इस्लामिक स्टेट ने हाल ही में अफगानिस्तान में एक गुरुद्वारे पर हमला करके बता दिया है कि चरमपंथी इस्लामिक समूहों का जहां वर्चस्व होता है, वहां अन्य मत–विश्वास के अनुयायियों के लिए कोई स्थान नहीं होता है। इस हमले में तीन लोगों की मौत हुई है। हमले की जिम्मेदारी लेते हुए इस्लामिक स्टेट ने कहा है कि यह हमला कुछ दिनों पहले भारत में पैगंबर को लेकर की गई विवादित टिप्पणी की प्रतिक्रिया में किया गया है। हालांकि अफगानिस्तान सरकार सहित विभिन्न देशों ने इस घटना की निंदा की है। संयुक्त राष्ट्र ने भी तल्ख टिप्पणी की है। इस्लामिक स्टेट के नक्शे कदम पर अगर अन्य व्यवस्थाएं भी चल पड़ें तो लोगों का जीना मुश्किल हो जाए। सोचिए, भगवान शिव पर इस बीच कितने ही बेहूदे बयान आए लेकिन किसी ने उन बयानों के लिए किसी की हत्या नहीं की। दु:ख की बात यह है कि इस्लामिक स्टेट हो या इस प्रकार के अन्य चरमपंथी गिरोह, उन पर लगाम लगाने की जगह स्थानीय सरकारें उनको ढील देती रहती हैं। ऐसे में कट्टरपंथियों का दुस्साहस बढ़ता है। उल्लेखनीय है कि इस्लामिक स्टेट ने कुछ दिनों पहले ही ऐसे हमले की चेतावनी दे दी थी। फिर भी वहां की सरकार इसे रोक पाने में कैसे नाकाम रही। पिछले तीन-चार वर्षों में अफगानिस्तान में हिंदू और सिख उपासना स्थलों पर कई बड़े हमले हुए हैं। पिछले वर्ष अगस्त में वहां तालिबान सरकार बनने के बाद ऐसे हमलों में तेजी आई है। अगर सचमुच तालिबान सरकार दूसरे धर्मों के प्रति सहिष्णु होती, तो ऐसे हमले नहीं हो पाते। तालिबान और इस्लामिक स्टेट के सैद्धांतिक आधार समान हैं, इसलिए आइएसआइएस को वहां अपने पांव फैलाने में ज्यादा सहूलियत हुई है। जब अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा हुआ था, तभी आशंका जताई जाने लगी थी कि हिंदू और सिख समुदाय के लोगों को ऐसी हिंसा का सामना करना पड़ सकता है। ताजा घटना के बाद भारत सरकार ने सौ से अधिक अफगान सिखों और हिंदुओं को इलेक्ट्रानिक वीजा जारी किया है। मगर अब भी वहां जो बचे हैं, उन्हें इस तरह के हमले की आशंका में दिन गुजारने होंगे। तालिबान के कब्जे के समय ही बहुत सारे अफगान सिख और हिंदू भारत लौटना चाहते थे। वहां रह रहे भारतीय मूल के बहुत सारे लोगों को तो वहां से निकाल लिया गया, मगर अफगान मूल के लोगों को निकालने की प्रक्रिया में तेजी नहीं लाई गई। हालांकि वहां बड़ी संख्या में अफगान सिख और हिंदू सदियों से रह रहे हैं, वहां उनके घर और प्रतिष्ठान हैं। उन्हें छोड़कर आना आसान काम नहीं है। उन्हें लग रहा था कि तालिबान सरकार के साथ भारत के रिश्ते मधुर बनेंगे, तो उन पर हमले की आशंका नहीं रहेगी। इसलिए कि अफगानिस्तान में भारत की अनेक विकास परियोजनाएं चल रही थीं। भारत ने इमदाद में रसद और दवाएं वगैरह भी पहुंचाई। मगर सांप्रदायिक कट्टरता मानवीय तकाजों को भला कहां देखती है। इस्लामिक स्टेट इस्लामी नियम-कायदों के आधार पर सत्ता का पक्षधर है। वर्तमान परिस्थिति में अफगानिस्तान में हिंदुओं पर हमले और बढ़ सकते हैं। पूर्व में भी वहां कट्टरपंथी समूहों के निशाने पर हिंदू रहे हैं। अफगानिस्तान में हिन्दू सुरक्षित रहें, इसके लिए स्थानीय सरकार को चिंता करनी होगी और भारत को भी अफगानिस्तान की तालिबानी सरकार पर कूटनीतिक दबाव बनाना चाहिए। दुनिया में जहां भी हिंदू रह रहे हैं, संकट के समय में वे सब आशा के साथ भारत की ओर देखते हैं।
