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मराठा आरक्षणः युवाओं को बैसाखी थमाने का उपाय

  • प्रमोद भार्गव
    महाराष्ट्र में मराठा समाज को आरक्षण देने की मांग के चलते कुछ युवकों द्वारा आत्महत्या करने की घटनाओं ने अत्यंत चिंताजनक संदेश दिया है। इस आंदोलन के नए जनक मनोज जरांगे है। उनके छह दिन चले आमरण अनशन के बाद यह आंदोलन उग्र और हिंसक तो हुआ ही, इसने युवाओं में अवसाद भरने का काम भी कर दिया। नतीजतन इसी माह अब तक एक दर्जन से ज्यादा युवा अवसाद की गिरफ्त में आकर आत्महत्या कर चुके हैं। साफ है, महाराष्ट्र में ही नहीं पूरे देश में जाति और समुदायगत आरक्षण का ऐसा महिमामंडन किया जा रहा है कि सरकारी नौकरी नहीं मिली तो जैसे जीवन चल ही नहीं पाएगा। कुंठा और अवसाद की यह मानसिकता बेहद हानिकारक है। क्योंकि आरक्षण उपलब्ध संसाधनों में एक बैसाखी तो हो सकता है, लेकिन समस्या का स्थाई हल नहीं है। अतएव इस समस्या का ऐसा समाधान खोजने की जरूरत है, जो संविधान की कसौटी के अनुरूप तो हो ही, न्यायिक चुनौती का भी सामना कर सके। क्योंकि जब-जब मराठों को आरक्षण देने के उपाय किए गए, ये उच्च और सर्वोच्च न्यायालयों में कानूनी लड़ाई हार गए।
    पिछड़ा वर्ग आयोग के अस्तित्व में आने के बाद महाराष्ट्र में मराठाओं को आरक्षण देना आसान लगने लगा था, लेकिन संभव नहीं हुआ। हालांकि मराठा समाज की यह मांग 1980 से लंबित है। 2014 में महाराष्ट्र विधानसभा से इस समुदाय को 16 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान पहली बार किया गया था। किंतु मुंबई उच्च न्यायालय ने इस व्यवस्था को गैर संवैधानिक मानते हुए, इसके अमल पर रोक लगा दी थी। इसके बाद आरक्षण की मांग नियमित उठती रही। 2016 में इस आंदोलन के स्वरूप ने आक्रोश का रूप भी ले लिया था। नतीजतन एक युवक ने नहर में कूंदकर आत्महत्या भी कर ली थी। आज फिर यह आंदोलन हिंसा की राह पर है।
    एनसीपी के विधायक प्रकाश सोलंके और संदीन क्षीरसागर के उग्र भीड़ ने घर फूंक दिए। परिवहन निगम की 13 बसों को नष्ट कर दिया। गरम लोहे पर हथौड़ा चलाने के नजरिए से शिवसेना के एकनाथ शिंदे गुट के सांसद हेमंत पाटिल और हेमंत गोडसे ने आरक्षण के समर्थन में त्याग-पत्र दे दिए।
    राज्य सरकार ने ओबीसी के तहत मराठाओं को 16 प्रतिशत आरक्षण दिया था। नतीजतन राज्य में कुल आरक्षण 50 फीसदी की सीमा को पार कर गया। सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने मई 2021 में मराठा आरक्षण रद्द कर दिया था। इसके बाद मराठा नेताओं ने मांग की कि उनके समुदायों को कुनबी जाति के प्रमाण-पत्र दिए जाएं। इस आंदोलन के हिंसक होने और युवकों द्वारा आत्महत्या करने के बाद सरकार ने आनन-फानन में कैबिनेट उपसमिति की बैठक में न्यायाधीश संदीप शिंदे समिति की रिपोर्ट स्वीकार कर ली। इसके परिणाम स्वरूप अब मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा है कि कुछ मराठवाड़ा परिवारों को आरक्षण मिलेगा। कुल 1.73 करोड़ अभिलेखों में से कुनबी समुदाय के पक्ष में 11,530 साक्ष्य मिले हैं। जिनके पास कुनबी होने के साक्ष्य होंगे, उन्हें तत्काल आरक्षण प्रमाण-पत्र जारी कर दिए जाएंगे। लेकिन अनशन पर बैठे मनोज जरांगे ने आंशिक आरक्षण स्वीकार करने से इंकार कर दिया है। साफ है, आरक्षण का पेंच इस निर्णय के बाद भी सुलझा नहीं है।

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