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- उमेश चतुर्वेदी
हाल में एक संगठन के महिला विंग की बैठक हुई। बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के खिलाफ बगावत के बाद के हालात के संदर्भ में यह बैठक नही थी। लेकिन इस बैठक में यह मामला उठ गया। इस संदर्भ में महिलाओं से उनकी राय मांगी गई। महिलाओं को जब बोलने का मौका मिला तो जैसे उनके गुस्से को अभिव्यक्ति मिल गई। उन्होंने खुलकर वह बोलना शुरू किया, जिसकी उम्मीद नहीं की जा रही थी।
दरअसल बांग्लादेश में जो हो रहा है, उसे लेकर भारत की बड़ी आबादी चिंतित है। महिलाओं की राय उस चिंता को जाहिर तो कर ही रही थी, साथ में भारत सरकार को एक ऐसा सुझाव दे रही थी, जैसा सुझाव अब तक कम से खुलेतौर पर कोई राजनीतिक दल नहीं दे पाया है। भारत की नीति रही है, किसी के आंतरिक मामले में दखल नहीं देंगे, साथ ही अपने आंतरिक मामले में किसी का हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं करेंगे। भारत ने संयम पूर्वक इसी नीति पर अब तक चलने का रिकॉर्ड बनाया है। लेकिन जिस तरह भारत के पड़ोस में हालात बदल रहे हैं, आए दिन अल्पसंख्यकों पर हमले हो रहे हैं, उसे देख भारत की आबादी का बड़ा हिस्सा अब मानने लगा है कि भारत को भी अपनी विदेश नीति बदलनी चाहिए और भारत को पहले की तुलना में संयम की बजाय चुनिंदा मुद्दों और मौकों पर गंभीर रूख अख्तियार करना चाहिए। उस संगठन की महिलाओं की राय तो इससे भी कहीं आगे की थी। उनका कहना था कि बांग्लादेश में भारत को सीधा हस्तक्षेप करना चाहिए।
बांग्लादेश में जो हुआ, वह तो सबके सामने है। वहां के अल्पसंख्यक हिंदुओं को लगातार निशाना बनाया जा रहा है। इसे लेकर सीमा के इस पार चिंता होना स्वाभाविक है। आदिशक्ति की एक रूप ढाकेश्वरी देवी की आंचल में बसे ढाका शहर में हिंदुओं ने एकजुट होकर अपनी आवाज उठाई है, इसके बाद बांग्लादेश के अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद युनूस हिंदू छात्रों के प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात कर रहे हैं। वे बार-बार अल्पसंख्यकों की संपत्ति, घर आदि पर हमले को रोकने की अपील कर रहे हैं, इसके बावजूद बांग्लादेश के अल्पसंख्यक समुदाय को लेकर भारतीय आबादी का बड़ा हिस्सा चिंतामुक्त नहीं हो पाया है। हमले अब भी जारी हैं। कट्टरता की आड़ में सांप्रदायिक खटास ऐसी है कि खुलेआम हिंदू महिलाओं को अपमानित किया जा रहा है। एक महिला को भीड़ द्वारा अपमानित करने, उसे जबरिया तालाब में धकेलने, एक हिंदू व्यक्ति को तालाब में जाने के लिए मजबूर करने का बाद उस पर चौतरफा पत्थर का वार करने के दृश्य पूरी दुनिया ने देख लिया है। दिलचस्प यह है कि दुनियाभर में मानवाधिकार की ठेकेदारी करने वाले अमेरिकी और ब्रिटिश प्रभु वर्ग से ऐसी राय सामने नहीं आई है। हां, दुनियाभर में फैले हिंदुओं के संगठन लगातार बांग्लादेश में हो रहे अल्पसंख्यक अत्याचार पर ना सिर्फ सवाल उठा रहे हैं, बल्कि प्रदर्शन भी कर रहे हैं।
सवाल यह है कि क्या बांग्लादेश के हिंदुओं को निशाना इसलिए बनाया जा रहा है, क्योंकि वे शेख हसीना के समर्थक हैं। शेख हसीना का समर्थक होना एक कारण तो हो सकता है, लेकिन असलियत यह है कि बांग्लादेश में जिस तरह की ताकतें लगातार आगे बढ़ रही हैं, उनकी सोच के मूल में कट्टरपन है। बांग्लादेश के हिंदुओं को निशाना इसलिए भी बनाया जा रहा है, क्योंकि उन्हें बांग्लादेश की बहुसंख्यक मुस्लिम आबादी भारत समर्थक मानती है। तीन ओर से भारत से घिरे होने के बावजूद बांग्लादेश की बहुसंख्यक मुस्लिम आबादी भारत समर्थक तो कत्तई नहीं है। आज की बांग्लादेश की नई पीढ़ी इस अहसान के सोच से कोसों दूर है कि बांग्लादेश के जन्म ही नहीं, उसके निर्माण में भारत की बड़ी भूमिका रही है। उसे इतिहास से लेना-देना नहीं है, वह वर्तमान में खालिदा जिया के कट्टरपंथी राजनीतिक विचार और जमात ए इस्लामी के कट्टर विचार के प्रभाव में ज्यादा है। जिसके लिए उसकी कौम पहली प्राथमिकता है। बेशक इस्लाम के मूल में किसी धर्म की मुखालिफत का संदेश ना हो, लेकिन आधुनिक इस्लामी सोच के मूल में गैर मुसलमान से विरोध की सोच गहरे तक पैठ गई है। इसलिए भी भी बांग्लादेशी अपने ही पड़ोसी मुस्लिमों के निशाने पर हैं।
बांग्लादेश ही क्यों, भारत के पड़ोस के किसी भी देश को देख लीजिए। नेपाल तो हिंदू बहुल राष्ट्र है, लेकिन वहां की राजनीति का एक बड़ा हिस्सा चीन के प्रभाव में भारत विरोधी रूख वाले तलवार से लस नजर आता है। भारत की बड़ी आबादी भले ही नेपाल को अपनी संस्कृति के विस्तार के रूप में देखती हो, वह नेपाल को अपना छोटा भाई मानती हो, लेकिन नेपाल की राजनीति का एक बड़ा हिस्सा भारत विरोधी ग्रंथि से पीड़ित है। इसका असर आए दिन भारत विरोधी बयानों, भारतीय इलाकों को नक्शे में अपने हिस्से का दिखाने की होड़ के रूप में देखा जा सकता है। नेपाल में अभी केपी शर्मा ओली का शासन है। केपी शर्मा अपने भारत विरोध के लिए जाने जाते हैं। उनके पिछले शासन काल में भारत के हिस्से को नेपाल का हिस्सा जमकर बताया गया। भारत विरोधी भावनाओं को भी खूब भड़काया गया। भारत के पड़ोस स्थित म्यांमार की सैनिक सरकर भी भारत समर्थक नहीं है। भारत के समुद्री सीमा से सटे देश मालदीव की मुइज्जू सरकार ने तो भारत के खिलाफ मोर्चा ही खोल दिया था। श्रीलंका की भी स्थिति कमोबेश वैसी ही रही। यह बात और है कि चीन के औपनिवेशिक सोच के साइड इफेक्ट के असर में मालदीव भारत की ओर लौट रहा है तो श्रीलंका की ध्वस्त अर्थव्यवस्था को भारत ने ही बचाया।