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- शिवकुमार विवेक
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाल में अयोध्या में रामकथा के एक पिछड़ी जाति के चर्चित नायक केवट के परिजनों से भेंट की। इससे निषादराज का प्रसंग फिर स्मरण में आ गया। राम कथा में कई ऐसे पात्र हैं जो बहुत निचले तबके से थे, जिन्हें आज पिछड़ा और शूद्र कहा जाता है। राम राजा के पुत्र हैं तो एकदम निचले स्तर के व्यक्ति को गले लगाने से उनका अहंकार आड़े नहीं आता। ऐसा इसलिए क्योंकि राम की शिक्षा-दीक्षा प्रारंभ से इसी दिशा में हो चुकी थी। विश्वामित्र उन्हें वन-वन लेकर इसी शिक्षा और संस्कारों के लिए गए थे। राम का सबसे पहले निकटतम संबंध इस वर्ग के दो लोगों से होता है उनमें एक केवट (मल्लाह) या निषाद है तो दूसरी शबरी जिसे लोकजीवन में भीलनी के तौर पर जाना जाता है। निषादराज उन्हें तब मिलते हैं जब वह अयोध्या से दक्षिण की तरफ वनप्रांतर से जाते हुए गंगा पार करने के लिए आते हैं। अध्येता मानते हैं कि रामकथा में राम के पगप्रक्षालन का अधिकार दो को ही मिला-निषाद व शबरी। दोनों ही पिछड़े वर्ग से थे। राम श्रंगवेरपुर स्थित (यह स्थान संभवतः आज का उप्र का सिंगरौरा है) गंगा तट पर जाकर नाव लेकर आने को कहते हैं तो केवट उनके पैर धोकर नाव में चढ़ने के लिए अड़ जाते हैं। वनवासी राम के पास उन्हें उतराई यानी नौका सवारी का पारिश्रमिक देने के लिए कोई धन नहीं है तो सीता अपनी अंगूठी उतारकर देती हैं। राम उन्हें अपना सुजान सखा कहकर गहरा मित्र बना लेते हैं। भरत जब राम से मिलने के लिए जा रहे थे तब निषादराज को राम का मित्र जानकर वह रथ से उतर जाते हैं-राम सखा सुनि संदनु त्यागा। ऋषि वशिष्ठ भी उन्हें गले लगाते हैं-रामसखा ऋषि बरबस भेंटा। चले उतरि उमगत अनुरागा। निषादराज ने राम के ठहरने के लिए उपयुक्त स्थान चुनकर घास-फूस का कुटी बनाई और रात भर उनका पहरा दिया। वह राजकुल के वंशजों की दशा देखकर दुखी होता रहा जिसे लक्ष्मण ने जीवन दर्शन समझाया। उसने बरगद का दूध लाकर दिया जिससे राम-लक्ष्मण ने जटाएं बनाईं। दशरथ के अनुचर और अयोध्यावासी इसी स्थान तक राम-सीता-लक्ष्मण को छोड़कर लौट गए थे। शबरी को राम भामिनी माता कहकर सम्मान देते हैं-कह रघुपति सुनि भामिनी माता। वन में कोल-किरात-भीलों से राम का संसर्ग हुआ। मातंग ऋ षि की यह शिष्या राम का वर्षों से इंतजार कर रही थी और उनके लिए बेर फल लाकर और चख-चखकर रख रही थी। सीता की खोज में राम ने तुंगभद्रा और कावेरी नदी को पार किया था। इसके बाद वे पंपा किनारे पहुंचे जहां शबरी का आश्रम बताया जाता है। इस तरह यह केरल में अवस्थित माना जाता है। सबरीमाला का इससे संबंध जुड़ता है। कुछ लोग वर्तमान गुजरात के डांग जिले में मानते हैं। यूं शबरी को लेकर विभिन्न रामायणों में भिन्न-भिन्न कथाएं हैं पर, वाल्मीकि रामायण में शबरी सिद्धा है और सिद्धपुरुषों से सम्मानित है। वह ही राम से प्रभावित नहीं है बल्कि राम भी उससे प्रभावित हैं। तुलसीदास ने अरण्यकांड में उनकी भक्ति व निश्चलता का वर्णन किया है।