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संसद भवन का विपक्षी बहिष्कार है लोकतंत्र का अपमान

  • प्रो. (डॉ.) राजेंद्र प्रसाद गुप्ता
    स्वतंत्र भारत के 75 वर्ष यानी आजादी के अमृतकाल में स्वदेशी संसद भवन का बनना तो सभी भारतीयों के लिए गौरव का विषय है। 28 मई 2023 को मात्र ढाई वर्ष में नई संसद भवन के उद्घाटन के साथ ही भारतीय इतिहास में इसका नाम स्वर्ण अक्षरों में दर्ज हो चुका है। जाति धर्म से ऊपर उठकर राष्ट्रहित में जनता के प्रतिनिधि के रूप में जनता द्वारा चुने गए सभी सांसद दलगत राजनीति से ऊपर उठकर काम करेंगे यही वह शपथ ग्रहण करेंगे। लेकिन कांग्रेस पार्टी समेत अन्य विपक्षी दलों ने लोकतान्त्रिक मर्यादा का तार-तार कर दिया है। भारत के विकास और लोकतांत्रिक मूल्यों का प्रतिनिधित्व करने वाले नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह का विरोध करना और उसमे शामिल नहीं होना, यह प्रदर्शित करता है कि उनके लिए राष्ट्रहित और जनहित से भी उपर राजनीति है। संसद भवन बनने के इतने बड़े प्रोजेक्ट में कहीं कोई भ्रष्टाचार के नहीं होने और बनाने के तौर तरीके मे कोई खामियां निकाल पाने में असफल कांग्रेस एवं अन्य विपक्षी दलों को जब यह गले नहीं उतरा तब उन्होंने अंत में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा किए जा रहे इसके उद्घाटन को लेकर के उन्होंने बहिष्कार करने की षडयंत्र रचा। विपक्ष को यह बात नामंजूर थी कि कोई व्यक्ति इतने कम समय में स्वयं शिलान्यास और उद्घाटन कैसे कर सकता है क्योंकि पूर्व में कांग्रेस के शासनकाल में ऐसा कभी नहीं हुआ है।
    पूरे सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट की घोषणा के बाद से कई अवसर पर इसे न्यायालय में विभिन्न विषयों को मुद्दा बनाकर चुनौती दी गई लेकिन हर बार अदालत ने इन याचिकाओं को निरस्त किया। सितंबर 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इस प्रोजेक्ट की घोषणा की गई थी, जिसकी आधारशिला उन्होंने 10 दिसंबर, 2020 को रखी थी। पहली बार 2020 में पर्यावरणीय मंजूरी मिलने से संबंधित याचिका दिल्ली हाईकोर्ट में दायर की गई थी जो बाद में सुप्रीम कोर्ट में चला। इसमें माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने 5 जनवरी 2021 को सरकार के पक्ष में फैसला सुनाते हुए सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना को सही ठहराया।
    अप्रैल 2021 में दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर करते हुए कहा गया कि कोविड महामारी के दौरान निर्माण कार्य को स्वास्थ्य एवं अन्य सुरक्षा को देखते हुए रोक लगाई जाए। इस पर 31 मई, 2021 को आदालत ने महत्वपूर्ण और आवश्यक राष्ट्रीय परियोजना परियोजना बताते हुए इसे जारी रखने की अनुमति दी। इतना ही नहीं न्यायालय ने तो एक लाख जुर्माना के साथ इस याचिका को खारिज किया था जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने भी सही माना।
    संसद भवन पर लगाई गई शेर की प्रतिमा के बनावट को लेकर भी याचिका दायर की गई थी जिस पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च अदालत ने कहा था कि इसमें भारतीय चिह्न (अनुचित उपयोग का निषेध) अधिनियम, 2005 का उल्लंघन नहीं किया गया है। निर्माण में गतिरोध के प्रयास जब अदालत में भी नहीं टिक पाई तब अब उसके उद्घाटन को लेकर विघ्न डालने का असफल प्रयास भी किया। एक बार फिर इस विषय को आदालत में लाया गया।
    संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति से कराने हेतु लोकसभा को निर्देशित किया जाए याचिका में कहा गया पर सुप्रीम कोर्ट ने याचीकर्त्ता को कहा कि ”इस याचिका को दायर करने में आपकी क्या दिलचस्पी है? हम समझते हैं कि आप ऐसी याचिकाएं लेकर क्यों आए हैं। क्षमा करें, हमें संविधान के अनुच्छेद-32 के तहत इस याचिका पर विचार करने में कोई दिलचस्पी नहीं है। आभारी रहें, हम जुर्माना नहीं लगा रहे हैं।” जिस बात को लेकर विपक्ष बवंडर मचाए हुए था वह किसी भी रुप से तर्कपूर्ण नहीं था। कांग्रेस राष्ट्रपति द्वारा उद्घाटन को लेकर जो हो हल्ला मचा रही थी वह न तो संविधान में वर्णित है न ही ऐसी कोई कठोर परंपरा रही है। कांग्रेस की कथनी और करनी में बहुत अंतर है।
    कांग्रेस पार्टी को यह पता होना चाहिए 24 अक्टूबर 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने संसद के एनेक्सी भवन का उद्घाटन स्वयं किया था जबकि 15 अगस्त 1987 को श्री राजीव गांधी ने संसदीय पुस्तकालय की नींव रखी थी। तो क्या कांग्रेस पार्टी मानती है तब के राष्ट्रपतियों का अपमान उनके द्वारा किया गया था?
    और तो और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार ने किस हैसियत से 2020 में नए विधानसभा का शिलान्यास अपने पार्टी के सांसद श्रीमती सोनिया गांधी एवं श्री राहुल गांधी से कराया था। ऐसे में संवैधानिक भवन का उद्घाटन सांसद से करा कर राज्यपाल का अपमान नहीं हुआ? तब छत्तीसगढ़ की तत्कालीन राज्यपाल अनुसुइया उइके जो मध्यप्रदेश के जनजाति समुदाय से आती हैंे ंको न बुला कर महिला और जनजाति समाज का भी अपमान किया? मणिपुर में भी जब विधानसभा का उद्घाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री के साथ साथ सोनिया गांधी ने किया। बिहार विधान मण्डल के विस्तारित भवन का उद्घाटन भी स्वयं मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार ने किया था। तब उन्होंने राज्यपाल को क्यों नहीं बुलाया?
    जहां तक दलित और आदिवासी प्रेम का सवाल है तो फिर कांग्रेस पार्टी को यह बताना चाहिए कि जब श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी को राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाया गया था तब उनके दल द्वारा समर्थन देने की बजाय अनेक बार अपमानजनक शब्द का प्रयोग क्यों किया गया? राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने तो नए संसद भवन का प्रधानमंत्री द्वारा उद्घाटन किए जाने का स्वागत किया और कहा कि नए संसद भवन के उद्घाटन का अवसर भारत के इतिहास में सुनहरे शब्दों में लिखा जाएगा। उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने कहा कि नया संसद भवन राजनीतिक सहमति कायम करने में मदद करेगा और गुलामी की मानसिकता से आजादी का प्रतीक बनेगा।

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