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विभाजन का दंश कौन जिम्मेदार

  • अखिलेश श्रीवास्तव
    हां, वही अल्लामा इकबाल जिन्होंने लिखा था सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा। जिसे हम आज भी राष्ट्र गान के बाद लगभग दूसरे नंबर पर रखते हैं। अल्लामा इकबाल ने इसी गीत में लिखा था कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा है दुश्मन दौरे जहां हमारा। ये लिखने वाले मोहम्मद इकबाल ने ही पाकिस्तान की भी इबारत लिखी।
    उसने तबके इलाहाबाद और अभी के प्रयाग राज में हुए मुस्लिम लीग के अधिवेशन में पाकिस्तान की संकल्पना रखी, मोहम्मद इकबाल लीग के इस अधिवेशन की अध्यक्षता कर रहे थे। इसी अधिवेशन में पाकिस्तान का प्रारूप तय। सारे जहां से अच्छा वाले मोहम्मद इकबाल ने कहा कि मैं चाहता हूं कि पंजाब, उत्तर पश्चिम सीमा प्रांत, सिंध और बलूचिस्तान को मिलाकर मुसलामानों के लिए एक अलग देश बने। उसने कहा कि भारत के मुसलामानों की यहीं अंतिम नियति है। इकबाल ने 29 दिसंबर 1930 को ये कहा और इसी आधार पर गवर्नमेंट आॅफ इंडिया 1935 सामने आया। जिसके आधार पर मुसलमानों के लिए अलग से निर्वाचन क्षेत्र बनाए गए। बड़ी गलती कांग्रेस ने यह की कि जब देश में चुनाव हुए तो यूनाइटेड प्रोविंस की 228 सीटों में 64 मुसलमानों के लिए आरक्षित की गई। कांग्रेस का हश्र यह हुआ कि उसका एक मुस्लिम प्रत्याशी जीतकर आया और नींव पड़ी विभाजन की। कांग्रेस के अध्यक्ष रहे मौलाना आजाद अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘इंडिया विंस फ्रीडम’ के पेज नंबर 161 पर लिखते हैं कि मुस्लिम लीग 1937 में ही खत्म हो गई होती। लेकिन यूनाइटेड प्रोविंस से मुस्लिम लीग को ताकत मिली। जिन्ना ने इसका भरपूर फायदा उठाया और पाकिस्तान बन गया ।
    जिस विभाजन की सीमाएं 30 मिनट में अंग्रेजों ने तय कर दी, उसके बारे में डॉक्टर अंबेडकर ने एक किताब लिखी है। डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की इस किताब का नाम ‘पाकिस्तान आर द पार्टीशन ऑफ इंडिया’ है जो 1945 में ही प्रकाशित हो गई। बाबा साहब ने वर्षों पहले ही सचेत कर दिया था कि अगर भारत का बंटवारा होता है तो पाकिस्तान में हिंदुओं और सिखों का भविष्य सुरक्षित नहीं रहेगा और अंततः जैसा कि डॉक्टर अंबेडकर ने चेताया था । दुर्भाग्य से ऐसा ही हुआ। सांप्रदायिक विभाजन का हश्र बहुत ही भयावह था। लियोनार्ड मूसली अपनी किताब के प्रश्न 279 पर लिखता है कि अगस्त 1947 से अप्रैल 1948 तक ही 1 लाख 40 हजार लोगों का विस्थापन हुआ। इस काल में छह लाख की हत्या कर दी गई । बच्चों को पैरों से उठाकर उनके सिर दीवार से फोड़ दिए गए।
    माउंटबेटन का प्रेस सलाहकार एलन कैंप विल लिखता है कि 21 सितंबर 1947 की सुबह गवर्नर जनरल के डकोटा हवाई जहाज से लॉर्ड माउंटबेटन के साथ हालात का जायजा लेने कुछ अंग्रेज अधिकारी, एलन, नेहरू जी, पटेल, नियोगी ओर राजकुमारी अमृत कौर पूर्वी व पश्चिमी पंजाब का दौरा करने निकले। जब यह नेता और अंग्रेज भटिंडा पहुंचे तो भयंकर उथल-पुथल का आभास हो गया। यह बड़ा रेलवे स्टेशन है, आदमियों से भरी दो ट्रेन स्टेशन पर खड़ी थी। कुछ विस्थापित ट्रेन की छत पर चढ़े थे। कुछ खिड़कियों और पैदानों पर लटके थे यहां तक की इंजन के ऊपर भी चढ़े थे। इस दल को फिरोजपुर पहुंचने पर भी विस्थापितों से लदी ऐसी ही ट्रेने मिली। रावी पहुंचते-पहुंचते जन समुदाय के इस भयंकर विस्थापन के आकार प्रकार का पहला विहंगम दृश्य हमारे सामने आया। पलायन पर मजबूर लोगों के पहले काफिले की झलक इस दल ने फिरोजपुर पर देखी। इसका पीछा करते हुए यह लोग रावी नदी के ऊपर बहुत दूर तक उड़े। विस्थापितों के इस दुर्भाग्यशाली प्रवाह के साथ 50 मील तक उड़ने पर भी उसका छोर ना मिला। विस्थापन का यह आधिकारिक सर्वे था। इसलिए यह न सिर्फ महत्वपूर्ण है बल्कि अंदाजा लगाया जा सकता है कि उसे दौर में क्या स्थितियां रही होगी। सबसे पहले ध्यान देना होगा कि यह दौरा 21 सितंबर को हुआ। यानी विभाजन के 38 दिनों बाद। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि विभाजन का दंश कुछ दिनों नहीं बल्कि महीना झेला गया था। बड़ा प्रश्न यह है कि इतने दिनों बाद क्यों हवाई सर्वे हुआ? विभाजन से पहले और उसके बाद अंग्रेजों के साथ रात्रि भोज दोपहर के लंच और सुबह के नाश्ते में कौन-कौन लोग शामिल रहे?

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