Home » चुनाव में झूठ फैलाने के परिणाम लोकतंत्र के लिए खतरनाक

चुनाव में झूठ फैलाने के परिणाम लोकतंत्र के लिए खतरनाक

-आलोक मेहता
एक फिल्मी लोक गीत ‘झूठ बोले कौअा काटे, काले कौये से डरियो’ आज भी बहुत लोकप्रिय है और देश दुनिया में बजता सुनाई देता है। यह बात शायद बहुत कम लोगों को याद होगा कि राज कपूर की एक बेहद सफल फिल्म का यह गीत मध्य प्रदेश के एक प्रमुख राजनेता और एक प्रतिष्ठित व्यापारिक परिवार के सदस्य विठ्ठल भाई पटेल ने लिखा था। वह इंदिरा राजीव युग की कांग्रेस में मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री भी रहे। लेकिन अपने गीत, कविता में ही नहीं सार्वजनिक बयानों भाषणों में स्पष्टवादिता के कारण प्रदेश के कई नेताओं के प्रिय और कई के निशाने पर रहे। वर्षों तक उनके परिवार से निजी संबंधों के कारण दिल्ली दरबार में भी उनके प्रभाव को नजदीक से देखा है। इसलिए वर्तमान लोक सभा चुनाव में आरोप प्रत्यारोप और राष्ट्रीय स्तर के कुछ शीर्ष नेताओं के पूरी तरह बेबुनियाद और भ्रामक बयान देख सुनकर उनका तथा उनकी बातों और गीत का ध्यान आया। वह तो अपनी कांग्रेस पार्टी के मुख्यमंत्रियों अर्जुन सिंह और दिग्विजय सिंह की गलत बातों का सार्वजनिक विरोध में नहीं चूकते थे। केवल विठ्ठल भाई ही नहीं भारतीय राजनीति में कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी, सोशलिस्ट पार्टियों के कई नेता जनता में झूठ फैलाने के प्रबल विरोधी रहे हैं। उनका मानना रहा है कि गलत भ्रामक बातें और झूठे प्रचार से न केवल व्यक्ति विशेष और पार्टी की विश्वसनीयता खत्म होती है, बल्कि देश की भोली भाली जनता के बीच तनाव, निराशा पैदा होती है।
इस सन्दर्भ में आजकल कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गांधी और आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविन्द केजरीवाल के बयान और भाषण सचमुच बहुत आपत्तिजनक और दु:खद लगते हैं। प्रतिपक्ष के नेताओं को सत्तारूढ़ प्रधानमंत्री, सरकार और पार्टी की आलोचना, विरोध आदि स्वाभाविक और उचित कहा जा सकता है। लेकिन पूरी तरह झूठे तथ्यों से जनता को भड़काने तथा निराशा का माहौल बनाने का औचित्य समझ में नहीं आता है। जैसे देश की सभी जांच एजेंसियों, उनके अधिकारियों की नियम कानून से की गई कार्रवाई को बिल्कुल पूर्वाग्रही और अनुचित करार देना। फिर भ्रष्टाचार या अन्य आरोपों पर गिरफ्तारी, जेल, सजा केवल अदालत के आदेश पर ही संभव है। अधिकारी गलत प्रकरण दर्ज करने और कोई कार्रवाई करने पर अदालत से दण्डित होते हैं।
2014 में भारतीय जनता पार्टी के सत्ता में आने के बाद से केंद्रीय एजेंसी ने मनी-लॉन्िड्रंग मामलों में 7,264 छापे मारे। एक अधिकृत रिपोर्ट के अनुसार, भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के तहत, प्रवर्तन निदेशालय ने 755 लोगों को गिरफ्तार किया और 1,21,618 करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त की। केंद्रीय एजेंसी ने पिछले दस वर्षों में धन शोधन निवारण अधिनियम के तहत 5,155 मामले दर्ज किए। इसमें 36 मामलों में अदालत से सजा के आदेश हुए। पिछले दशक के दौरान अदालतों में दायर 1,281 आरोप पत्रों पर सुनवाई की तारीखें लग रही हैं। अब इसमें सरकार और एजेंसियों को कैसे दोषी ठहराया जा सकता है? राहुल गांधी और केजरीवाल या उनके समर्थक अन्य विरोधी दलों के नेता इस तरह की कार्रवाई को पूरी तरह राजनैतिक करार दे रहे हैं? इस तरह वह सम्पूर्ण प्रशासनिक और न्यायिक व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह लगा रहे हैं। जब वह यह दावा करते हैं कि इस चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा को पराजित कर सत्ता में आने वाले हैं, तब क्या वे ऐसे सारे मामले बंद कर कानूनी कार्रवाई खत्म कर देंगे और क्या इन विभागों के अधिकारियों को भी निकाल देंगे? आखिरकार लोकतंत्र में राजनीतिक दलों की सत्ता बदलती है, पूरी प्रशासनिक कानूनी व्यवस्था नहीं बदलती है।
इसी तरह पाकिस्तान और चीन की सीमाओं पर सेना द्वारा की जा रही साहसिक कार्रवाइयों पर भरोसा न करने जैसे बयान दिए जा रहे हैं। सेना किसी राजनीतिक पार्टी की नहीं होती। आतंकवाद से लड़ने और सीमा की सुरक्षा के लिए सम्पूर्ण व्यवस्था और समाज का विश्वास सेना पर रहता है। बालाकोट की सैनिक कार्रवाई के सबूत मांगना तो शर्मनाक है ही अब तो बस्तर में वर्षों से लाखों लोगों मासूम लोगों को हिंसा से आतंकित करते हुए विकास को रोकने और राजनेताओं, पुलिस, सशस्त्र बल के सैनिकों की हत्या करने वाले माओवादी नक्सल आतंकियों के 29 अपराधियों के मुठभेड़ में मारे जाने पर भी कांग्रेस के नेता विरोध के बयान दे रहे हैं। इसे नकली मुठभेड़ और हथियारबंद अपराधियों को शहीद तक कह रहे हैं। हद तो यह है कि प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल तक अपनी पार्टी प्रवक्ता सुप्रिया सुनैत का समर्थन कर रहे हैं । सुप्रिया तो हाल के वर्षों में पार्टी में आई हैं , लेकिन बघेल अपने क्षेत्र और देश के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता विद्याचरण शुक्ल सहित 20 से अधिक कांग्रेसियों की नक्सल समूह द्वारा हत्याओं को कैसे भूल सकते हैं? कथित मानव अधिकारों के नाम पर आतंकवादियों और माओवादियों के समर्थन में झूठ फैलाना महापाप ही कहा जाएगा।
सेना में अग्निवीर योजना के तहत भर्ती पर राहुल गांधी की असहमति हो सकती है और इसमें देर सबेर संशोधन सुधार हो सकता है। लेकिन यह केवल सरकार का निर्णय नहीं है, तीनों सेनाओं के प्रमुखों, पूर्व अधिकारियों आदि से सलाह करके बनाई गई है। लेकिन राहुल और उनके साथी इसे सेना को कमजोर करने, युवाओं के किसी संकट में मृत्यु का शिकार होने पर अन्य सैनिकों की तरह सम्मान नहीं देने, परिवार को शहीद परिवारों के समान मुआवजा नहीं देने जैसे झूठ को प्रचारित कर रहे हैं। जबकि हाल ही में एक अग्निवीर की मृत्यु पर परिवार को एक करोड़ रूपये से अधिक का मुआवजा तथा अन्य सम्मान सहायता दी गई।
देश की आर्थिक स्थिति पर इंटरनेशनल मॉनिटरिंग फण्ड तक ने भारत को दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थ व्यवस्था 2027 तक बन जाने की रिपोर्ट दी। बड़े उद्योगों के साथ माइक्रो, स्माल,मीडियम इंटरप्राइस कंपनियों की संख्या 7 करोड़ 50 लाख हो गई। ग्रामीण और खादी के कामकाज से लाखों महिलाओं परिवारों को लाभ मिल रहा। लेकिन राहुल केवल अडानी अम्बानी जैसे दो चार घरानों को सब कुछ सौंपे जाने के भ्रम फैला रहे हैं। लेकिन क्या टाटा, बिड़ला, किर्लोस्कर, मित्तल, हिंदुजा, जिंदल, सन फार्मा, गोयनका जैसे अनेक समूहों की पचासों कंपनियां प्रगति नहीं कर रही हैं? अरबों का निर्यात और विदेशी पूंजी निवेश नहीं हो रहा है? छोटे कारीगर, दुकानदार, स्किल्ड वर्कर्स तेजी से आमदनी नहीं बढ़ा रहे हैं? केवल ब्रिटिश राज के युग की तरह सरकारी नौकरियों और जातिगत भेदभाव बढ़ाने के झूठे प्रचार से नेता अपना ही नहीं समाज का नुकसान कर रहे हैं।

Swadesh Bhopal group of newspapers has its editions from Bhopal, Raipur, Bilaspur, Jabalpur and Sagar in madhya pradesh (India). Swadesh.in is news portal and web TV.

@2023 – All Right Reserved. Designed and Developed by Sortd