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आने वाले साल महिला नेतृत्व का स्वर्णिम काल

  • शिवकुमार विवेक
    अगले पांच साल महिलाओं के साल होने वाले हैं, महिलाओं के नेतृत्व के वर्ष। यह संयुक्त राष्ट्र संघ या किसी सरकार विशेष की घोषणा नहीं है अपितु देश की राजनीति में आने वाले वर्षों के परिदृश्य का संभावित चित्र है। अगले साल देश में लोकसभा चुनाव होने हैं जिसके बाद अगला आम चुनाव 33 प्रतिशत संसदीय सीटों पर महिला आरक्षण के साथ लड़ा जाएगा। केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने इस वर्ष संसद में नारी शक्ति विधेयक पारित करके अपने इरादे स्पष्ट कर दिए हैं जिसके बाद से इस दिशा में तेजी से काम भी शुरू कर दिया है। इस विधेयक की मंशा के अनुसार 2029 के चुनाव के जरिये संसदीय संस्थाओं में एक तिहाई महिलाएं चुनकर जाएंगी। संसद की वर्तमान संख्या के अनुपात में ही 181 महिला सदस्यों का चुनाव करना जरूरी होगा।
    प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बार-बार दोहरा रहे हैं कि देश में चार ही जातियां हैं जिनमें से एक महिला है। इस तरह वह विपक्ष की जाति जनगणना के पैंतरे के जवाब में राजनीति में जातियों का नया नैरेटिव गढ़ने की कोशिश कर रहे हैं। इनमें महिलाओं के अलावा तीन अन्य हैं-गरीब, किसान व युवा। गरीबों के अलावा युवा पर उनके फोकस को हाल में संपन्न विधानसभा चुनावों में उतारे गए प्रत्याशियों व मंत्रिमंडल के गठन में देखा जा सकता है। अगर हाल में गठित मध्यप्रदेश मंत्रिमंडल को देखें तो पहली बार 18 प्रतिशत महिलाओं को इसमें स्थान दिया गया है। युवा और नए चेहरों को देखें तो पुराने मंत्रिमंडल के सिर्फ सात चेहरों को ही दोहराया गया है।
    जाति जनगणना को रामबाण मानकर विपक्ष अगले चुनाव मेंे सत्तासंधान की कोशिश कर रहा है। हालांकि हमारे सामने वीपी सिंह के मंडलवाद और उसके बाद हुए चुनावों के विफल उदाहरण मौजूद है। जाति जनगणना के शोर के बीच हाल में पांच विधानसभाओं के चुनाव भी संपन्न हो चुके हैं जिनके निष्कर्ष और निष्पत्ति राजनीति की कुछ अन्य स्थितियों की ओर भी संकेत करते हैं जिनकी विपक्ष चाहे अनदेखी कर सकता है किंतु मोदी का एजेंडा स्पष्ट है, जो कारगर भी है।  हाल के चुनावों के विश्लेषण से पता चलता है कि अन्य पिछड़ी जातियां, दलित, आदिवासी व मुस्लिम आज भी कांग्रेस या गैर भाजपा दलों की झोली में हैं किंतु चुनाव में इनके आधार पर बनाए गए समीकरण भाजपा के फार्मूले के आगे निस्तेज हो रहे हैं। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को दलित होने के साथ प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोषित करने का फायदा भी विपक्ष के एक सपने की तरह है। कांग्रेस ने जब पंजाब के विधानसभा चुनाव में दलित मुख्यमंत्री का मास्टर स्ट्रोक ( जैसा मीडिया ने कहा था) खेला था, तब उसे जनता ने कितना प्रतिसाद दिया था, सबके सामने है। पंजाब वह राज्य है जहां दलितों की मजबूत आवाज मौजूद है।
    भाजपा ने चुनाव में जिन पारंपरिक वर्गीय हितों और वोट बैंकों को तोड़कर नए हितों की खेती शुरू की है, उसे समझकर राजनीति में नवाचार करने या उसे साठ-सत्तर के दशक के ढर्रे से निकालने की जरूरत को विपक्ष प्राथमिकता नहीं दे रहा है इसलिए भाजपा की प्रगति को रोकने में नाकामयाब हो रहा है। भाजपा ने इस दौरान लाभार्थी वर्ग, आदिवासी, पसमांदा मुसलमान जैसे नए वोट बैंक का आधार खड़ा किया और सांगठनिक कौशल पर जोर दिया है। अब वह महिलाओं की राजनीति को नए सिरे से खड़ा कर रही है। मध्यप्रदेश में लाड़ली बहनों के नाम पर तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने इसी वोट बैंक को भाजपा की प्रचंड विजय का आधार बनाया। इस राज्य के 32 विधानसभा क्षेत्र ऐसे थे जिनमें महिलाओं ने पुरुषों से अधिक मतदान किया। मप्र में चुनाव नतीजों का अनुमान लगा पाना कई पंडितों को इसलिए मुश्किल रहा क्योंकि वह इस मौन रहने वाले या मीडिया की पहुंच से लगभग दूर वर्ग की मंशा को नहीं भांप सके थे।
    उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के परिणामों ने भी कई राजनीतिक प्रेक्षकों को इसी तरह चौंकाया था। नतीजों का अनुमान करने में उनकी चूक यह थी कि वे भाजपा के लाभार्थी वर्ग, खासकर उज्ज्वला योजना के फायदों को नहीं देख पा रहे थे और चुनावी लाभ-हानि को ज्यादातर पुराने गणित से बूझ रहे थे। भाजपा ने उज्ज्वला योजना के जरिये गरीब के साथ इसी वर्ग की दुश्वारियों को दूर कर पूरे के पूरे परिवार को साधने की कोशिश की। इसके अलावा तीन तलाक कानून ने भी इस वर्ग को संबोधित किया। देश की संसदीय संस्थाओं में महिलाओं का प्रतिशत अभी बेहद कम है। यह विडंबनापूर्ण तथ्य है कि हमसे ज्यादा प्रतिनिधित्व एशिया के हमसे अपेक्षाकृत पिछड़े माने जाने वाले देशों में है। लोकसभा में महज 14 और राज्यसभा में 11 प्रतिशत महिलाएं हैं जबकि नेपाल जैसे देश में तीस प्रतिशत महिलाएं संसद की सदस्य हैं। पाकिस्तान में भी यह प्रतिशत 21 व बांग्लादेश में 20 फीसद है। हम बीस प्रतिशत महिलाओं को भी पचहत्तर साल बाद संसद में नहीं पहुंचा सके और 140 देशों में हमारा स्थान 103 वां है। इसके बावजूद कि देश के शीर्ष प्रधानमंत्री पद पर अस्सी के दशक में ही एक महिला विराजमान हो गई थी। पर श्रीमती इंदिरा गांधी महिला नेतृत्व की बदौलत राजनीति में शीर्ष पर नहीं पहुंची थीं अपितु एक राजनीतिक विरासत ने उन्हें इस पद तक पहुंचाया। हालांकि उन्होंने अपने कार्यकाल में पुरुषों से काबिलियत में कोई कमी नहीं रहने दी।
    छुटपुट महिला नेता खड़े करना बड़ी बात नहीं है। इतनी तो वह स्वाभाविक प्रक्रिया से ही आ जाती हैं। हमें आधी आबादी के मान से नेतृत्व खड़ा करना है तो उन्हें हर क्षेत्र में बढ़ावा देना होगा। जो इसलिए बड़ा काम है क्योंकि अभी विभिन्न क्षेत्रों में, चाहे वह कारपोरेट सेक्टर हो, शिक्षा का क्षेत्र हो या अन्य, महिला नेतृत्व की पंक्ति सूनी दिखती है। ऐसे में राजनीति में 33 प्रतिशत नेतृत्व और वह भी गुणवत्ता वाला नेतृत्व लाना चुनौती से कम नहीं है। राज्यों की स्थिति यह है कि 19 राज्यों की विधानसभा में 10 प्रतिशत से कम महिला प्रतिनिधित्व है। पंचायती राज संस्थाओं में आरक्षण देकर महिला नेतृत्व को लाने की कोशिश की जा चुकी है जिसमें सरपंच-पति जैसे लोग ही काम करते दिखते रहे हैं। महिलाएं नाममात्र की पदाधिकारी बनती रही हैं।
    यद्यपि यह प्रारंभिक दौर होता है। इसी प्रणाली से कुछ अच्छी महिला नेता जन्म ले सकी हैं। संसदीय संस्थाओं में यह दौर ही पहले आएगा पर हमें पंचायतों के अनुभव से यह सीख लेनी होगी कि पति या परिजनों की चरण-पादुका लेकर काम करने वाली महिलाओं की बजाय आत्मनिर्भर राजनीति करने वाला नेतृत्व विकसित हो सके। इसके लिए उनके काम करने के अवसरों और प्रशिक्षण की चिंता भी करनी होगी। कारपोरेट या अन्य कई क्षेत्रों में चरण-पादुका संस्कृति नहीं चलती और अच्छी महिला कार्यकारी काम कर रही हैं। अनुभव बताता है कि महिलाओं की भागीदारी से प्रशासन की गुणवत्ता व कामकाज का अच्छा पर्यावरण निर्मित होता है। राजनीति में यह तय हो गया है कि महिलाओं के नेतृत्व की पांत खड़ी करने की पहल भाजपा करने जा रही है। महिला नेतृत्व खड़ा करने के लिए राजनीतिक दलों को वार्ड या मोहल्ला स्तर से महिलाओं को आगे खड़ा करना होगा। अच्छे राजनेता भी इसी स्तर से पायदान चढ़कर ऊपर पहुंचते हैं। नगरपालिकाएं व पंचायतें या स्थानीय संस्थाएं उनकी नर्सरी होती हैं। महाविद्यालयों में ओछे दर्जे की राजनीति पनपने के कारण छात्रसंघ चुनाव बंद कर दिए गए थे। नेतृत्व की इस नर्सरी का उपयोग भविष्य की पीढ़ी गढ़ने के लिए किया जाना चाहिए। मैं उन महिलाओं को उनके भविष्य के सुनहरे सपने दिखा सकता हूं जो अभी किसी न किसी स्तर पर सक्रिय हैं।

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