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चुनाव में लाड़ली बहनों के ‘रिटर्न गिफ्ट’ का मोल!

  • जयराम शुक्ल
    संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने के विमर्श के बीच हो रहे पांच राज्यों में चुनावों में किसी एक मुद्दे को राष्ट्रीय सुर्खियां मिल रही हैं तो वह है मध्यप्रदेश की ‘लाड़ली बहना योजना’।
    क्या यह योजना मध्यप्रदेश में गेम चेंजर बनने जा रही है इसकी पड़ताल करें, इससे पहले जानें कि यह योजना है क्या.? मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने 5 मार्च 2023 को इस योजना को प्रदेश में लागू किया। आरंभ 1000 रूपए प्रति महीने से हुए, पहली किश्त 10 जून को लाड़ली बहनों के खाते में पहुंची। रक्षाबंधन में 250 रु. और जुड़ गए। कुल मिलाकर पिछले दो महीनों से हर लाड़ली बहना के खाते में 1250 रु. आ रहे हैं।
    यह विचार कैसे आया इस पर मुख्यमंत्री श्री चौहान अपनी जनसभाओं में बताते हैं- आर्थिक तौर पर निबल बहनों की घर में कोई इज्जत नहीं होती, थोड़ा सा ही रुपया सही यह उनमें आत्मनिर्भरता और स्वाभिमान जागृत करेगा। लाड़ली बहना योजना में अब तक 1 करोड़ 31 लाख खातों में सिंगल क्लिक से रुपए डाले जा रहे हैं। अब तक 1209 करोड़ रूपए लाड़ली बहनों के खाते में गए। इस योजना में निम्न आय वर्ग की 21 से 60 वर्ष की बहनों को जोड़ा गया है। इसके साथ ही आवास व अन्य योजनाएं भी लिंक की गई हैं। मुख्यमंत्री का वचन है कि इस राशि को धीरे-धीरे 3000 रूपए महीने तक पहुंचाएंगे।
    आप जानना चाहेंगे कि चुनाव की दृष्टि से क्या ऐसी योजनाएं फलदायी होती हैं- प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार राघवेन्द्र सिंह कहते हैं- हां। वे बताते हैं कि 2008 का चुनाव कितना मुश्किल था। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की अगुवाई में जब यह चुनाव लड़ा जाना था तब भाजपा से ही टूटकर निकली पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती की जनशक्ति पार्टी सामने थी। इसी बीच मुख्यमंत्री श्री चौहान लाड़ली लक्ष्मी योजना लेकर आए। वह 1 अप्रैल 2007 की तारीख थी और नवरात्र के दिन थे। शिवराजसिंह जी की कन्या पूजन करते, उनके चरण पखारती तस्वीरें मीडिया में छा गईं। बात हृदय को छूने वाली थी। शिवराजसिंह चौहान का इन कन्याओं से कब भांजी का रिश्ता गाढ़ा हो गया इसका पता तब चला जब 2008 में निर्णायक बहुमत के साथ भाजपा की सरकार बनी। और इसके बाद तो रिश्ता गहराता ही गया।
    सुदूर गांवों की बच्चियां सायकिल से स्कूल जाने लगीं और इनके बीच मामा-मामा स्वर और भी तेज फूटता गया। लाड़ली लक्ष्मी अब सोलह वर्ष की हो गईं। आंकड़ों में बात करें तो 46 लाख बेटियां लखपति बन चुकी हैं और 13 लाख से अधिक को छात्रवृत्तियां मिल रही हैं।
    तो क्या बेटी और बहनें शिवराजसिंह सिंह चौहान की चुनावी अमोघ अस्त्र हैं?
    मुख्यमंत्री श्री चौहान के परिवार को निकट से जानने वाले भोपाल के युवा एक्टिविस्ट पुरु शर्मा कहते हैं- ऐसा नहीं है। श्री चौहान जब विधायक भी नहीं बने थे तब से वे अपने गृह क्षेत्र बुधनी में कन्या पूजन और गरीब कन्याओं के विवाह के आयोजन किया करते थे। यहां तक कि क्षेत्र की की गरीब कन्याओं को गोद लिया, पढ़ाया और पिता की भूमिका निर्वाह करते हुए कन्यादान भी दिया। विधायक, सांसद बनने के बाद ऐसे समारोह नियमित करने लगे, जब मुख्यमंत्री बने तो इसे सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के साथ जोड़ दिया। बेटियों और बहनों से उनका रिश्ता राजनीति के लिए नहीं अपितु भावनात्मक है।
    प्रकारंतर में लाड़ली लक्ष्मी योजना मध्यप्रदेश की फ्लैगशिप योजना बन गई। केन्द्र सरकार ने इसे बेटी बचाओ- बेटी पढ़ाओ के तौर पर अंगीकार किया। अब सभी भाजपा शासित राज्यों व कुछ अन्य राज्यों में भी नाम बदलकर यह योजना चल रही है।
    लाड़ली लक्ष्मी और लाड़ली बहना योजनाओं का असर समग्रता में भी पड़ेगा, वरिष्ठ पत्रकार राघवेन्द्र सिंह कहते हैं- एक अच्छी बात यह कि जाति-पांत और धर्म से परे यह वोटरों का नया वर्ग है जो अब चुनाव की धारा मोड़ने में सक्षम है। शिवराजसिंह चौहान हैं तो दर्शनशास्त्र के स्कालर लेकिन उनकी सोशल इंजीनियरिंग का देशभर में कोई जोड़ नहीं। राघवेन्द्र सिंह श्री चौहान की विधानसभा क्षेत्र के वोटर के साथ ही उनके पड़ोसी गांव डोंबी के है।
    निष्कर्ष: क्या यह मान कर चलें कि लाड़ली बहना इस चुनाव में गेम चेंजर साबित होने वाली है? मध्यप्रदेश गान लिखने वाले कवि, लेखक, संपादक महेश श्रीवास्तव की मानें तो निश्चित, नि:संदेह!

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