एक ओर समूचा देश श्रीराम की भक्ति में डूबा है। रामभक्त 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा उत्सव की तैयारी में हैं। अयोध्या धाम को नया स्वरूप देने में केंद्र और राज्य की भाजपा सरकारें उत्साह एवं समर्पण के साथ जुटी हुई हैं। वहीं दूसरी ओर, तथाकथित विपक्षी गठबंधन के विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रमुख नेता लगातार भगवान श्रीराम और श्रीराम मंदिर को लेकर नकारात्मक, व्यंग्यात्मक एवं विवादास्पद बयानबाजी कर रहे हैं। कांग्रेस के नेता भी इस प्रतिस्पर्धा में पीछे नहीं है। ऐसे में भला हिन्दू समाज कांग्रेस और विपक्षी गठबंधन के प्रति सहानुभूति का भाव भी कैसे रख पाएगा? कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार ने अचानक से 30 साल पुराने मामले खोल कर श्रीराम मंदिर आंदोलन में शामिल हुए रामभक्तों को गिरफ्तार करना प्रारंभ कर दिया है। इधर, महाराष्ट्र में भगवान श्रीराम के संदर्भ में कांग्रेस के गठबंधन में शामिल शरद पवार वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता डॉ. जितेंद्र आव्हाड ने घोर आपत्तिजनक बयान दे दिया। उन्होंने भगवान श्रीराम को मांसाहारी ही बता दिया। राकांपा के नेता के इस बयान के बाद न केवल आम लोगों में अपितु साधु-संतों में भी गहरा आक्रोश है। हर बार की भाँति इस बार भी विपक्षी गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस ने राम विरोध इस बयान पर कतई आक्रोश व्यक्त नहीं किया है। जिस भाजपा पर यह सब मिलकर राम के नाम पर राजनीति करने का आरोप लगाते हैं, उसी भाजपा ने आगे बढ़कर राम विरोधी बयानबाजी का विरोध किया है। भाजपा नेता राम कदम ने तो धार्मिक भावनाएं आहत करने के मामले में डॉ. जितेंद्र आव्हाड की पुलिस में शिकायत कर दी है। यह स्वाभाविक ही है कि जो राम के सम्मान में खड़ा होगा, उसे ही हिन्दू समाज राम भक्त मानेगा। राम के प्रति उसकी ही श्रद्धा पर हिन्दुओं को विश्वास होगा। ऐसे नेताओं और राजनीतिक दलों का विश्वास कैसे किया जा सकता है जो एक ओर कहते हैं कि राम सबके हैं, राम उनके भी हैं परंतु दूसरी ओर भगवान राम को लेकर आपत्तिजनक बयानबाजी भी करते रहते हैं। कांग्रेस के ही बड़े नेता दिग्विजय सिंह, जो अपने विवादित बयानों के कारण मीडिया की सुर्खियों में बने रहते हैं, उन्होंने भी राम मंदिर को लेकर विवाद खड़ा करने का प्रयास किया है। मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने अयोध्या में स्थापित की जाने वाली राम लला की नई मूर्ति को लेकर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा है कि जिस मूर्ति को लेकर पूरा झगड़ा हुआ वो कहां है? नई मूर्ति कहां से आ रही है? नई मूर्ति की आवश्यकता क्यों पड़ी? दिग्विजय सिंह के ये प्रश्न एक तरह से उलाहना हैं और वह राम मंदिर विरोधी उस विमर्श का हिस्सा हैं, जो यह स्थापित करता है कि 1949 में मंदिर में जबरन मूर्तियां रखी गईं। कांग्रेस नेता को समझना चाहिए कि मूर्तियों को लेकर झगड़ा न तो तब था और न ही आज है। उन मूर्तियों का अपना महत्व है। टैंट से लेकर निर्माणाधीन राम मंदिर में उनकी ही पूजा होती आ रही है। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र एवं राम मंदिर से जुड़े साधु-संन्यासी पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि पुरानी मूर्तियां ‘चल मूर्ति यानी उत्सव मूर्ति’ के रूप में मंदिर में ही विराजेंगी, जिनके दर्शन श्रद्धालु कर सकेंगे। बहरहाल, ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे-जैसे प्राण प्रतिष्ठा की तिथि नजदीक आ रही है और समूचा देश राममय होता नजर आ रहा है, उसे कुछ लोग मन से स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। इसलिए ऐसे लोग आए दिन कोई न कोई विवादित बयान देते रहते हैं।
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