Home » श्री गुरु गोविंद सिंह रचित ‘रामावतार’

श्री गुरु गोविंद सिंह रचित ‘रामावतार’

  • इंजी. राजेश पाठक
    26 अध्यायों में विभाजित, 864 पदों से युक्त श्री गुरु गोविन्द रचित ‘रामावतार’ में लगभग आधे पद युद्ध कथाओं पर आधारित हैं। मुगल अत्याचारों के विरुद्ध समाज को प्रेरित कर उठ खड़े होने के लिए वो भारत के पूर्वजों के युद्ध परंपरा का उन्हें स्मरण कराना चाहते थे। इसलिए उन्होंने इस राष्ट्र-चेतना के जागरण के लिए संगठन, शोर्य और पराक्रम से युक्त राम के चरित्र को चुना। गुरु नानक देव द्वारा स्थापित सिख धर्म में प्रारम्भ में वे लोग आकर्षित हुए जो कि मूलत: शांतिप्रिय थे, और जिनका झुकाव भक्तिमार्ग की और था। पर आगे चलकर जब बड़े ही क्रूरता के साथ ‘गुरु ग्रन्थ साहब’ के रचियता गुरु अर्जुनदेव का वध जहांगीर द्वारा और गुरु तेगबहादुर का वध औरंगजेब द्वारा हुआ तो सिख समाज के लिए ये समझना मुश्किल ना था कि भजन, कीर्तन, व्रत आदि से चित्त को शांति तो मिल सकती है, पर समाज की रक्षा की जहां तक बात है वो श्री राम के ही तरह बिना संगठन-शोर्य-पराक्रम के भाव को जगाये संभव नहीं। और इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए ‘खालसा-पंथ’ अस्तित्व में आया, जिसके जनक गुरु गोविन्द सिंह थे. खालसा के संकल्प को पूर्ण करने गुरु गोविन्द सिंह के आव्हान पर सर्वप्रथम जो पांच लोग आगे आये वे कहलाये ‘पंज-प्यारे। इनमे से एक धोबी समाज से; दूसरा, भिस्ती; तीसरा, दर्जी; चौथा, खत्री; तथा पांचवा, जाट समाज से था। इनमे से भी तीन बीदर, द्वारकापुरी व जगान्नाथपुरी के थे; शेष दो पंजाब के। खालसा में दीक्षित हो जाने पर केश,कच्छा,कड़ा,कंगी और कटार रखना अनिवार्य था, जिन्हें पांच ‘ककार’ का नाम दिया गया।
    श्री गुरु गोविन्द की रचना वीर रस पर आधारित है। ‘रामावतार’ के बाद का हिस्सा राम द्वारा युद्धों में प्राप्त विजय पर केद्रिंत है। वो देश को मुगल-शासन के मुक्त देखना चाहते थे। औरंगजेब और उसके वंशजों से लड़ते हुए उनके और उनके चार बालकों वीर गति को प्राप्त हुए। श्री राम के द्वारा स्थापित शास्वत आदर्श और अपने गुरु गोविन्द सिंह का सम्पूर्ण जीवन से प्राप्त प्रेरणा इतनी प्रखर रही की उनके दिखाए मार्ग पर चलते हुए उनके वंशज महाराजा रंजित सिंह ने उनका सपना पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वैसे तो सन 1755-1756 में पंजाब को मराठाओं ने मुगलों से मुक्त करा लिया था, पर इसके बाद वहाँ भारतीय संप्रभुता को मजबूत करने का श्रेय जाता है महाराजा रंजित सिंह को। इतना ही नहीं मुस्लिम वर्चस्व को तोड़ते हुए उनके सेनापति हरिसिंह नलुआ ने अफगानिस्तान के अंदर घुसते हुए काबुल तक को सिख साम्राज्य में मिलाने में सफलता प्राप्त करी, और जिस रत्न जड़ित द्वार को आठ सौ वर्ष पूर्व मेंहमूद गजनवी सोमनाथ के मंदिर को ध्वस्त कर अपने साथ ले गया था उसे बापस लाकर पुनः उसी स्थान पर स्थापित करने का गौरव प्राप्त किया। अमृतसर के जिस हरिमंदिर गुरुद्वारा को अहमद शाह अब्दाली ने ध्वस्त कर दिया था उसका पुनर्निर्माण कर महाराजा रंजित सिंह ने उसे आज के ‘स्वर्ण मंदिर’ का रूप प्रदान किया। साथ ही मुस्लिम शासन काल में सदियों से चले आ रहे गोवध पर प्रतिबन्ध लगाया।

Swadesh Bhopal group of newspapers has its editions from Bhopal, Raipur, Bilaspur, Jabalpur and Sagar in madhya pradesh (India). Swadesh.in is news portal and web TV.

@2023 – All Right Reserved. Designed and Developed by Sortd