- डॉ. राघवेंद्र शर्मा
यह बेहद सुखद अनुभव है कि देश एक ओर जहां आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, तब हम अखंड भारत के पहले प्रधानमंत्री नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125 वीं जयंती मनाने जा रहे हैं। किंतु खेद के साथ लिखना पड़ रहा है कि अभी तक देशवासियों को यह तक नहीं मालूम कि नेताजी हमारे बीच सशरीर हैं भी अथवा परलोक सिधार गए हैं। यह बात इसलिए लिखना आवश्यक प्रतीत होता है, क्योंकि विमान हादसे में उनका निधन अभी तक एक रहस्यमई पहेली ही बना हुआ है। यदि सरकारी दस्तावेजों की बात करें तो उनका निधन 18 अगस्त 1945 को एक जापानी विमान के हादसे में होना बताया जाता है। लेकिन वर्तमान ताइवान और तत्कालीन फार्मोसा में हुए उक्त हादसे में नेताजी का निधन हो गया अथवा वे बचकर निकलने में सफल रहे, इस बाबत जांच आयोगों की भी स्पष्ट राय नहीं है। यदि नेताजी के समकालीन उनके नजदीकी मित्रों और शुभचिंतकों की बात की जाए तो वे ऐसा कहते रहे हैं कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस अंग्रेजों की आंख में सर्वाधिक तेजी के साथ खटक रहे थे। इसलिए एक षड्यंत्र के तहत उनकी हत्या का चक्रव्यूह रचा गया, जो सफल रहा। जबकि कुछ लोग यह भी कहते हैं कि उस विमान में नेताजी मौजूद ही नहीं थे तो फिर मौत कैसी? एक राय यह भी सार्वजनिक है कि नेता जी ने देश हित में खुद अपनी मौत का वातावरण निर्मित किया और वहां से साफ-साफ बच निकले। संभवत वे गुमनाम रहकर अंग्रेजो के खिलाफ निर्णायक युद्ध छेड़ने की मंशा रखते थे। विद्वानों का मत है कि यदि यह सब उनकी मंशा के अनुरूप हुआ तो फिर अंग्रेजों की सत्ता रहते और आजाद भारत में हमारी अपनी सरकार के समक्ष भी उनका जीवित प्रकट होना अनेक विसंगतियों को जन्म दे सकता था। कारण स्पष्ट है- अंग्रेज तो उनके दुश्मन थे ही, लेकिन पंडित जवाहरलाल नेहरू और उनकी बात मानने वाले अधिकांश कांग्रेसियों ने भी कभी सुभाष चंद्र बोस को अपना माना ही नहीं। यहां तक कि आजादी के संघर्ष में रहते हुए ही वे कांग्रेस के लिए बेगाने हो चुके थे और कांग्रेस उनके लिए बेगानी बन चुकी थी। यदि वे जीवित बच निकले थे तो गुलाम भारत में मृत घोषित होने के बाद जीवित प्रकट होने पर संभव है उन्हें उन्हीं का हत्यारा बताकर अंग्रेज शासन द्वारा गिरफ्तार कर लिया जाता और फिर अपने सबसे बड़े दुश्मन से गिन गिन कर बदले लिए जाते। यही आशंका आजाद भारत की कांग्रेस सरकार के रहते बनी रही। संभव है उन्हें जीवित देखकर उन्हें उन्हीं का हमशक्ल मानते हुए हमारी अपनी सरकार द्वारा भी उनसे पूछा जाता कि बताओ असली सुभाष चंद्र बोस कहां है? कुल मिलाकर सवाल अनेक हैं लेकिन जवाब अनुत्तरित ही बने हुए हैं। आज की परिस्थिति भी जस की तस बनी हुई है। किसी को नहीं पता कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस के निधन की वास्तविकता क्या है। भारत की आजादी के 75 साल बीत जाने के बाद भी हम आज तक यह पता क्यों नहीं लगा पाए कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस के निधन की सच्चाई क्या है। क्या उन्हें एक षड्यंत्र के तहत मारा गया? क्या वे विमान हादसे से जीवित बचने में सफल रहे? क्या गुमनामी बाबा ही सुभाष चंद्र बोस थे? 77 साल बाद ही सही, कम से कम अब तो उनके जीवन और मृत्यु के बीच का रहस्य उजागर होना ही चाहिए। जीते जी बोस के साथ वे नेता अन्याय करते रहे, जो आजादी का श्रेय सिर्फ और सिर्फ अपने पास रखना चाहते थे। किंतु अपने देश में अपनी सरकार के रहते उनकी मृत्यु भी न्याय मांगती प्रतीत होती रहे, यह कहां का न्याय है?
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