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भारत का मखौल उड़ाती वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट 2023

  • डाॅ. विशेष गुप्ता
    हाल ही में 20 मार्च को इंटरनेशनल डे ऑफ हैप्पीनेस के अवसर पर वर्ल्ड हैपिनेस रिपोर्ट-2023 प्रकाशित हुयी है। खुशहाली के मानकों पर 150 देशों की सूची में भारत को 125 वॉ स्थान मिला है। खुशहाली के मामले में भारत ने पिछले साल के मुकाबले भले ही इस बार मात्र तीन अंकों की बढ़त बनायी है। लेकिन हैरत की बात है कि इस सूची में हमारे पड़ौसी मुल्क पाकिस्तान को 108 वें, बांग्लादेश को 118वें, नेपाल को 78वें, म्यामांर को 72वें और चीन को 64वीं पायदान पर रखकर भारत से बेहतर ऑका गया हैं। गौरतलब है कि खुशहाली से जुड़ी यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र की संस्था सस्टेनेबल डिवेलपमेन्ट साफल्यूशंस नेटवर्क तैयार करती है। पहली वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट 2012 में जारी की गयी थी। इस बार इसका थीम-संकट के समय भरोसा और सामाजिक संपर्क रखा गया था। 2023 में भारत की यह रैंंकिंग विगत तीन साल यानी 2020-2022 के औसत आधार पर लोगों के जीवन के मूल्यांकन पर आधारित है।
    खुशहाली के इस सूचकांक को मापने के लिए इसमें कई कसौटियॉ रखी गई हैं। खासतौर पर इसमें जीडीपी, सामाजिक सहयोग, उदारता, भ्रष्टाचार का स्तर, सामाजिक स्वतंत्रता और शिक्षा व स्वास्थ्य, मंहगाई, अर्थव्यवस्था, उद्यम और रोजगार के अवसर, निजी स्वतन्त्रता, सामाजिक सुरक्षा तथा जीवन स्तर में होने वाले बदलाव जैसे मुद्दों को इसकी रैंकिंग का आधार बनाया गया है। इस रिपोर्ट की खास बात यह है कि इसमें वही मानक रखे गये हैं जिन्हें लोगों को एक सामान्य जीवन जीने के लिए न्यूनतम माना गया है। परन्तु अफसोस की बात है कि भारत इन मानकों पर खरा नहीं उतर पाया और हमारे पड़ोसी छोटे देश जो खुद ही अपनी आर्थिक,सामाजिक और राजनैतिक मुश्किलों और बदहाली से जूझ रहे हैं, वे खुशहाली के मामले में भारत से आगे निकलने में कामयाब हो गये।
    इस रिपोर्ट की कुछ विड़ंबनायें भी हैं कि फिनलैड़ जैसा छोटा देश जिसकी आबादी मात्र 55 लाख है,वह खुशहाली के इन मानकों पर आज प्रथम स्थान पर टिका हुआ है। दूसरी ओर अफगानिस्तान सबसे निचली यानी 137वीं पायदान पर रहा है। डेनमार्क की आबादी केवल 58.6 लाख है,वह दूसरे स्थान पर और आइसलैंड जिसकी आबादी महज 3.73 लाख है वह हैप्पीनेस के तीसरे स्थान पर टिका है। अमेरिका के बाद ब्रिटेन 19 वें पायदान पर रहा है। तकलीफदेय यह है कि भारत के मुकाबले चीन 64 वें तथा पाकिस्तान 108 वें स्थान पर रहकर इन दोनों देशों ने भारत जैसी विश्व की पॉचवीं अर्थव्यवस्था वाले देश को पछाड़ दिया हैे।
    कड़वा यच यह है कि वर्ल्ड हैप्पीनेस की यह हालिया रिपोर्ट कुछ संदेह पैदा करती है। मसलन चीन की बात करें तो आपको ज्ञात होगा कि वहॉ लोगों को सामाजिक,आर्थिक और धार्मिक आजादी भी ठीक से नही मिली दूसरे कोरोना काल में दुनिया ने चीन को कटघरे में खड़ा किया,फिर भी वह भारत के 125 के मुकाबले 64 वें स्थान पर रहा है। आर्थिक रुप से बदहाल श्रीलंका में जहॉ नागरिक अधिकारों को खुले आम कुचला गया,वह हैप्पीनेस की सूची में आज भारत से बेहतर दर्शाया गया है। पाकिस्तान में जहॉ लोग भूख से बेहाल हैं,अर्थव्यवस्था जहॉ आखिरी सॉसे गिन रही है वहॉ हैप्पीनेस के मामले में पाकिस्तान को भारत से बेहतर प्रस्तुत किया गया है। बॉग्लादेश की स्थिति भी किसी से छिपी नहीं है। देश की आजादी के अमृतकाल काल में विकास की ओर लगातार बढ़ रहे भारत से जुड़े तथ्यों के पक्षपाती विश्लेषण के आधार पर उसकी प्रसन्नता को कम ऑकना देश की राजनैतिक सत्ता को चुनौती देने से कम नहीं हैं। अपने राष्ट्रीय स्वाभिमान के लिए उसका विरोध होना स्वाभाविक ही हैं।
    संदर्भवश यहॉ विश्व में उभरते और बढ़ते भारत से जुड़ीं हालिया दो सर्वे रिपोर्टस भी गौरतलब हैं। पहली रिपोर्ट कंसल्टिंग फर्म हैप्पीप्लस की -दि स्टेट आफॅ हैप्पीनेस 2023 है जिसमें साफ उल्लेख है कि 65 प्रतिशत लोग तुलनात्मक रुप से खुश हैं। कहना न होगा कि यह रिपोर्ट 36 राज्यों और केन्द्र शासित क्षेत्रों के 14 हजार से अधिक उत्तरदाताओं की प्रतिक्रिया पर आधारित है। दूसरी सर्वे रिपोर्ट इप्सोस ग्लोबल हैप्पीनेस से जुड़ी है जिसमें कहा गया है कि भारत सहित दुनिया के 73 प्रतिशत लोग अपने जीवन में संतुष्ट हैं। अभी हाल ही में कोलंबिया विश्वविद्यालय में प्रोफेसर व अर्थशास्त्री अरविंद पनगड़िया और इंटेलिंक एडवाइजर्स के विशाल मोरे ने अपने शोध पत्र शीर्षक-भारत में गरीबी और असमानता-कोविड़-19 से पहले और बाद- में साफ कहा है कि कोविड़ के दौरान देश में ग्रामीण और शहरी के साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर असमानता कम हुयी है। ऐसा नहीं है कि देश में खुशहाली लाने के प्रयास नहीं किये गये। देश में पिछले आठ-नौ सालों में जन-धन योजना,उज्ज्वला योजना,प्रधानमंत्री आवास योजना,कौशल विकास,डिजिटल इंड़िया,आयुष्मान भारत व ओडीएफ जैसी न जाने कितनी योजनायें कार्यान्वित की गयीं।
    जिस कोविड काल को जोड़कर यह रिपोर्ट तैयार की गयी है उस समय भारत ने अपने 100 करोड़ लोगों को ड़बल कोरोना बैक्सीन देने के साथ-साथ दुनिया को सुरक्षा किट और दवाईयों का मुफ्त वितरण भी किया। निश्चित ही इनका प्रभाव लोगों की प्रसन्नता को बढ़ाने में हुआ है। जहॉ पूरी दुनिया बूढ़ी हो चली है,वहीं भारत की गिनती इस समय विश्व में सबसे युवा देश में हो रही है। आज भारत में युवा निराश और हताश नहीं है। वह पहले की तुलना में अधिक सुरक्षित और खुश है। दरअसल खुशहाली शारीरिक जरूरतों की पूर्ति के साथ-साथ एक मानसिक घटना भी है। शरीर की जरूरतें तो लोग जैसे-तैसे पूरी कर ही लेंगे, परन्तु लोगों को वास्तविक सुख की अनुभूति मन के स्तर पर ही होती है। परन्तु इस वैश्विक रिपोर्ट में जिस प्रकार भारत के विकास और भारतीय खुशहाल मन को नकारकर वास्तविक तथ्यों के साथ पक्षपात किया गया है,उस पर सवाल उठना और उठाना लाजमी है।

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