Home » भील जनजाति का मातृभूमि के लिए त्याग भुलाया नहीं जा सकता

भील जनजाति का मातृभूमि के लिए त्याग भुलाया नहीं जा सकता

  • अथर्व पंवार
    भारत वर्ष के गौरवशाली संघर्ष के इतिहास में सहस्र कोटि सपूतों ने अपने प्राणों की आहुति दी । इसी संघर्ष के कारण भारत कभी भी पूर्णतः परतंत्र नहीं रहा। भारत के किसी न किसी भाग में संघर्ष चलते की रहा जिसके कारण स्व का भाव चैतन्य ही रहा । जिस राष्ट्रबोध के कारण भारत के महान क्रांतिकारियों ने स्वाधीनता की ज्वाला को धधकाए रखा था उससे प्रेरणा लेकर असंख्य वीर स्वाधीनता के यज्ञ में आहूत होने को आतुर होते रहे । समाज के प्रत्येक वर्ग के अपने स्तर पर इस संघर्ष में सहभाग किया ।
    लेकिन 1947 में हुए सत्ता के हस्तांतरण के पश्चात एक नवनिर्मित भारत को स्वाभिमान और पौरुष की अपेक्षा थी जो ऐसे महान वीरों की गाथा के माध्यम से नवचेतना का प्रसार करता, किन्तु अंग्रेजों द्वारा पीछे छोड़े गए अपने भूरे साहेबों ने उन बलिदानों का उपहास किया एवं पाश्चात्य गुलामी के वैचारिक अनुपालन के कारण अंग्रेजों के चाटुकारों का गुणगान करने में कोई कमी नहीं रखी जिसके कारण कई महान चरित्र गुमनाम हो गए ।
    ऐसा ही हमारे जनजातीय समाज के वीरों के साथ भी हुआ। भारतीय स्व के लिए हुए संघर्ष में जो अविस्मर्णीय योगदान जनजातीय समाज का रहा है उसे अकादमिक पाठ्यपुस्तकों के साहित्य के क्षेत्र तक भुलाने के प्रयास किए गए । लेकिन विगत 10 वर्षों से जनजातीय समाज के संवर्धन के कारण उनकी संस्कृति और इतिहास से आज समस्त विश्व अवगत हो रहा है । जहाँ पहले केवल एक-दो महापुरुषों के नाम पर ही शासकीय संरचनाओं का नामकरण होता था, आज जनजातीय महापुरुषों के नाम पर होने लगा है । संग्रहालय, विश्वविद्यालय के नामकरण और अध्ययन के विषय तक जनजातीय महापुरुषों और संस्कृति का प्रचार-प्रसार होने लगा है ।
    ऐसा ही इतिहास भील जनजाति भी रहा । जब भी राष्ट्र और धर्म पर कोई विपदा आई, यह जनजाति अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए समर्पित रही । एक ओर सनातन की प्राचीन परम्पराओं का निर्वहन कुशलतापूर्वक कर इस जनजाति ने पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढाया है तो वहीँ दूसरी ओर अद्भुत रण कौशल के कारण इतिहास में अपनी वीरता को अंकित भी किया है ।
    इतिहास में भील जनजाति का महनीय कार्य 16 शताब्दी में मिलता है । यह समय था जब मेवाड़ का शासन हिंदुआ सूर्य महाराणा प्रताप कर रहे थे । इस समय अकबर की सेना ने मेवाड़ को अपने अधीन करने के लिए मुग़ल सेनाएं भेजी और विश्वविख्यात हल्दीघाटी का युद्ध हुआ। इस युद्ध में मेवाड़ी राजपूत सेना से कंधे से कन्धा मिलाकर भील सैनिकों ने युद्ध लड़ा । अपने पारंपरिक हथियार तीर-कमान और गोफन से यह भील योद्धा साक्षात् काल बन कर मुगलों पर टूट पड़े थे । इसी युद्ध में वनवासी पूंजा भील ने भीलों की एक धनुर्धर टुकड़ी का नेतृत्व किया जिसके कारण मुगलों की सेना का एक भाग बनास नदी पार नहीं कर पाया एवं वह पीछे हटने को विवश हो गया । पूंजा भील महाराणा प्रताप के विश्वसनीय थे एवं उनके रणभूमि में दर्शाए गए शौर्य के कारण उन्हें ‘राणा’ की उपाधि भी दी गई ।
    भील जनजाति के ऐसे ही अन्य योद्धा हैं टंट्या भील उपाख्य टंट्या मामा जिन्हें 10 नवम्बर 1889 को प्रकाशित न्यूयार्क टाइम्स के लेख में ‘रॉबिनहुड ऑफ इंडिया’ भी कहा गया । उन्होंने मालवा-निमाड़ के क्षेत्र में भारत माता को स्वतंत्र करवाने के उद्देश्य से अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध छेड़े रखा था ।
    ऐसे ही एक और वीर भील थे भीमा नायक जो मात्र 17 वर्ष की आयु में मातृभू को परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त करने के लिए स्वतंत्रता के संघर्ष में योगदान दिया । बडवानी के पञ्चमंडली में जन्मे भीमा नायक ने अम्बपानी में हुए युद्ध में प्रभावी भूमिका निभाई थी । झाँसी के लिए हुए युद्ध के पश्चात जब तात्या टोपे गोरिल्ला युद्ध कर के संघर्ष के आन्दोलन को आगे बढ़ा रहे थे, तब उन्हें भील योद्धा भीमा नायक ने ही नर्मदा पार करवाई थी । इन्हें मात्र 17 वर्ष की आयु में कालापानी भेज दिया गया जहाँ उनकी मृत्यु हुई ।
    मध्यप्रदेश की माटी में जन्में एक अन्य भील योद्धा खाज्या नायक रहे । इनके पिता अंग्रेजों की सेना में नौकरी करते थे जो बाद में इन्हें मिली । लेकिन इन्होने भारत के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी और स्वयं एक सेना बनाकर अंग्रेजों के विरुद्ध रण में कूद गए । इन्होने गोरिल्ला युद्ध पद्धति अपनाते हुए अंग्रेजों पर कई आक्रमण किए एवं उनका जानमाल का नुकसान किया। 3 अक्तूबर 1860 को जब प्रातःकाल खाज्या नायक सूर्य की उपासना कर रहे थे तो अंग्रेजो ने षड्यंत्रपूर्वक इनकी हत्या कर दी। इतिहास में इनके अतिरिक्त अनेक ऐसे जनजातीय महापुरुष रहें हैं जो आज काल के अँधेरे में गुम हो गए हैं। भीलों के अतिरिक्त अनेक जनजातीय और वनवासी महापुरुषों ने भारत के लिए बलिदान दिया लेकिन उनके बारे में प्रचार-प्रसार पर्याप्त रूप से नहीं हुआ । आज हमें भारत के स्वबोध की एक ऐसी किरण की अपेक्षा है जो इनपर प्रकाश डालकर पुनः इन्हें वैभव प्रदान करेगी ।

Swadesh Bhopal group of newspapers has its editions from Bhopal, Raipur, Bilaspur, Jabalpur and Sagar in madhya pradesh (India). Swadesh.in is news portal and web TV.

@2023 – All Right Reserved. Designed and Developed by Sortd