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पड़ोस से उभरते चीन के खतरे

  • डॉ. नवीन कुमार मिश्र
    वर्तमान भू-राजनीतिक वास्तविकताओं के कारण डोकलाम में भारत, चीन और भूटान के बीच मौजूदा त्रि-जंक्शन विवाद को सुलझाने में चीन को भी शामिल करने की बात एकतरफा चीन की डॉलर कूटनीति के प्रभाव को दर्शाता है। भूटान के प्रधानमंत्री लोटे शेरिंग का बयान भूटान की वर्ष 2019 की स्थिति से अलग है। चीन भारत को घेरने कि नियति से भूटान को अपने साजिश में फंसा चुका है, जो भारत के लिए एक रणनीतिक चुनौती प्रस्तुत करता है। चीन और भूटान के बीच जाकरलंग, पासरलंग व डोकलाम विवादित क्षेत्र है। चीन ट्राई-जंक्शन को शिफ्ट करने के लिए भूटान से जाकरलंग व पासरलंग के बदले डोकलाम चाहता है, जिससे पूरा डोकलाम कानूनी रूप से चीन का हिस्सा बन जाए और उसकी पहुंच सिलीगुड़ी कॉरिडोर तक हो जाए। माउंट जिपमोची और आसपास के झम्फेरी रिज की ओर चीनी सेना के पहुंचने पर सिलीगुड़ी कॉरिडोर के लिए एक स्पष्ट रास्ता मिल जाएगा, जिससे चीन अपने विस्तारवादी नीति के तहत पूर्वोत्तर राज्यों को भारत से अलग करने की साजिश को अंजाम दे सके।
    चीन ने भारत को घेरने के उद्देश्य से बांग्लादेश के काक्स बाजार के अंदर 2.2 बिलियन डॉलर की लागत से सब-मैरिन बेस बनाया है। इसे 20 मार्च 2023 को चालू किया गया है, जहां चीन के दो सब-मैरिन रह सकेंगे। इसी प्रकार मेघालय व त्रिपुरा के निकट सिलहट एयरपोर्ट का निर्माण चीन वर्ष 2016 से भारत को घेरने के लिए कर रहा था। भारत की ‘पड़ोसी पहले’ नीति की सफलता तब महसूस हुई जब 19 मार्च को ही बांग्लादेश ने भारत को चटगांव व सिलहट पोर्ट के प्रयोग की पेशकश कर दी। काक्स बाजार के उत्तर में स्थित चटगांव सिर्फ पूर्वोत्तर राज्यों के लिए कनेक्टिविटी ही नहीं है, बल्कि चीन पर नियंत्रण के लिए सामरिक रूप से महत्वपूर्ण भी है। साथ ही नेपाल व भूटान के लिए सामुद्रिक व्यापार भी यही से होता है। बांग्लादेश दक्षिण एशिया में भारत का सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर भी है। चीन की बांग्लादेश के रास्ते भारत को घेरने की साजिश नाकाम हो गई। इसके साथ ही अपने पड़ोसी पहले नीति को और मजबूत करते हुए वर्ष 2018 से बन रहा भारत-बांग्लादेश की 131.5 किमी लंबी पहली क्रॉस-बॉर्डर पाइपलाइन (ऊर्जा) को 25 मार्च 2023 से शुरू कर दिया गया है। इस पाइपलाइन से एक वर्ष में 10 लाख टन हाई-स्पीड डीजल बांग्लादेश को भेजा जा सकता है। यह पाइपलाइन सिलिगुड़ी स्थित नुमालीगढ़ रिफाइनरी लिमिटेड के मार्केटिंग टर्मिनल से बांग्लादेश पेट्रोलियम कॉरपोरेशन के परबतीपुर डिपो तक जाएगी। म्यांमार में भी चीन ने भारत को घेरने की नियति से क्यौक प्यू पोर्ट पर पहुँच गया। परन्तु म्यांमार द्वारा सितवे पोर्ट का उपयोग भारत को मिल जाने से चीन के मंसूबों को धक्का लगा है।
    नेपाल में केपी शर्मा ओली की सरकार आने पर भारत के क्षेत्र कालापानी, लिपुलेख और लिम्याधुरा क्षेत्र चीन के इशारे पर विवाद खड़ा कर दिया गया था, जो चीन, नेपाल व भारत के त्रि-जंक्शन बिंदु पर स्थित है। इसी प्रकार चीन हिमालय में क्रास-बार्डर रेल के जरिए नेपाल को कर्ज-जाल में फांसना चाहता है। कैरुङ्ग- काठमांडू रेलवे लाइन बनाने की योजना पर विचार वर्ष 2018 से शुरू हो गया था, जिसमें कैरुङ्ग से काठमांडू के बीच रेल लाइन 170 किमी लंबी होगी। चीन में यह रेल लाइन कैरुङ्ग से जिगाजे और ल्यासा तक को जोड़ने की योजना है। नेपाल में मात्र 72 किमी की रेल लाइन बिछेगी, जो आगे चलकर काठमांडू से पोखरा व लुम्बिनी तक की योजना में है। जिगाजे से भी नेपाल के विभिन्न शहर जोड़े जा सकेंगे। इन सब में आठ बिलियन डालर का खर्च आएगा, जो नेपाल को चीन के कर्ज-जाल में फंसा देगा। लुम्बिनी भारत से केवल 29 किमी की दूरी पर होने के कारण भारत की सुरक्षा व संप्रभुता के लिए खतरा है। अभी नेपाल में प्रचंड की सरकार है, जिसने भारत के साथ अपने रिश्ते सुधारने के संकेत देते हुए त्रि-जंक्शन को भारत के उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले का स्वीकार कर लिया है। नेपाल के रास्ते भारत को कमजोर करने की चीन की साजिश नाकाम होते दिखाई दे रही है।
    विश्व बैंक, हार्वर्ड केनेडी स्कूल, कील इंस्टीट्यूट फॉर द वर्ल्ड इकोनॉमी और अमेरिका स्थित शोध प्रयोगशाला एडडैट के शोधकर्ताओं द्वारा 28 मार्च 2023 को प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, 2008 और 2021 के बीच, चीन ने 22 विकासशील देशों को बेलआउट के लिए 240 बिलियन डॉलर खर्च करने पड़े है। चीन का दक्षिण एशिया में आधारभूत ढांचा के विकास के नाम पर दूसरे देशों को कर्ज देना और कर्ज न चुका पाने की स्थिति में उनके बंदरगाहों व संसाधनों पर कब्जा कर लेना उसके डेट-ट्रैप डिप्लोमेसी का हिस्सा माना जाता है। इसके लिए दक्षिण एशिया के कई देशों का अस्तित्व चीन के कारण खतरे में है। चीन के कर्ज के बदले श्रीलंका को हंबनटोटा बंदरगाह सौपना पड़ा। नेपाल की आर्थिक और कूटनीतिक समस्याओं में भी चीन घुसकर अपना विस्तार करने में लगा है। चीन के कर्ज-जाल से बदहाल हो चुके श्रीलंका ने स्पष्ट रूप से कहा है कि भारत ने समय से जो मदद की है, उसी कारण श्रीलंका उबर पाया है। भारत विकास के क्षेत्र में चीन से मुकाबला करने के लिए तैयार है और भारत का वैश्विक विकास का मॉडल चीन से बेहतर है।

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