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- योगेश कुमार गोयल
विश्वभर में आधुनिकीकरण और औद्योगिकीकरण के चलते प्रकृति के साथ बड़े पैमाने पर खिलवाड़ हो रहा है। प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन और प्रकृति के साथ निर्मम खिलवाड़ का ही नतीजा है कि पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ने के कारण मनुष्यों के स्वास्थ्य पर तो प्रतिकूल प्रभाव पड़ ही रहा है, जीव-जंतुओं की अनेक प्रजातियां भी लुप्त हो रही हैं। विश्वभर में मौसम चक्र में निरन्तर आते बदलाव और बिगड़ते पर्यावरणीय संतुलन के कारण पेड़-पौधों की अनेक प्रजातियों के अलावा जीव-जंतुओं की कई प्रजातियों के अस्तित्व पर भी अब संकट के बादल मंडरा रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता परिषद, ‘इंटरगवर्नमेंटल साइंस-पॉलिसी प्लेटफॉर्म ऑन बायोडायवर्सिटी एंड इकोसिस्टम सर्विसेज’ (आइपीबीईएस) द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में करीब 10 लाख प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा है क्योंकि जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं, जिससे दुनियाभर के लोगों के स्वास्थ्य और उनकी जीवन की गुणवत्ता को नुकसान पहुंच रहा है। मौसम के तेजी से बिगड़ते मिजाज का ही असर है कि इन दिनों अपेक्षाकृत ठंडे रहने वाले यूरोप और अमेरिका जैसे इलाके भी ग्लोबल वार्मिंग के कारण बुरी तरह तप रहे हैं। उत्तरी ध्रुव से लेकर यूरोप, एशिया, अफ्रीका, हर कहीं जलवायु परिवर्तन के खौफनाक दुष्परिणाम नजर आ रहे हैं। कहीं ठंडे इलाके भी भीषण गर्मी से झुलस रहे हैं तो कहीं सूखे इलाके बाढ़ से त्राहि-त्राहि कर रहे हैं, जंगल झुलस रहे हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि इंसानी गतिविधियों के कारण हो रहे जलवायु परिवर्तन की वजह से पृथ्वी का तापमान पूर्व-औद्योगिक काल की तुलना में इस सदी के अंत तक 2.7 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है, जिससे विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी प्रजातियों के लिए 10 गुना खतरा बढ़ जाएगा। पर्यावरण के इस तेजी से बदलते दौर में भली-भांति यह समझ लेना होगा कि जीव-जंतुओं की अनेक प्रजातियों के लुप्त होने का सीधा असर समस्त मानव सभ्यता पर पड़ना अवश्वम्भावी है। प्रकृति के तीन प्रमुख तत्व हैं जल, जंगल और जमीन, जिनके बगैर प्रकृति अधूरी है और यह विड़म्बना ही है कि प्रकृति के इन तीनों ही तत्वों का इस कदर दोहन किया जा रहा है कि प्रकृति का संतुलन डगमगाने लगा है, जिसकी परिणति अब अक्सर भयावह प्राकृतिक आपदाओं के रूप में सामने आने लगी है।