भूपेन्द्र भारतीय
नर्मदा परिक्रमा पर प्रसिद्ध नर्मदा यात्री व लेखक अमृतलाल वेगड़ अपनी पुस्तक “तीरे तीरे नर्मदा“पुस्तक में लिखते है “उन परकम्मावासियों को मैं कैसे भूल सकता हूँ जिन्हें देखकर मैं यह समझ सका कि ‛आस्था’ किसे कहते हैं। परिक्रमा आस्था का, सर्वसमर्पण का ही तो अभियान है। एक ही नदी का ध्यान करते हुए बरसों चलना-नियमानुसार परिक्रमा करने पर 3 बरस , 3 महीने, 13 दिन लगते हैं- यह कोई छोटी -मोटी तपस्या नहीं। साहस भी कम नहीं। जोखिम भी है और अपरिग्रह तो है ही। क्या होता है उनके पास! फिर भी उनमें से कई में आत्मदीनता का कोई भाव नहीं। उनसे मैंने सीखा कि सुख का आरंभ सादगी से होता है। हमारी जीवन – नौका को हमें हलका रहने देना चाहिए, उसे केवल जरूरत के सामान से ही भरना चाहिए। वरना यह कबाड़ ही हमें डुबो देगा।” अपनी नर्मदा यात्रा में वेगड़ जी ने इससे भी अद्भुत प्रसंग नर्मदा परिक्रमा के विषय में लिखे हैं। जितने परिक्रमावासी उतने सुंदर सुंदर अनुभव इस सुंदर नदी की परिक्रमा में आते हैं। यह परिक्रमा आध्यात्म के साथ ही प्रकृति की भी है। सनातन धर्म में प्रकृति पूजन अनंत काल से रहा है।
जब बात नर्मदा के भौगोलिक दृश्य व परिचय की जाती है तो नर्मदा भारत की प्रमुख नदियों में से एक है। इसे रेवा भी कहा जाता है। यह भारतीय उपमहाद्वीप की पाँचवी सबसे लम्बी नदी है। यह गोदावरी तथा कृष्णा नदी के बाद भारत के अंदर बहने वाली तीसरी सबसे लम्बी नदी है। यह मध्यप्रदेश के अनूपपर जिले में विन्ध्याचल और सतपुड़ा पर्वत श्रेणियों के संधिस्थल पर स्थित अमरकण्टक के नर्मदा कुंड से निकलती है तथा पश्चिम दिशा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात से बहती हुई खम्भात की खाड़ी (अरब सागर) में समा जाती है।
नर्मदा नदी की कुल लम्बाई 1312 किलोमीटर है। अकेले मध्यप्रदेश राज्य में ही यह 1077 किलोमीटर में बहती है। नर्मदा मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात के सामाजिक, आर्थिक,पर्यटन और धार्मिक जीवन को प्रभावित करती है। मध्यप्रदेश के लोकजीवन व उनके मानस में इसका इतना गहरा प्रभाव और योगदान है कि इसे मध्यप्रदेश की जीवनरेखा भी कहा जाता है।
नर्मदा सिर्फ़ एक नदी ही नहीं, सौंदर्य की देवी भी है। अपने उद्गम स्थल अमरकण्टक से निकलकर पर्वत श्रंखलाओ, मैदानों और घने जंगलों को पार करते हुए अद्भुत प्रकृतिक सौंदर्य का निर्माण करती है। इसके ख़ूबसूरत तट, अद्भुत जलप्रपात, सुंदर व स्वच्छ घाट और संगमरमर की चमकती हुई चट्टानें ऐसी लगती है मानो वह अपने सौन्दर्य को चारों ओर बिखेर रही हो। नर्मदा की कल-कल, छल-छल करती ध्वनि पक्षियों के कलरव के साथ मिलकर हमें मंत्रमुग्ध और ध्यानातीत कर देती है। नदी की परिक्रमा आस्था व भक्ति से प्रमुख रूप से जुड़ी है। परिक्रमावासी भक्त व नर्मदा जी भगवान है।
नर्मदा परिक्रमा को ‘प्रदक्षिणा करना’ भी कहते हैं, जो षोडशोपचार पूजा का एक अंग है। नर्मदा परिक्रमा या यात्रा एक धार्मिक यात्रा है। जिसने भी नर्मदा या गंगा में से किसी एक की परिक्रमा पूरी कर ली उसने अपने जीवन का सबसे बड़ा काम कर लिया। उसने मृत्यु से पहले वह सब कुछ अनुभव कर लिया, जो वह यात्रा नहीं करके जीवन में कभी नहीं समझ पाता। परंपरागत रूप से परिक्रमा की शुरूआत में नदी, तीर्थ-यात्रियों के दाहिनी ओर होती है। पूरी परिक्रमा के दौरान तीर्थ-यात्रियों को कुछ परंपरागत नियमों का पालन करना होता है। उन्हें यह परिक्रमा प्रकृति उपासक की तरह करनी होती है। परिक्रमावासी मार्ग में आश्रमों और धर्मशालाओं में रहकर थोड़ा विश्राम भी कर सकते हैं। नर्मदा किनारे के लोग तीर्थयात्रियों को भगवान या पवित्र नदी का प्रतिनिधित्व मानते हैं और उन्हें भोजन और रात में रहने के लिए जगह प्रदान करके उनकी अच्छे से देखभाल करते हैं। इस परिक्रमा के दौरान तीर्थ-यात्री नर्मदा के किनारे पर स्थित विभिन्न मंदिरों के दर्शन करते हैं। पदयात्रा का एक नियम यह है कि कोई भी व्यक्ति नदी पार करके दूसरे किनारे या बीच में नहीं जा सकता।
विगत दिनों जब मेरी एक नर्मदा परिक्रमावासी से फोन पर बात हुई तो उनका कहना था कि मां नर्मदा परिक्रमा में समय पर जो रुका सुखा मिल जाए वह खा लेना चाहिए। वही सच्ची परिक्रमा होती है। परिक्रमा कितने ही तरीकों से की जाती है लेकिन सामान्यतः एक बार में ही परिक्रमा की जाती है। कुछ नर्मदा भक्त अपनी मोटरसाइकिल पर भी परिक्रमा करते देखे जा सकते हैं।
आजकल लोग इसे यात्रा की तरह भी करते हैं और टुकड़ों में इस यात्रा को जीते हैं। पर परिक्रमा का अपना विधान है। नदी के किनारे रहने वाले जनमानस परिक्रमावासीयों की बहुत सेवा करते हैं व उन्हें बड़े भक्ति भाव से परिक्रमा मार्ग में सहायता करते हैं। मध्यप्रदेश सरकार ने भी परिक्रमावासीयों के लिए परिक्रमा मार्ग से लेकर रात्रि विश्राम जैसी अन्य सुविधाएं उपलब्ध करवाई है। नर्मदा नदी पर अब बहुत से सुंदर स्वच्छ घाट व मंदिरों का निर्माण हो गया है व बहुत से मंदिर-घाट सदियों से स्थित है। जो परिक्रमा मार्ग में विशेष आकर्षण का केंद्र रहते हैं। हर वर्ष परिक्रमावासीयों की संख्या बढ़ती जा रही है।
परिक्रमा जितनी नर्मदा नदी के पास से होकर चलती है उतना ही इस नदी के नैसर्गिक सौंदर्य का दर्शन व गहरा अनुभव परिक्रमा करने वाले को होता है। यह नदी “दिन में भले ही नर्मदा हो, रात में यह नदी रेवा है। दिन में वह दृश्य है तो रात में श्रव्य।” नर्मदा को किरात-कन्या कहते है। इसका कभी लयबद्ध बहाव तो कभी पत्थरों को तोड़ती यह नदी परिक्रमावासीयों के लिए किसी स्वर्ग की यात्रा से कम नहीं। यह परिक्रमा सनातन धर्म के सौंदर्य की परिक्रमा है। यह सौंदर्य युगों युगों से माँ नर्मदा की निर्मल जल धारा के साथ बह रहा है। विश्व में सांस्कृतिक विरासत के रूप में ऐसी अन्य कोई नदी यात्रा नहीं है जो कि नर्मदा परिक्रमा के नाम से प्रसिद्ध है।
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