114
- गिरीश्वर मिश्र
भारत के चार प्रमुख राज्यों में हुए विधानसभा के ताजे चुनाव नतीजे कई अर्थों में आम आदमी और राजनीति के पंडितों हर किसी के लिए बेहद चौंकाने वाले साबित हुए हैं । पांचवा राज्य पूर्वोत्तर का मिजोरम है जहां जेडपीएम को जीत मिली। इस क्षेत्रीय पार्टी ने मिजो अस्मिता को आधार बनाया। लाल दुहोमा की पार्टी ने कुछ ही वर्षों में अपने लिए पर्याप्त समर्थन जुटा लिया। तीन प्रदेशों में भाजपा और एक में कांग्रेस की भारी जीत दर्ज हुई है। कांग्रेस ने दो राज्य गंवाए और एक नया राज्य हासिल किया। जनमत की सघन और तीव्र अभिव्यक्ति करते इन आशातीत परिणामों की व्याख्या किसी एक सूत्र से नहीं की जा सकती। जनता ने स्थानीय परिस्थितियों और राष्ट्रीय स्तर पर उभरते घटनाक्रम की निजी व्याख्या की। इस चुनाव में प्रत्याशियों की अपनी साख की भी खास भूमिका रही। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के उप मुख्यमंत्री जू देव और तेलंगाना में बीआरएस के मुख्यमंत्री केसीआर और कांग्रेस के मोहम्मद अजहरूद्दीन, मध्य प्रदेश के गृह मंत्री रहे नरोत्तम मिश्र जैसों की पराजय इसी के उदाहरण हैं।
चुनाव के लिए सामान्य परिवेश रचने में भ्रष्टाचार के आरोप, राजनीतिक दलों की अंदरूनी खींचतान, योजनाओं और वादों का जमीनी स्तर पर लागू न होना, और जातीय संतुलन साधने में विफलता ने मतदाता की प्रेरणाओं को निश्चित रूप से प्रभावित किया। दूसरी ओर मध्य प्रदेश के जनादेश ने एक भिन्न चित्र प्रस्तुत किया। वहां के मुख्यमंत्री लम्बी अवधि से सत्ता में रहे। सोशल मीडिया पर मामा की विदाई का वीडियो खूब चला परंतु शिवराज सिंह की जनाभिमुखी यात्रा अनथक चलती रही। लाड़ली बहना जैसे महिला सशक्तीकरण के उनके प्रयास विशेष रूप से प्रभावी साबित हुए । परिस्थिति की जटिलता को देखते हुए केंद्रीय मंत्रियों को मैदान में उतारा गया।
प्रधानमंत्री मोदी की रैलियों ने पूरे माहौल में जान भरी और इन सब प्रयासों के परिणाम एंटी इनकंबेंसी और राजनीतिक थकान को झुठला दिया। चौहान छठीं बार बुधनी से चुनाव जीते। छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री बघेल की वापसी को लेकर सब लोग आश्वस्त लग रहे थे। रमन सिंह जरूर बहुमत का दावा कर रहे थे जो भाजपा की रणनीति, मोदी जी का आकर्षण और सरकार की कमजोरियों के चलते सही साबित हुआ। दक्षिण में तेलंगाना में कांग्रेस की जीत जनता में एक दशक पुरानी सत्ता के विरोध की मनःस्थिति का परिणाम था और कांग्रेस की भारत जोड़ो रैली का भी योगदान रहा। कांग्रेस की रणनीति बेहद प्रभावी साबित हुई और केसीआर को उनकी प्रलोभन वाली तमाम योजनाओं का लाभ न मिल सका।