पुनर्निर्माण और कोविड-19 महामारी सहायता द्वारा बनाई गई सद्भावना पर आगे बढ़ना चाहिए। नए गठबंधन के लिए नेपाल राजनीतिक स्थिरता बहाल करना और देश को विकास की पटरी पर वापस लाना एक बड़ी चुनौती होगी। इसमें भारत एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। नेपाल को चीन के प्रभाव से मुक्त रखने के लिए भारत सरकार को विशेष प्रयास करने चाहिए। आर्थिक सहयोग और सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करते हुए भारत नेपाल को अपने साथ रख सकता है। दोनों देशों की मूल संस्कृति एक ही है। नेपाल की जनता को भी चाहिए कि वह अपने यहाँ चीन की ओर झुकाव रखनेवाले राजनीतिक दलों एवं नेताओं को अवसर न दें। अब यह बात जगजाहिर हो चुकी है कि चीन किसी का हितैषी नहीं है। नेपाल के लिए भारत ही उसका स्वभाविक मित्र राष्ट्र है। इसलिए नेपाल का भविष्य भारत के साथ अच्छे संबंधों में है।

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