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- रमेश सर्राफ धमोरा
रोटी, कपड़ा और मकान मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताएं मानी जाती हैं। जिसके बिना मनुष्य का जीवन बहुत मुश्किल है। इसमें रोटी सबसे महत्वपूर्ण है। क्योंकि रोटी के बिना तो मनुष्य जिन्दा भी नहीं रह सकता है। खाद्य सुरक्षा का उद्देश्य यह सुनिश्चित किया जाना है कि हर व्यक्ति को पर्याप्त मात्रा में सुरक्षित और पौष्टिक भोजन मिल सके। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार दुनिया में हर दस में से एक व्यक्ति दूषित भोजन का सेवन करने से बीमार पड़ जाता है। जो कि सेहत के लिए एक बड़ा खतरा है। कोरोना महामारी के संक्रमण को देखते हुए इस बार विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस संक्षिप्त रूप में मनाया जाएगा। जिसमें लोगों को सेहत से जुड़े मुद्दों पर ऑनलाइन एक-दूसरे के साथ बातचीत करने का मौका मिलेगा।
इस बार हम छठवां विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस मना रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार इससे खाद्य सुरक्षा लेकर लोगों में जागरूकता फैलाई जा सकती है और विश्व स्तर पर खाद्य पदार्थों से होने वाली बीमारियों को भी ध्यान में लाया जा सकता है। इस दिन को मनाने के पीछे खाद्य सुरक्षा के प्रति लोगों को जागरूक करने का उद्देश्य था। जो खराब भोजन का सेवन करने की वजह से गंभीर रोगों के शिकार बन जाते हैं।
भोजन की कमी व दूषित भोजन खाने से प्रतिवर्ष हजारों लोगों की जान चली जाती है। इसलिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने विश्व स्वास्थ्य संगठन और खाद्य और कृषि संगठन को दुनिया भर में खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देने के प्रयासों का नेतृत्व करने और पौष्टिक खाने के प्रति लोगों को जागरुक करने की जिम्मेदारी दी है। संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा दिसंबर 2018 में पहली बार खाद्य और कृषि संगठन के सहयोग से विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस मनाया था। इसके बाद पहली बार 7 जून 2019 में विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस मनाया गया था। तब से हर वर्ष 7 जून को विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस मनाया जाने लगा है।
भारत में अनाज को अन्नदेव का दर्जा प्राप्त है। यही कारण है कि हमारे देश में भोजन झूठा छोड़ना या उसका अनादर करना पाप माना जाता है। मगर आधुनिकता के चक्कर में हम अपने पुराने संस्कार भूल गए हैं। हमारे यहां शादियों, उत्सवों या त्यौहारों में होने वाली भोजन की बर्बादी से हम सब वाकिफ हैं। इसके उपरांत भी हम इन अवसरों पर ढेर सारा खाना कचरे में फेंकते हैं। कई बार तो घरों के आसपास फेंके गए भोजन से उठने वाली दुर्गंध एवं सड़ांध वहां रहने वालों के लिए परेशानी खड़ी कर देती हैं। शादियों में खाने की बर्बादी को लेकर भारत सरकार भी चिंतित है। खाद्य मंत्रालय ने कहा है कि वह शादियों में मेहमानों की संख्या के साथ ही परोसे जाने वाले व्यंजनों की संख्या सीमित करने पर विचार कर रहा है। इस बारे में विवाह समारोह अधिनियम, 2006 कानून भी बनाया गया है। हालांकि इस कानून का कड़ाई से कहीं भी पालन नहीं किया जाता है।
भारत में हर वर्ष जितना भोजन तैयार होता है उसका एक तिहाई बर्बाद चला जाता है। बर्बाद जाने वाला भोजन इतना होता है कि उससे करोड़ों लोगों की खाने की जरूरत पूरी हो सकती है। एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि भारत में बढ़ती सम्पन्नता के साथ ही लोग खाने के प्रति असंवेदनशील हो रहे हैं।