जनजातीय समाज को उसके अधिकार एवं सम्मान देने में मध्यप्रदेश सरकार ने कई नवाचार किए हैं और कानून भी बनाए हैं। हाल ही में जनजातीय बाहुल्य क्षेत्रों में शिवराज सरकार ने पेसा कानून लागू किया है, जो जल, जंगल, जमीन और जनजातीय संस्कृति का संरक्षण सुनिश्चित करेगा। पेसा कानून प्रभावी बन सके और विघटनकारी शक्तियों द्वारा पेसा कानून को लेकर किसी प्रकार का भ्रम समाज में निर्मित न किया जा सके, इसके लिए स्वयं मुख्यमंत्री एवं अन्य मंत्रीगण जन-जागरूकता का कार्य कर रहे हैं। जनजातीय समुदाय को अधिकार सम्पन्न बनाने के साथ ही उसके गौरव को बढ़ाने में भी भाजपा के प्रयास स्तुत्य हैं। इसी क्रम में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ‘क्रांतिसूर्य जननायक टंट्या भील-गौरव यात्रा’ की शुरुआत की है। यह यात्रा जनजातीय बाहुल्य क्षेत्रों से होकर टंट्या मामा की जन्मजयंती (4 दिसंबर) से पूर्व पातालपानी पहुँचेगी। उल्लेखनीय है कि अभी हाल ही में देश ने अखिल भारतीय स्तर पर जननायक बिरसा मुंडा की जयंती को ‘राष्ट्रीय जनजातीय गौरव दिवस’ के रूप में मनाया। मध्यप्रदेश सरकार की पहल पर इस दिवस को राष्ट्रीय स्वरूप मिला है। भाजपा ने इसे कर्मकांड तक सीमित नहीं रहने दिया, बल्कि इस आयोजन के माध्यम से जनजातीय गौरव का स्मरण लोगों को कराया। जनजातीय नायकों के जीवन को समाज के सामने लाने का प्रयास किया। जननायक टंट्या मामा की जिस प्रतिमा के आगे नतमस्तक होकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी भाजपा पर जनजातीय समुदाय का विरोधी होने के मनगढंत आरोप लगा रहे थे, उस भव्य प्रतिमा का निर्माण भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पहल पर भाजपा सरकार ने ही कराया है। टंट्या भील के संघर्ष, बलिदान और उनके प्रेरक जीवन को जन-जन तक पहुँचाने में राष्ट्रीय विचार के संगठनों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। उनके ही प्रयासों का प्रतिफल है कि आज संपूर्ण समाज के बीच योद्धा टंट्या भील ‘टंट्या मामा’ की पहचान के साथ सम्मान पा रहे हैं। सरकार ने उनकी जन्मस्थली को तीर्थ के रूप में विकसित किया है। उनके नाम पर पुरस्कार और सम्मान स्थापित किए। प्रमुख स्थानों का नामकरण जनजातीय समुदाय के नायकों के नाम पर किया है। यह प्रश्न उचित ही है कि इतने वर्षों कांग्रेस की सरकारें राज्य और केंद्र में रहीं, तब क्यों जनजातीय समुदाय से जुड़े नायकों को वह गौरव और सम्मान दिया गया, जो उन्हें आज मिल रहा है। कांग्रेस तब आँखों पर पट्टी डालकर रखती थी, जब जनजातीय समुदाय के इन नायकों के प्रति दुष्प्रचार किया जाता था, उन्हें चोर-डाकू कहा/लिखा जाता था। यह भी नहीं भूलना चाहिए कि कांग्रेस के शासनकाल में ही जनजातीय समुदायों का कन्वर्जन करने के उद्देश्य से मिशनरीज जनजातीय बाहुल्य क्षेत्रों में घुसने में सफल हुए हैं। कन्वर्जन के लिए ईसाई मिशनरीज कांग्रेस के शासनकाल को अपने अनुकूल मानती हैं। भाजपा के साथ उनका बैर है क्योंकि वह उनके कन्वर्जन के खेल में बाधा उत्पन्न करती है।
