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- रघु ठाकुर
पिछले दिनों अचानक अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन यूक्रेन पहुंचे और उन्होंने यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की से मुलाकात कर उन्हें पूरी मदद का आश्वासन दिया। उनकी यात्रा गोपनीय रखी गई थी और यूक्रेन की राजधानी कीव को अमेरिकी सुरक्षा विमानों से घेर दिया गया था। अमेरिका के राष्ट्रपति की सुरक्षा किया जाना स्वभाविक है और इस बात का भी संकेत है कि अमेरिकी प्रशासन रूस से कितना भयभीत है। जो बाइडन के दौरे की सूचना मिलने के तत्काल बाद रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने अमेरिका के साथ 13 वर्ष पहले की गई परमाणु अप्रसारण संधि जो परमाणु परीक्षण पर रोक लगाने की थी को एक तरफा निरस्त करने की घोषणा कर दी। सन्धियों को एक तरफा निरस्त किया जाना अंतराष्ट्रीय कानूनों के द्रष्टिकोण से भी गलत है और संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर व प्रस्ताव के भी खिलाफ है। परंतु पुतिन ने 21 फरवरी को ही अपने इस कदम की सफाई देते हुए कहा कि ‘‘रूस शुरूआत से जंग नहीं चाहता। उन्होंने कहा कि मास्को ने तमाम कूटनीतिक प्रयास किये और नाटो के साथ शांति वार्ता का प्रस्ताव दिया लेकिन नाटो और अमेरिका ने इन्हें मंजूर नहीं होने दिया। इस घोषणा से रूस ने यह भी संकेत अमेरिका, यूरोप व दुनिया को दे दिया कि अगर अमेरिका व यूरोप खुले तौर पर यूक्रेन का समर्थन करते रहेंगे या युद्ध में हिस्सेदारी करेंगे तो अब रूस परमाणु हथियारों के प्रयोग करने के लिये स्वतंत्र है। यह आश्चर्य की बात है कि रूस की इस घोषणा के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ ने कोई युद्ध को रोकने का स्पष्ट निर्देश नहीं दिया। इतना अवश्य हुआ कि संयुक्त राष्ट्र संघ में रूस की सेनाओं की यूक्रेन से वापिसी का प्रस्ताव आया।
इस प्रस्ताव पर लगभग 142 देशों ने अपना समर्थन व्यक्त किया कि रूसी सेनाओं को यूक्रेन से वापिस बुलाया जाना चाहिये परन्तु यह आश्चर्यजनक है कि भारत जिसके शासक अपने आपको विश्व गुरू या विश्व नेता होने का दावा करते हैं उन्होंने इस प्रस्ताव पर मतदान से अलग रहने का निर्णय किया। यह एक प्रकार से विश्व जनमत से अलग होना है। इसकी प्रतिक्रिया विश्व में सरकारी स्तर पर कितनी हुई इसका आंकलन करना अभी कठिन है। क्योंकि सरकारें अमूमन अपने हितों के आधार पर तय करती है, परन्तु विश्व जनमत में अवश्य इसकी प्रतिक्रिया भारत व भारत के शासकों के खिलाफ हुई है। अब दुनिया का आम इंसान युद्ध नहीं चाहता और अपनी आजादी को भी कायम रखना चाहता है। रूस में राष्ट्रपति पुतिन के द्वारा संविधान संशोधन कर 2035 तक राष्ट्रपति बने रहने का प्रस्ताव एक प्रकार से लगभग आजीवन बने रहने का प्रस्ताव है। और चूंकि रूसी व्यवस्था एक अर्थ में सैन्य नियंत्रण व्यवस्था है अतः जनमत का असंतोष या विरोध सार्वजनिक रूप से उजागर नहीं हो पाता। दूसरे रूसी समाज के मन में छिपा राष्ट्रवाद भी पुतिन का मानसिक सहायक है क्योंकि आम रूसी पुराने यू.एस.एस.आर. के (व्यापक रूस के) पुराने स्वरूप को पुनः हासिल करना चाहता है। जो देश रूस से बिखराव के बाद अलग हुये उन्हें किसी भी तरह या बल प्रयोग के द्वारा रूस में वापिस मिलाने के प्रति उनकी मूक सहमति है, इसलिये भले ही यूरोप या अमेरिका नियंत्रित मीडिया कितना भी प्रचार करे अभी तक रूस में पुतिन के खिलाफ कोई सशक्त आवाज नहीं उठ पाई है।