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ईडी के विरुद्ध हिंसा यूं ही नहीं

  • अवधेश कुमार
    प्रवर्तन निदेशालय या ईडी द्वारा पश्चिम बंगाल में छापे के दौरान हिंसा ने संपूर्ण देश को विचलित किया है। तृणमूल कांग्रेस नेता शेख शाहजहां के घर पर छापेमारी के दौरान 2000 से ज्यादा लोगों ने हमला कर न सिर्फ एड की गाड़ियां थोड़ी बल्कि अधिकारियों को घायल किया जिन्हें गंभीर स्थिति में अस्पताल में भर्ती करना पड़ा। ईडी कई राज्यों में हमले का शिकार हुई है। कहीं-कहीं स्थानीय पुलिस ने सरकार के इशारे पर ईडी अधिकारियों को गैर कानूनी तरीके से रोका भी है, परंतु इस तरह की भयानक हिंसा दूसरी जगह नहीं हुई। राज्यपाल को हस्तक्षेप करते हुए कहना पड़ा है कि राज्य में कानून का राज काम करना पड़ेगा और शाहजहां शेख की गिरफ्तारी के लिए विशेष रूप से पुलिस महानिदेशक को निर्देश तक देना पड़ा है। केवल भाजपा अगर तृणमूल कांग्रेस सरकार को निशाना बनाती तो उसे राजनीति कहकर हल्का किया जा सकता था लेकिन आईएनडीआईए के कांग्रेस एवं वामदलों द्वारा ममता सरकार को कठघरे में खड़ा किया है तो इसे क्या कहेंगे? कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने तो बंगाल में कानून व्यवस्था विफल होने तथा राष्ट्रपति शासन तक लागू करने की मांग कर दी है। भाजपा पहले से ही ऐसी मांग करती रही है। केंद्रीय एजेंसियों पर इस तरह के हमले होंगे तो इसे कानून और व्यवस्था का राज तो नहीं ही कहा जाएगा। प्रश्न है कि इस पूरे प्रकरण को कैसे देखा जाए?
    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा या राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार जबसे सत्ता में आई है ईडी और अन्य केंद्रीय एजेंसियों की छापेमारी, कार्रवाइयों और मुकदमे दर्ज करने को लेकर राजनीतिक वातावरण ऐसा बनाया गया है कि जानबूझकर विपक्षी नेताओं को निशाना बनाया जा रहा है ताकि विपक्ष खत्म हो जाए और भाजपा का एकक्षत्र राज्य लंबे समय तक कायम रहे। क्या वाकई यही सच है? पहले बंगाल के मामले को ही लेते हैं। वर्तमान छापेमारी वहां पिछले वर्ष प्रकाश में आए राशन घोटाले के संदर्भ में हो रही है। तत्काल तृणमूल कांग्रेस के दो बड़े नेताओं शंकर अट्टा और शेख शाहजहां के घर पर छापेमारी हुई। शंकर को गिरफ्तार भी किया जा चुका है। हिंसा केवल शाहजहां के घर के छापेमारी के दौरान हुई। शंकर अट्टा व्यापारी और तृणमूल कांग्रेस नेता हैं, जो बर्धमान जिले के रेनीगंज से विधायक भी रहे हैं।अट्टा का नाम कोयला घोटाला, शिक्षक भर्ती घोटाला और नकदी वापसी घोटाला में भी शामिल है। ईडी के अनुसार, शंकर अट्टा ने अवैध रूप से विदेशी मुद्रा भी भेजी और प्राप्त की और उन्हें विदेशी मुद्रा प्रबंधन अध‍िनियम (एफएमए) के तहत भी जांच करने का आदेश दिया गया था। मुर्शिदाबाद जिले के शामशेरगंज का शाहजहां शेख भी तृणमूल कांग्रेस का बड़ा नेता और विधायक है। ईडी का कहना है कि वह राशन कार्ड धारकों के नाम पर राशन बांटने का दावा करता था, लेकिन उन्हें राशन नहीं देता था। इसमें अरबों रुपए के वारे-न्यारे हुए। राशन घोटाले में ईडी ने वन मंत्री और पूर्व राज्य खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री ज्योतिप्रिय मल्लिक और कोलकाता स्थित व्यवसायी बकीबुर रहमान को घोटाले के प्रमुख साजिशकर्ता और आरोपी बनाया है। ईडी के आरोप पत्र में राशन वितरण घोटाला मामले के कारण प. बंगाल सरकार के खजाने को लगभग 400 करोड़ रुपये के नुकसान का अनुमान है। फर्जी राशन कार्डों के सहारे अनाज को बेचकर भी भारी पैसा कमाने की बात इसमें है। फर्जी राशन कार्ड बनवाने से लेकर पूरे घोटाले में राज्य भर के अनेक लोगों पर कार्रवाइयां हो रही है और अनेक ने पूछताछ में अपना अपराध स्वीकार भी किया है।
    बंगाल में ऐसी हर छापेमारी के दौरान विरोध और छोटी बड़ी हिंसा हुई है। वस्तुत: शिक्षक भर्ती घोटाला और राशन वितरण घोटाला मामलों में टीएमसी नेताओं और व्यवसायियों के ठिकानों पर छापेमारी के दौरान भी टीएमसी कार्यकर्ताओं ने ईडी के कार्यालयों पर हमला किया और अधिकारियों को घेर लिया था। 27 अक्टूबर 2023 को वन मंत्री ज्योतिप्रिय मलिक के आवास और कार्यालय पर राशन घोटाले के संबंध में छापेमारी के दौरान भी ईडी के दो अधिकारियों को तृणमूल कार्यकर्ताओं ने घेर कर हमला कर दिया। तब भी ईडी के अधिकारियों को गंभीर चोटें आईं और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। वर्तमान मामले की तरह उसे समय भी ईडी ने अनेक नेताओं कार्यकर्ताओं के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज कराई थी। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और पार्टी के नेता लगातार राजनीतिक बदला लेने की कोशिश बताकर माहौल पूरी तरह केंद्रीय एजेंसियों के विरुद्ध बनाए रखा है। जब मुख्यमंत्री मंत्री और बड़े-बड़े नेता वक्तव्य देंगे, सड़कों पर उतरेंगे तो हिंसा करने वालों को पुलिस कार्रवाई का भय भी नहीं रहता। यह सामान्य आश्चर्य का विषय नहीं है कि इतना भीषण हमला हुआ और पुलिस अधिकारियों के बचाव में नहीं आई। केवल पश्चिम बंगाल नहीं अनेक गैर भाजपा प्रदेश सरकारों ने केंद्रीय एजेंसियों के विरुद्ध ऐसे ही माहौल बनाया है। यहां तक कि विधानसभा में भी उनके विरुद्ध प्रस्ताव पारित हुए हैं। बंगाल उन राज्यों में शामिल है जिसने घोषणा किया कि सीबीआई पर केंद्र से समझौता रद्द करते हैं तथा यह एजेंसी राज्य में कार्रवाई नहीं कर पाएगी।

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