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- डॉ. मनमोहन प्रकाश
आज प्रदूषण एक डरपाने वाला शब्द बन गया है। पर्यावरण प्रदूषण से तो बच्चा-बच्चा अवगत है कि यह हमारे भविष्य के लिए खतरनाक है और यदि आज हम सावधान नहीं हुए तो आने वाली पीढ़ियों को अनेक समस्याओं से जूझना पड़ेगा। घर स्कूल मीडिया सभी इस प्रदूषण से सावधान कर रहे हैं। किंतु अत्यंत चिंतनीय है कि हम परिवार प्रदूषण पर मौन हैं। हम सभी जानते हैं कि परिवार भारतीय समाज और राष्ट्र की आधार शिला है। यदि नींव ही कमजोर हो जाएगी तो सुदृढ़ प्रसाद की कल्पना ही कैसे की जा सकती है।
हमारा देश सनातनी संस्कृति का देश है। हमारी संस्कृति सर्व जन हिताय, सर्व जन सुखाय के मंत्र से अनुप्राणित है। इसको बल मिलता है आपसी स्नेह, प्रेम, विश्वास, समर्थन,आदर, सम्मान, सहयोग, समन्वय और सुरक्षा पर टिकी पारिवारिक संरचना से। हमारे यहाँ परिवार को समृद्धि का प्रतीक, समरसता की कार्यशाला, नैतिक और व्यवहारिक शिक्षा और मूल्यों का स्कूल और आध्यात्मिक संवर्धन, और व्यक्तित्व विकास आदि के केंद्र के रूप में संवर्द्धन मिला है। परिवार का उद्देश्य सभी सदस्यों को आपस में जोड़े रखना है, उनमें पवित्रता के साथ समर्पण, सहयोग और सम्मान की भावना विकसित करना रहा है। परिवार अपने सभी सदस्यों को सामाजिक दायित्वों से परिचित कराता है। जरूरत पढ़ने पर उनको हिम्मत देना और उनका सहारा बनना परिवार का दायित्व रहा है। परिवार में रहते हुए व्यक्ति में बचपन से ही संस्कार, संस्कृति, अध्यात्म और धर्म के प्रति आस्था गहरी होती है। किन्तु अत्यंत दुख के साथ कहना पड़ता है कि आज परिवार और समाज में इन महत्वपूर्ण घटकों में कमी आ गई है। इसी से परिवार बिखर रहे हैं, मूल्य और मर्यादाएं खंडित हो रही हैं। एकल परिवार अनुभवी मार्गदर्शन और सहयोग के अभाव में अनेक समस्याओं से जूझ रहे हैं। ये स्थितियाँ पारिवारिक प्रदूषण के बढ़ते चरण ही हैं।
आज पारिवारिक प्रदूषण के कारण परिवार की मजबूत अधारभूत संरचना में बदलाव आ रहा है। हम बढ़ते पारिवारिक प्रदूषण का अंदाजा समाचार पत्रों में अक्सर छप रही खबरों से ही लगा सकते हैं जिसमें समाज में बढ़ती नशावृत्ति, वैश्यावृत्ति, बलात्कार, छेड़छाड़, अपहरण ,हत्या आदि के लिए अधिकांश प्रकरणों में परोक्ष और अपरोक्ष रूप से पारिवारिक सदस्य, नाते-रिश्तेदारों की ही भूमिका रेखांकित हो रही है। इस प्रदूषण की पराकाष्ठा तो हमें नवयुगलों की बदलती मानसिकता में परिलक्षित होती है – ये सजग, चेतनाशील युगल समाज में बढ़ते अपराध के कारण बच्चे पैदा करने से ही डरने लगे हैं। इन्हें बच्चों के बिना रहना गवांरा है पर बच्चों के साथ अनैतिक, अनाचार,अश्लील तथा शर्मशार करने वाली हरकत बिल्कुल पसंद नहीं। बढ़ते अहं, स्वार्थ और लोलुपता जैसी विषाक्त वृत्तियाँ के कारण तलाक के मामले भी बहुत बढ़ गए हैं। परिवार का जीवन ही संकट में है। नहीं मालूम पति-पत्नी के मध्य तलाक़ , अलगाव कब प्रवेश कर बच्चों को मांँ-बाप के प्यार, संरक्षण, अपनेपन से वंचित कर उन्हें उस अपराध की सज़ा दे देगा जो अपराध उन्होंने कभी किया ही नहीं। इन स्थितियों को देखते हुए यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगा कि आने वाले समय में विभिन्न रिश्तों से समृद्ध सनातन परिवार केवल पति-पत्नी और उसकी एक या शून्य संतान पर सिमट जाए। यदि ऐसा होता है तो देश और सनातन संस्कृति के लिए अच्छा नहीं कहा जा सकता।