- कैलाश विजयवर्गीय
सम्पूर्ण राष्ट्र 24 नवंबर से सिख पंथ के नवम गुरु तेगबहादुर को उनके बलिदान दिवस कोटिशः नमन कर रहा है । एक ऐसे महान संत के उपदेश हमारे लिए प्रेरणादायक हैं। गुरु तेगबहादुर जी ने कहा था कि ‘सगल जगतु है जैसे सुपना, यह संसार सपना है। इसलिए इस नश्वर, क्षणभंगुर संसार का मोह त्यागकर प्रभु की शरण लेना ही उचित है।’ संत प्रवृति, आध्यात्मिक विचारों और धर्म साधना के प्रति समर्पित त्याग मल एक योद्धा सिद्ध हुए तो पिता ने नाम बदलकर तेगबहादुर कर दिया। सिख पंथ के छठे गुरु हरगोविंद साहिब और माता बीबी नानकी के पुत्र त्याग और वैराग्य का अदभुत उदाहरण हैं। अध्यात्म में रमे रहने वाले त्याग मल ने 13 वर्ष का होने पर करतारपुर में अपनी तलवार से शत्रुओं को छक्के छुड़ा दिए थे। 1635 ईसवी में 26 से 28 अप्रैल के दौरान छठे गुरु श्री हरगोविंद साहिब ने मुगलों के खिलाफ युद्ध लड़ा था। अपने छोटे बेटे त्याग मल को युद्ध में भेजा था। शत्रुओं की सेना त्याग मल के तलवार के आगे नहीं टिक सकी। युद्ध में उनकी वीरता को देखकर गुरु हरगोविंद साहिब ने अपने पुत्र का नाम तेग बहादुर रख दिया।
गुरुओं की महिमा, उनके उपदेश और बलिदान के बारे में हम बचपन से सुनते और पढ़ते आए हैं। गुरु तेगबहादुर के बलिदान की कथा हमें यह भी सिखाती है कि अपने सिद्धांतों की खातिर खुद की बलि देना दूसरों के लिए बड़ी प्रेरणा होती है। लोगों में विश्वास जगाने और उनके सिद्धांतों के लिए बलिदान देना, पूरे समाज को जगाता है। कश्मीरी पंडितों के धार्मिक अधिकारों ‘तिलक’ और ‘जनेऊ’ की रक्षा के लिए उन्होंने मुगल शासक औरंगजेब को चुनौती दी। बात मई 1675 की है। गुरु तेगबहादुर आनंदपुर साहिब में थे। पंडित कृपाराम के नेतृत्व में कश्मीरी पंडितों का एक बड़ा जत्था उनसे अपनी व्यथा बताने पहुंचा। उस समय मुगल शासक आततायी औरंगजेब के फरमान पर हिन्दुओं को यातनाएं देकर इस्लाम अपनाने पर विवश किया जा रहा था। कश्मीर में पंडितों को यातनाएं दी जा रही थी। तिलक मिटाकर और जनेऊ तोड़कर मुस्लिम होने के लिए विवश किया जा रहा था। गुरु तेगबहादुर ने उनकी व्यथा-कथा सुनी और गहरे चिंतन के बाद कश्मीरी पंडितों से कहा कि औरंगजेब से कहिए कि गुरु तेग बहादुर के इस्लाम अपनाने पर अपना धर्म त्याग सकते हैं। कश्मीरी पंडितों की बात सुनकर आततायी औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर को बन्दी बनाकर दिल्ली में लाकर यातनाएं दी। कश्मीरी पंडितों को दिए गए वचन और धर्म की रक्षा के लिए उन्होंने अपना बलिदान दिया। आततायी औरंगजेब को गुरु तेग बहादुर की चुनौती देने के बारे में हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी उनके 400वें प्रकाश पर्व पर लालकिले की प्राचीर से सम्पूर्ण राष्ट्र को संबोधन में कहा कि औरंगजेब की आततायी सोच के सामने गुरु तेग बहादुर जी ‘हिन्द दी चादर’ बनकर एक चट्टान की तरह खड़े हो गए थे। इतिहास गवाह है कि औरंगजेब और उसके जैसे अत्याचारियों ने भले ही अनेकों सिरों को धड़ से अलग किया। लेकिन हमारी आस्था को हमसे अलग नहीं कर सके। प्रधानमंत्री ने जिक्र किया था कि यहाँ लालकिले के पास यहीं पर गुरु तेगबहादुर जी के अमर बलिदान का प्रतीक गुरुद्वारा शीशगंज साहिब भी है! ये पवित्र गुरुद्वारा हमें याद दिलाता है कि हमारी महान संस्कृति की रक्षा के लिए गुरु तेगबहादुर जी का बलिदान कितना बड़ा था। उस समय देश में मजहबी कट्टरता की आँधी आई थी। धर्म को दर्शन, विज्ञान और आत्मशोध का विषय मानने वाले हमारे हिंदुस्तान के सामने ऐसे लोग थे जिन्होंने धर्म के नाम पर हिंसा और अत्याचार की पराकाष्ठा कर दी थी। उस समय भारत को अपनी पहचान बचाने के लिए एक बड़ी उम्मीद गुरु तेगबहादुर जी के रूप में दिखी थी। औरंगजेब की आततायी सोच के सामने उस समय गुरु तेगबहादुर जी, ‘हिन्द दी चादर’ बनकर, एक चट्टान बनकर खड़े हो गए थे। इतिहास गवाह है, ये वर्तमान समय गवाह है और ये लाल किला भी गवाह है कि औरंगजेब और उसके जैसे अत्याचारियों ने भले ही अनेकों सिरों को धड़ से अलग कर दिया, लेकिन हमारी आस्था को वो हमसे अलग नहीं कर सका।
नवम गुरु के बलिदान पर गुरु गोविंद सिंह जी ने कहा- ‘तिलक जंझू राखा प्रभता का। कीनो बड़ो कलू महि साका।।’ धर्म की खातिर और लोगों के विश्वास को बचाए रखने के लिए बलिदान के कारण ही उन्हें ‘हिंद की चादर – गुरु तेग बहादुर’ कहकर सम्मान के साथ स्मरण किया जाता है। आज समाज में जिस तरह दूसरों के विश्वास को छलते हुए लव जिहाद के नाम पर बेटियों पर अत्याचार हो रहे हैं, ऐसे समय में समाज को गुरु तेगबहादुर के बलिदान से सबक लेने की जरूरत है।
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