क्रिकेट की विश्वकप प्रतियोगिता में इस बार भारत का प्रदर्शन जबरदस्त था। निर्णायक मुकाबले से पहले तक भारत अपराजेय थी। कोई भी भारत के आगे टिक नहीं सका था। क्रिकेट की सभी विधाओं में भारतीय दल का प्रदर्शन अन्य टीमों के मुकाबले कहीं बेहतर था। विशेष रूप से भारत के गेंदबाजों का ऐसा प्रभावशाली प्रदर्शन लंबे समय बाद देखने में आया। इन सब कारणों से ही इस बार भारत के लोगों को पूरी उम्मीद थी कि क्रिकेट का विश्वकप इस बार हम ही जीतेंगे। परंतु कहते हैं न कि सब दिन एक बराबर नहीं होते और क्रिकेट संभावनाओं एवं आशंकाओं का खेल है। यहाँ कभी भी बाजी पलट सकती है। भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच खेले गए अंतिम मुकाबले में यही हुआ। प्रारंभिक मुकाबले में भारत ने जहाँ ऑस्ट्रेलिया को एकतरफा हराया था, वहीं निर्णायक मुकाबले में ऑस्ट्रेलिया उस पर हावी हो गई। हम विश्व विजेता बनने से चूक गए। जैसा कि स्वाभाविक ही था कि जीत की उम्मीद लिए बैठे भारतीय क्रिकेट प्रेमियों को यह हार बर्दाश्त नहीं हुई। जिनके भीतर संवदेनाएं एवं खेल भावनाएं थीं, उन्होंने थोड़ा दु:ख प्रकट किया और इस प्रतियोगिता की अपनी उपलब्धियों पर गर्व किया। याद रखें कि 46 दिन चली इस प्रतियोगिता में 45 दिन भारत विश्व विजेता की तरह खेला। 11 में से 10 मुकाबले जीतनेवाली इकलौती टीम भारत है। प्रतियोगिता में सर्वाधिक रन बनानेवाले बल्लेबाजों और सबसे अधिक विकेट लेनेवाले गेंदबाजों में भी भारत के ही खिलाड़ी शीर्ष पर हैं। परंतु, दुर्भाग्यपूर्ण है कि अपनी इन उपलब्धियों को भुलाकर कुछ संकीर्ण मानसिकता के लोग एवं समूह घृणास्पद टिप्पणियां कर रहे हैं। ये लोग पूरी प्रतियोगिता में बेहतरीन खेल का प्रदर्शन करनेवाली टीम के खिलाड़ियों को अलग-अलग ढंग से लक्षित कर रहे हैं। उनकी आलोचना सम्यक न होकर, जातीय-सांप्रदायिक एवं अन्य कारणों के आधार पर है। यह भी स्पष्ट होता है कि कुछ लोग पराजय से दु:खी और निराश लोगों की संवेदनाओं से खिलवाड़ करना चाहते हैं। कांग्रेस और कम्युनिस्ट विचारधारा से संबंध रखनेवाले लोग, जिनमें साधारण लोग ही नहीं अपितु कलाकार, लेखक, पत्रकार और नेता भी शामिल हैं- भारतीय क्रिकेट टीम की पराजय के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गुजरात राज्य और खेल मैदान (नरेन्द्र मोदी स्टेडियम) को दोष दे रहे हैं। इस बेतुकी बयानबाजी के दो अर्थ हैं। एक, यह वर्ग प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गुजराज के प्रति भयंकर नफरत मन में लेकर चलता है। यह वर्ग स्वयं को सहिष्णु, संविधान रक्षक, सेकुलर और समतामूलक बताता है लेकिन एक व्यक्ति के प्रति हद दर्जे की घृणा मन में रखता है। नफरत का स्तर इतना है कि यह वर्ग प्रधानमंत्री मोदी से जुड़े राज्य एवं खेल मैदान के प्रति भी घृणा का भाव रखता है। दो, यह वर्ग भावुक खेल प्रेमियों की संवेदनाओं से खेलने की कोशिश कर रहा है। जब वे निराश हैं, तब उनके मन में यह बात डालने की कोशिश की जा रही है कि हार का कारण प्रधानमंत्री मोदी हैं। तथाकथित प्रबुद्ध कहे जानेवाले लोगों की टिप्पणियां पढ़कर आपको इसका अंदाजा सहज ही हो जाएगा। बहरहाल, जब हम जीत के प्रति आश्वस्त रहते हैं, तब हार हिस्से आए तो निराश होना स्वभाविक ही है। हमने देखा कि हमारे सभी खिलाड़ी बहुत दु:खी हुए। ऐसे में सबओर निराशा का वातावरण बनाना समझदारी नहीं है। अपनी उपलब्धियों पर गर्व करते हुए हमें आगे बढ़ना चाहिए। अभी आसमां गिरा नहीं, आगे और भी जहाँ हैं। राष्ट्रकवि मैथलीशरण गुप्त की पंक्तियां याद करके नये सपने और लक्ष्य लेकर हम अपने कर्तव्य पथ पर अग्रसर हों- “नर हो, न निराश करो मन को”। विश्वास है कि हमारी यह टीम आनेवाली अन्य बड़ी प्रतियोगिताओं में बड़ी जीत दर्ज करेगी।
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