यह देखना भी अपने आप में आश्चर्यजनक है कि जिन्हें धर्म में ही विश्वास नहीं, वे रामलला के नये विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा उत्सव में प्रमुख चार पीठों के शंकराचार्यों की उपस्थिति को लेकर चिंतित हो रहे हैं। उन्हें इस बात की चिंता हो रही है कि प्राण प्रतिष्ठा में हिन्दू धर्म शास्त्रों का अनुपालन किया जा रहा है या नहीं? दरअसल, यह उनकी चिंता नहीं अपितु रामकाज में अड़ंगे लगाने की प्रवृत्ति है। किसी को यह बात नहीं भूलना चाहिए कि देश में एक वर्ग ऐसा रहा है, जिसने अपने समूचे राजनीतिक, सामाजिक और बौद्धिक सामर्थ्य का उपयोग श्रीराम मंदिर के मार्ग में बाधाएं उत्पन्न करने के लिए किया है। उनकी ओर से यहाँ तक कहा गया कि यह कौन सत्यापित करेगा कि राम इसी भूमि पर पैदा हुए? यहाँ कभी राम मंदिर था ही नहीं, यह कुतर्क भी आया ही। जबकि श्रीराम मंदिर को ध्वस्त करने वाली नापाक ताकतों ने गर्वोन्मति के साथ यह स्वीकार किया है कि उन्होंने हिन्दुओं की आस्था को ध्वस्त करके उसी के अवशेषों पर मस्जिद तामीर करायी। सर्वोच्च न्यायालय तक में यह हलफनामा दायर किया गया कि राम काल्पनिक हैं। श्रीराम मंदिर का निर्णय समय पर नहीं आए इसके लिए वकीलों ऐसी फौज उतारी गई, जो न्यायालय में मामले को अटकाती-भटकाती रही। अब जरा सोचिए कि श्रीराम मंदिर को लेकर इस प्रकार के विचार रखनेवाली ताकतें भला क्यों मंदिर से जुड़ा महत्वपूर्ण उत्सव निर्विघ्न सम्पन्न होने देंगी। हिन्दू समाज के मध्य भ्रम की स्थिति निर्मित करने के लिए उन्होंने एक प्रोपेगेंडा खड़ा किया कि हिन्दू धर्म के सर्वोच्च धर्माचार अर्थात् चारों शंकराचार्यों ने राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह का बहिष्कार कर दिया है। यह आयोजन धर्म सम्मत नहीं है। भाजपा और आरएसएस राजनीतिक सुविधा के हिसाब से इस आयोजन को कर रही है। वर्षों से राम मंदिर का विरोध करनेवाली सभी ताकतें मिलकर इस प्रोपेगेंडा को फैलाने में लग गईं। स्थिति यह बन गई कि शंकराचार्यों को आगे आकर यह स्पष्ट करना पड़ा कि वे अन्यान्य कारणों से प्राण प्रतिष्ठा समारोह में उपस्थिति नहीं हो पाएंगे लेकिन 500 वर्ष की प्रतीक्षा पूरी होने से उन्हें बहुत प्रसन्नता है। श्रीशारदापीठ, शृंगेरी की ओर से सार्वजनिक पत्र जारी करके कहा गया कि कुछ धर्मद्वेषियों ने यह झूठ फैलाया हुआ है कि शृंगेरी शंकराचार्य भारतीतीर्थ जी महाराज इस पवित्र प्राणप्रतिष्ठा महोत्सव को लेकर विरोध प्रकट कर रहे हैं। उन्होंने कहा है कि सभी आस्तिक इस मिथ्याप्रचार पर ध्यान न दें। लगभग पाँच सौ वर्ष के संघर्ष के बाद वैभव के साथ प्राण प्रतिष्ठा समारोह आयोजित हो रहा है, इससे सभी आस्तिकों में हर्ष है। इसी तरह द्वारकाशारदापीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती जी की ओर से भी यह स्पष्टीकरण जारी हुआ है कि उनकी ओर से राम मंदिर के विरोध में कोई संदेश जारी नहीं हुआ है। समाचारों में जो रहा है, वह भ्रामक है। वहीं, ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी का कहना तो यह है कि जब तक देश में गोहत्या बंदी नहीं हो जाती, तब तक वे रामजी के सामने कैसे जा सकते हैं? उनके नाम का उपयोग करके वितंडावाद खड़ा करने वाले सब लोगों को सबसे पहले गोहत्या बंदी के लिए केंद्र सरकार से आग्रह करना चाहिए। बहरहाल, शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी ने तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की खुलकर प्रशंसा की है। प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव में अपनी अनुपस्थिति के विवाद पर मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा है कि “हम भाजपा के प्रशंसक हैं क्योंकि उसने देश में हिन्दू वातावरण बनाया है। हिन्दुओं के सोये हुए स्वाभिमान को जगाया है। आज हिन्दू गौरवान्वित महसूस कर रहा है। हम मोदी के विरोधी नहीं। हम एंटी मोदी नहीं, प्रो-मोदी हैं। हम चाहते हैं कि उनका पतन न हो। बड़ी मुश्किल से उदय हुआ है”। उनका यह वक्तव्य बहुत महत्वपूर्ण है। सही अर्थों में उनका यह वक्तव्य वर्तमान समय में समूचे धर्मनिष्ठ हिन्दुओं के हृदय के उद्गार का प्रतिनिधित्व करता है। जो लोग उनका नाम लेकर विवाद उत्पन्न कर रहे हैं, उन्हें ध्यान से सुनना चाहिए कि शंकराचार्यजी क्या चाह रहे हैं? वे तो मोदी के उदय के पक्षधर हैं। वहीं, गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी तो यहाँ तक कहते हैं कि “प्रधानमंत्री मोदी सेकुलर या डरपोक होते तो राम मंदिर में नहीं जाते। हिन्दुत्व में उनकी निष्ठा है। हिन्दुत्व के प्रति उनकी निष्ठा और समर्पण की मैं प्रशंसा करता हूँ। 500 वर्षों की प्रतीक्षा समाप्त हो रही है। हम बहुत प्रसन्न हैं। सब प्रसन्न है कि भारत के प्रधानमंत्री, जो स्वयं को सनातनी मानते हैं, मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा कर रहे है। जब सब प्रसन्न हैं, तो मुझे नाराजगी क्यों होगी”। स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी के इस वक्तव्य पर तो उन लोगों को अधिक विचार करना चाहिए, जिन्होंने 22 जनवरी के प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव के ‘राम के निमंत्रण’ को ठुकराया है। ऐसे लोगों के लिए शंकराचार्य जी ने डरपोक और सेकुलर विशेषण का उपयोग किया है। चारों मुख्य पीठों के पूज्य शंकराचार्यों के उक्त मनोभाव के आधार पर विवाद का विषय कहाँ रह जाता है। कुछ बातों को लेकर उन्होंने अपना मन्तव्य व्यक्त किया है, वह तो उनका धर्म ही है। उसमें भी उन्होंने स्पष्ट किया है कि धर्म शास्त्र के अनुपाल के संबंध की गई टीकाओं एवं आग्रह को हमारा विरोध नहीं समझा जाए। यह तो प्रत्येक आस्तिक के लिए हर्ष का अवसर है। हिन्दुओं की वर्षों की तपस्या का सुफल प्राप्त हो रहा है। बहरहाल, रामद्रोहियों द्वारा किए जा रहे प्रोपेगेंडा से बचने के साथ ही हिन्दुओं को अवश्य ही ऐसे लोगों/समूहों/संस्थाओं एवं राजनीतिक दलों को चिह्नित करना चाहिए, जो पूज्य शंकराचार्यों की आड़ लेकर एक बार फिर भगवान श्रीराम के मंदिर के संबंध में विवाद उत्पन्न कर रहे हैं।
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