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- डॉ. मनमोहन प्रकाश
सनातन संस्कृति में या यूं कहें भारतीय संस्कृति में छोटे बड़े सभी तीज़ त्यौहार को हर्ष उल्लास के साथ मनाए जाने की गौरवशाली परंपरा है। ये सभी त्यौहार जीवन में ताजगी, उत्साह और उमंग भरते हैं और आपसी भाई-चारा, प्रेम, सहयोग,सामञ्जस्य को नयी ऊष्मा प्रदान करते हैं। इनमें भी होलिकोत्सव, दीपोत्सव, गणेशोत्सव, दुर्गोत्सव आदि कुछ खास एवं विशेष त्यौहार हैं। इन सभी त्यौहारों में परिवारजनों, ईष्ट- मित्रों,सहकर्मियों और पड़ोसियों की पारस्परिक सहभागिता बढ़-चढ़ के दिखाई देती है। इन त्यौहार की खुबसूरती यही है कि ये सामुहिक रूप से मनायें जाने पर ही आनंद की अनुभूति कराते हुए रिश्तों को मजबूती प्रदान करते हैं, हमारी राग संवेदनाओं को प्रबल बनाते हैं। हम सनातनियों का सबसे बड़ा त्यौहार पांँच दिवसीय दीपोत्सव इस बार नवंबर में आ रहा है। इस उत्सव पर घर और प्रतिष्ठानों की साफ-सफाई, रंग-रोगन,साज-सज्जा, आकर्षक रोशनी के साथ पुरानी वस्तुओं को नयी वस्तुओं से बदलने, नयी वस्तुओं की खरीददारी करने (सोने-चांदी, हीरे-जवाहरात, वाहन, मकान, फर्नीचर , घरेलू इलेक्ट्रॉनिक तथा अन्य उत्पाद , सभी के लिए नये कपड़े, फुटवियर, बच्चों के लिए खिलौने आदि) की विशेष परंपरा सी बन गई है। इस त्यौहार पर माता- पिता से दूर रह रहे बच्चे अपने परिवार जनों के लिए विविध उपहारों के साथ दीपोत्सव मनाने घर आते हैं। त्यौहार के इन पांँच दिनों में घरों पर विविध प्रकार के पकवान और नित्य नये स्वादिष्ठ भोजन बनाने,खाने और खिलाने का सिलसिला जारी रहता है। साथ ही पूजा-पाठ और दीपों की रोशनी के साथ माता लक्ष्मी, सरस्वती एवं विघ्नहर्ता गणेश जी को प्रसन्न करने की यथा-शक्ति आराधना की जाती है। इन देवताओं के आगमन की आशा में घरों और प्रतिष्ठानों को प्राकृतिक एवं कृत्रिम फूलों एवं रांगोली से सजाया जाता है, साफ-सुथरा रखा जाता है और रंग बिरंगी रोशनी से जगमगाया जाता है। व्यापारी वर्ग इस अवसर पर नये बही-खातों के शुरू करने के साथ ही शुभ-लाभ की कामना के साथ इस त्यौहार को मनाते हैं । ऐसा देखा गया है कि दीपोत्सव पर हर व्यक्ति अपनी क्रय क्षमता से अधिक खरीदने का प्रयास करता है। इसीलिए शायद लगभग सभी व्यापारिक संस्थान ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए कोई न कोई लोक-लुभावन योजनाओं की घोषणा भी करते हैं। क्रय-विक्रय प्रक्रिया की दृष्टि से यह त्यौहार स्वदेशी आंदोलन की अवधारणा में स्वदेशी उत्पाद को प्राथमिकता प्रदान कर देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान कर सकता है तथा रोजगार के अवसर में वृद्धि कर सकता है। अतः भारतीय होने के नाते हमें स्वदेशी उत्पाद ही खरीदना चाहिए। ऐसा कर के हम स्थानीय उत्पादों, लोककलाओं, और कारीगरी को बढ़ावा दे सकते हैं,उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार ला सकते हैं,विदेशी समान के आयात पर बहुत कुछ सीमा तक रोक लगा सकते हैं। तीज़ त्यौहार पर खरीददारी करते समय पूजा की सामग्री के साथ घर की सभी छोटी-बड़ी जरूरत की चीजों के लिए छोटे स्थानीय दुकानदारों, फुटपाथ विक्रेताओं से खरीदी को प्राथमिकता देना चाहिए। चीनी और विदेशी सामान को तो बिल्कुल ही नहीं खरीदना चाहिए। क्योंकि जिन देशों में दीपोत्सव जैसे पर्व न तो वहां की संस्कृति का हिस्सा है और न ही आस्था, विश्वास का विषय है वहां के लोगों द्वारा निर्मित दीपक, मोमबत्ती, मूर्तियां,झालर, साज़ सज्जा के समान में वे आत्मीय भाव कैसे आ सकते हैं जो एक भारतीय द्वारा निर्मित सामग्री में आते हैं?