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चंद्रविजयी भारत

अंतरिक्ष विज्ञान में भारत अब दुनिया का अग्रणी देश बन गया है। चंद्रयान–3 की सफलता के बाद विश्व पटल पर भारत की प्रतिष्ठा में ‘चार चाँद’ लग गए हैं। दुनिया ने भारत की इस सफलता पर हर्ष व्यक्त किया है। अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोप के तमाम बड़े समाचार पत्रों ने भारत की सफलता पर विचार व्यक्त किए गए हैं। एक समय भारत के अंतरिक्ष अभियानों का मजाक बनानेवाले अमेरिका के समाचारपत्र न्यूयॉर्क टाइम्स ने भी माना है कि भारत का अगला कदम क्या होगा। और सफलताएं भारत की प्रतीक्षा कर रही हैं। अमेरिका के ही एक और प्रतिष्ठित समाचारपत्र ने भारत की सफलता को दुनिया के लिए अनूठा उपहार बताया है। इसके साथ ही उसने लिखा है कि भारत के वैज्ञानिक हार नहीं मानते हैं। कम बजट में भी बड़ी सफलताएं प्राप्त कर लेते हैं। बीबीसी मानता है कि दुनिया को भारत से बहुत उम्मीदें हैं। यहां तक कि पाकिस्तान के मीडिया ने भी खुलकर भारत की प्रशंसा की है। लेकिन चीनी मीडिया ने भारत की प्रशंसा करने से परहेज किया। अपना तंगदिल ही उसने दिखाया। मजेदार बात यह है कि चीन के इशारे पर चलनेवाले भारत के ‘लेफ्ट मीडिया’ की स्थिति भी कमोवेश चीनी मीडिया की भांति रही। कम्युनिस्टों और कांग्रेसियों ने पहले तो चंद्रयान–3 का उपहास बनाने का प्रयास किया, उसको लेकर विवाद खड़े करने के प्रयास किए और इस अभियान की उपयोगिता को ही प्रश्नांकित किया गया। लेकिन आम भारतीय नागरिकों ने जब उनकी इन हरकतों पर विरोध दर्ज कराया तब उन्होंने चंद्रयान–3 की सफलता पर संकीर्ण सोच के साथ मजबूरी में बधाई समाचार दिए। भारत की इस उपलब्धि से उनका मन प्रसन्न नहीं है। ऐसा लगता है कि वे प्रार्थना कर रहे थे कि अभियान सफल न हो। क्योंकि अभियान की सफलता पर स्वाभाविक तौर पर इसरो के महान वैज्ञानिकों के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार को भी श्रेय मिलता। मोदी के प्रति अंध विरोध की पराकाष्ठा पर कर चुके ये लोग यह कतई सहन नहीं कर सकते कि इतनी बड़ी सफलता का श्रेय प्रधानमंत्री मोदी की सरकार के खाते में जाए। इसलिए ओछी सोच का प्रदर्शन करते हुए ये लोग पंडित जवाहरलाल नेहरू को श्रेय दे रहे थे कि उन्होंने इसरो की स्थापना की, जिसके कारण आज हम चंद्रमा पर विजय के झंडे गाड़ रहे हैं। हद है, इस प्रकार की मानसिकता की। यही लोग उस समय उलाहना देते हैं जब ऐतिहासिक गलतियों के लिए पंडित नेहरू जी का नाम उछाला जाता है। यानी श्रेय तो चाहिए लेकिन गलतियों के लिए आलोचना नहीं होनी चाहिए। ‘मीठा–मीठा गप, कड़वा–कड़वा थू’। यह भी तथ्य ध्यान रखना चाहिए कि उस समय वैज्ञानिक अनेक चुनौतियों से जूझते थे? प्रधानमंत्री से लेकर नेहरू सरकार के मंत्री–संतरी तो कारों से घूमते थे लेकिन वैज्ञानिकों को इतनी भी सुविधा नहीं थी कि उन्हें एक जगह से दूसरी जगह रॉकेट इत्यादि को लाने–ले जाने के लिए साधन उपलब्ध कराए गए होते। वैज्ञानिक सायकिल और बैल गाड़ियों पर यंत्रों को ढोने के लिए मजबूर थे। किसी संस्थान का फीता काटने से कोई उसका जनक नहीं हो जाता। इसरो किसका सपना था, उसे किस प्रकार भारत के वैज्ञानिकों ने स्थापित किया है, यह तथ्य अब सार्वजनिक मंच पर उपलब्ध हैं। इसलिए कांग्रेस और कम्युनिस्ट बरगलाने का प्रयास किसी और को करे, भारत की जनता तो अब जाग उठी है। कांग्रेसी एवं कम्युनिस्ट भले ही नेहरू–नेहरू जपते रहें, भारत की जनता तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को श्रेय देगी। उसने देखा है कि 2014 के बाद से भारत की प्रगति तेजी से हुई है। प्रधानमंत्री मोदी ने पिछली बार अभियान आंशिक रूप से असफल होने अपने वैज्ञानिकों का हौसला बढ़ाया, उन्हें टूटने नहीं दिया अपितु फिर से प्रयास करने के लिए प्रोत्साहित किया। परिणाम, 23 अगस्त, 2023 की शाम है, जब भारत चंद्रविजयी बन गया। बहरहाल, इतिहास रचनेवाले इस इतिहास समय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बहुत महत्व की बातें कही हैं– “ऐसी ऐतिहासिक घटनाएं राष्ट्र जीवन की चेतना बन जाती हैं। यह पल अविस्मरणीय है। यह क्षण अभूतपूर्व है। यह क्षण विकसित भारत के शंखनाद का है। यह क्षण नए भारत के जयघोष का है”। नि:संदेह, यह समय भारत के जयघोष का है। हमें सब प्रकार के राजनैतिक एवं वैचारिक मतभेद भुलाकर ‘भारत माता की जय’ के जयघोष को बुलंद करना चाहिए। कुछ मुद्दे राजनीति के नहीं, गौरव की अनुभूति के होते हैं।

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