कांग्रेस के नेतृत्व में एकजुट होने की जद्दोजहद कर रहे विपक्षी दलों के बीच की खींचतान अभी से नजर आने लगी है। आम आदमी पार्टी जिस प्रकार से कांग्रेस को चुनौती दे रही है, उससे लगता नहीं है कि आईएनडीआईए गठबंधन वर्तमान स्वरूप में बना रह पाएगा। वहीं, इस गठबंधन की सफलता की संभावना तो बहुत दूर की कौड़ी दिखायी दे रही है। उधर, तृणमूल कांग्रेस भी कांग्रेस सीधे चुनौती दे रही है। कांग्रेस की ओर से जिस प्रकार केंद्र की कुर्सी के लिए विभिन्न राजनीतिक दलों से समझौते करने के प्रयास किए जा रहे हैं, उसे देखकर तो यही लगता है कि कांग्रेस राज्यों में अपनी स्थिति को और कमजोर करने की ओर बढ़ रही है। बहरहाल, पिछले दिनों मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के प्रवास पर आए आआपा के प्रमुख एवं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने जिस तरह से कांग्रेस को निशाने पर लिया है, उससे कांग्रेस के स्थानीय नेताओं में तो भरपूर आक्रोश है लेकिन उसका शीर्ष नेतृत्व बेपरवाह और बेवश नजर आ रहा है। रायपुर में कांग्रेस पर हमला बोलते हुए केजरीवाल ने छत्तीसगढ़ की ‘खराब’ हालत के लिए सीधे तौर पर कांग्रेस को जिम्मेदार बताया। इस पर कांग्रेस के पवन खेड़ा बिगड़ गए। उन्होंने केजरीवाल को सीधी चुनौती दे डाली। मध्यप्रदेश में भी उन्होंने भाजपा के साथ कांग्रेस की आलोचना की और अपने लिए समर्थन माँगा। ऐसा नहीं है कि केवल आआपा ही गठबंधन की कमजोर बुनियाद को हिलाने का काम कर रही है, इस काम में कांग्रेस भी पीछे नहीं है। दरअसल, जैसे केंद्र की राजनीति को लेकर राष्ट्रीय नेतृत्व चिंतित है, उसी प्रकार स्थानीय राजनीति एवं अपने भविष्य को लेकर स्थानीय नेता भी चिंतित हैं। इसलिए कांग्रेस की ओर से भी राज्यों में अपने विपक्षी (परंतु आईएनडीआईए के सदस्यों) राजनीतिक दलों को चुनौती दी जा रही है। दिल्ली में कांग्रेसी नेता अलका लांबा ने कह दिया है कि कांग्रेस दिल्ली की सभी सीटों पर तैयारी कर रही है। लांबा के इस बयान पर आआपा का भड़कना स्वभाविक ही है क्योंकि आज दिल्ली में वह मुख्य राजनीतिक दल है, उसकी सरकार है, ऐसे में उसका वर्चस्व होना चाहिए लेकिन गठबंधन की मुख्य पार्टी उसको कमजोर करने के लिए दिल्ली में ताल ठोक रही है। लांबा के इस बयान के बाद आआपा की ओर से कह दिया गया है कि यदि कांग्रेस की नीयत ऐसी ही रहेंगी, फिर तो आईएनडीआईए गठबंधन का कोई मतलब नहीं बनता। दिल्ली में कांग्रेस को कोई वजूद ही नहीं है। मजेदार स्थिति है कि कांग्रेस की ओर से आआपा की नीयत पर और आआपा की ओर से कांग्रेस की नीति पर जमकर हमला बोला जा रहा है, प्रश्न उठाए जा रहे हैं। इस तरह का यह अनूठा गठबंधन होगा, जिनके सदस्यों का आपस में परस्पर विश्वास नहीं है। यह तो स्पष्ट हो गया है कि आगामी विधानसभा राज्यों में आआपा ने स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ने की योजना बना ली है। अब जब चुनाव प्रचार जोर पकड़ेगा, तब आआपा की ओर से कांग्रेस पर और कांग्रेस की ओर से आआपा पर गंभीर राजनीतिक हमले होना तय है। तब ये दोनों दल और आईएनडीआईए गठबंधन किस मुंह से लोकसभा चुनाव में जनता के मन में यह विश्वास जगा पाएंगे की हम सब साथ हैं। जनता को स्पष्ट दिख रहा है कि जिस दल का जहाँ वर्चस्व है, वहाँ वह अपने गठबंधन की दूसरी पार्टियों को साथ में लेने के लिए तैयार नहीं है। मतलब साफ है कि ये राजनीतिक दल भ्रष्टाचार की कार्यवाहियों से बचने और सत्ता पाने के लिए एकसाथ आए हैं। कोई भी गठबंधन आपसी विश्वास और व्यवस्थाओं के आधार पर बनता है, लेकिन इस गठबंधन में न विश्वास है और न व्यवस्थाएं हैं।
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