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- ललित गर्ग
दिल्ली में सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कराने वाले एक कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में पानी भरने से तीन छात्रों की मौत-हादसे ने समूचे राष्ट्र को दुःखी एवं आहत किया है, यह हादसा नहीं, बल्कि मानव जनित त्रासदी है, लापरवाही एवं लोभ की पराकाष्ठा है। इस त्रासदी की जड़ में है घोर दोषग्रस्त कोचिंग प्रणाली और व्यवस्था की जड़ों में समा गया बेलगाम भ्रष्टाचार। इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि कोचिंग संस्थान के दो लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है, क्योंकि दिल्ली नगर निगम के उन कर्मचारियों और अधिकारियों को क्यों नहीं गिरफ्तार किया गया जो सब कुछ जानते-बूझते हुए इस संस्थान को बेसमेंट में लाइब्रेरी चलाने की सुविधा प्रदान किए हुए थे। इस दुःखद एवं पीड़ादायक घटना ने एक बार फिर यही साबित किया है कि निर्माण कार्यों में फैले व्यापक भ्रष्टाचार और शासन तंत्र में बैठे लोगों की मिलीभगत के बीच ईमानदारी, नैतिकता, जिम्मेदारी या संवेदनशीलता जैसी बातों की जगह नहीं है। जिसकी कीमत निर्दोषों को अपनी जान गंवा कर चुकानी पड़ रही है। निश्चित ही देशभर में कुकुरमुत्तों की तरह उग आए कोचिंग सैंटर डैथ सैंटर बन चुके हैं। कोचिंग सेंटरों का कारोबार शासन के दिशा-निर्देशों की धज्जियां उड़ाकर चल रहे हैं। छात्रों को सुनहरी भविष्य का सपना दिखा कर मौत बांटी जा रही है। आजादी के अमृत-काल में पहुंचने के बाद भी भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, बेईमानी हमारी व्यवस्था में तीव्रता से व्याप्त है, अनेक हादसों एवं जानमाल की हानि के बावजूद भ्रष्ट हो चुकी मोटी चमड़ी पर कोई असर नहीं होता। प्रश्न है कि सेंटर के मालिक को तो गिरफ्तार कर लिया लेकिन ऐसी घटनाओं के दोषी अधिकारी क्यों नहीं गिरफ्तार होते?
शनिवार की शाम राजधानी दिल्ली के ओल्ड राजेन्द्र नगर के कोचिंग सेंटर में हुए हादसे में तीन छात्रों नेविन डोल्विन, तान्य सोनी और श्रेया यादव की दुखद मौत ने अनेक सवालों को खड़ा किया है। केरल का रहने वाला नेविन आईएएस की तैयारी कर रहा था और वह जेएनयू से पीएचडी भी कर रहा था। उत्तर प्रदेश की श्रेया यादव ने अभी एक महीना पहले ही इस कोचिंग सेंटर में दाखिला लिया था। कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में लाइब्रेरी चल रही थी जहां 150 छात्रों के बैठने की व्यवस्था थी। हादसे के वक्त 35 छात्र मौजूद थे। चंद मिनटों में ही बेसमेंट में पानी भर गया। सिर्फ इसी सेंटर में नहीं, बल्कि लगभग सभी शैक्षणिक कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में लाइब्रेरी बनाई गई है। जिसके गेट बायोमेट्रिक आईडी से खुलते हैं, जैसे ही बारिश होती है, बिजली चली जाती है, उसके बाद बेसमेंट से निकलना बिना बायोमैट्रिक आईडेंटिफिकेशन के मुश्किल होता है। ऐसी स्थिति में हादसे और मौत की संभावना बढ़ जाती है। ओल्ड राजेंद्र नगर के न सिर्फ कोचिंग सैंटर बल्कि पीजी और हॉस्टल की असुरक्षित हालत भी मौत लिये किसी भी क्षण बड़े हादसे की संभावना के साथ खड़ी है। जहां इस कदर अवैध निर्माण है कि कभी भी दूसरा या दोबारा हादसा हो सकता है। इसलिये ऐसे हादसों की जांच से काम नहीं चलने वाला।
विडम्बनापूर्ण है ऐसे जलभराव एवं आगजनी के हादसों से सबक नहीं लिया जाता। यह प्रवृत्ति दुर्भाग्यपूर्ण है। विडम्बना देखिये कि ऐसे भ्रष्ट शिखरों को बचाने के लिये सरकार कितने सारे झूठ का सहारा लेती है। हाल ही में गुजरात के राजकोट में एक एम्यूजमेंट पार्क के अंदर गेमिंग जोन में लगी आग की लपटें हो या राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में बच्चों के एक प्राइवेट हॉस्पिटल में आग लगना और अब कोचिंग सेंटर में तीन होनहार एवं देश के भविष्य बच्चों का दर्दनाक तरीके से डूबकर मर जाना-निश्चित रूप से ये हादसे प्रशासनिक लापरवाही की उपज हैं, यही कारण है कि सिस्टम में खामियों और ऐसी आपदाओं को रोकने में सरकारी अधिकारियों की लापरवाही की निंदा भी व्यापक स्तर की जा रही है। यह याद रखने योग्य है कि नियमित अंतराल पर मानवीय जिम्मेदारी वाले पहलू की अनदेखी से ऐसी गंभीर घटनाएं होने के बावजूद अधिकारियों की उदासीनता और लापरवाही कम होती नहीं दिख रही है। इन त्रासद हादसों ने कितने ही परिवारों के घर के चिराग बुझा दिए।
परिवार वालों ने और छात्रों ने स्वर्णिम भविष्य के सपने संजोकर और लाखों की फीस देकर कोचिंग शुरू की होगी लेकिन उन्हें नहीं पता था कि उन्हें इस तरह मौत मिलेगी। छात्रों की मौत को महज हादसा नहीं माना जा सकता, यह एक तरह से निर्मम हत्या है और हत्यारा है हमारा सिस्टम। हादसे से आक्रोशित छात्रों का कहना है कि वे 10-12 दिन से दिल्ली नगर निगम से कह रहे हैं कि ड्रेनेज सिस्टम की सफाई कारवाई जाए लेकिन किसी भी जनप्रतिनिधि और जिम्मेदार अधिकारियों ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। हादसे तभी होते हैं जब नियमों और कानूनों को ताक पर रखा जाता है।
तंत्र की काहिली और आपराधिक लापरवाही के चलते ऐसेे हादसे होते हैं जिनमें भ्रष्टाचार पसरा होता है, जब अफसरशाह लापरवाही करते हैं, जब स्वार्थ एवं धनलोलुपता में मूल्य बौने हो जाते हैं और नियमों और कायदे-कानूनों का उल्लंघन होता है। जलभराव क्यों और कैसे हुआ, यह तो जांच का विषय है ही लेकिन इन शैक्षणिक एवं व्यावसायिक इकाइयों को उसके मालिकों ने मौत का कुआं बना रखा था।