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- ललित गर्ग
असाधारण दबावों और चुनौतियों का सामना करते हुए इसरो ने चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर को चंद्रमा की 70 डिग्री दक्षिणी अक्षांश रेखा के पास बिल्कुल सटीक तरीके से उतार कर भारत ने विलक्षण इतिहास तो रचा ही है, दुनिया में भारत विरोधी शक्तियों का मुंह भी बंद कर दिया है, अब भारत गरीबी भी दूर कर रहा है, अपनी समस्याओं के समाधान खुद के बल पर हल भी कर रहा है और दुनिया की बड़ी से बड़ी शक्ति से टक्कर लेने की स्थिति में भी पहुंच रहा है। आजादी के अमृतकाल में ऐसी ही अनेक उपलब्धियों की स्पष्ट आहट सुनाई दे रही है। इस विलक्षण, अनूठी एवं चमत्कारपूर्ण सफलता के लिये इसरो को, इस मिशन में लगी पूरी टीम को ही नहीं देश की पूरी वैज्ञानिक बिरादरी को जितनी बधाई दी जाए कम है लेकिन इन उत्सव एवं उमंग के क्षणों में भी राजनीति करने वालों पर तरस आता है, भगवान् उन्हें सद्बुद्धि दें। निश्चित ही भारत ने चांद को मुट्ठी में कर लिया है और यह जता दिया है कि कम साधनों एवं खर्चों में भी भारत बड़ी लकीरें खींच सकता है।
निश्चित ही भारत ने वह कर दिखाया, जो विश्व का कोई देश और यहां तक कि अमेरिका, चीन एवं रूस भी नहीं कर सका। इसरो यानी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने चंद्रयान-3 के लैंडर को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रूव पर सफलतापूर्वक पहुंचाकर देश ही नहीं, दुनिया को चमत्कृत करने का काम किया। चंद्रयान-3 की चंद्रमा पर सफल लैंडिंग एक ऐसा अविस्मरणीय और अद्भुत क्षण है, जो वर्षों तक भारतवासियों को प्रेरित करता रहेगा। यह एक अमिट आलेख है, शानदार उपलब्धि है, जो सचमुच स्वर्णाक्षरों में लिखी जाएगी। इस उपलब्धि ने हम भारत के लोगों में जिस उत्साह और उमंग का संचार किया है, वह अकल्पनीय है। इन चमत्कृत करने वाले दृश्यों को भारत के करोड़ों लोगों ने देखा एवं समूचे देश को उत्सवमय बना दिया। अंतरिक्ष में नये भारत की इस नई, असाधारण एवं ऐतिहासिक उड़ान से समूची दुनिया को लाभ मिलेगा। इस अभियान की अगली चुनौती लैंडिंग के चार-पांच घंटे गुजर जाने पर प्रज्ञान रोवर को चंद्र सतह पर चलाने और चौदह दिनों के एक चंद्र-दिन में लैंडर और रोवर के लिए निर्धारित सारे प्रयोग पूरे करने की है। जाहिर है, ये प्रयोग सिर्फ भारत के लिए नहीं, पूरी दुनिया के लिए मायने रखते हैं। अब इस चन्द्रयान से मिलने वाली सूचनाओं से चन्द्रमा पर मानव जीवन की संभावनाओं को पंख लग सके तो कोई आश्चर्य नहीं है। वहां पर जल की उपलब्धता, तापमान, जमीन की स्थिति, उपलब्ध खनिज पदार्थों आदि की जानकारियां एवं टेक्टॉनिक हलचलों का पता चलेगा।
बहरहाल, इसरो का काम कितना पक्का, तीक्ष्ण एवं परिपक्व था, इसका अंदाजा लगाने के लिए चंद्रयान-3 की उतराई का लाइव ग्राफ देखना देश-दुनिया के लिए काफी रहा होगा। यह हर बिंदु पर ठीक वैसा ही रहा, जैसा इसके होने की उम्मीद थी। साइंस-टेक्नॉलजी के मामले में रूस की गति भारत से एक सदी आगे समझी जाती है। इसके बावजूद लूना-25 को पार्किंग ऑर्बिट से लैंडिंग ऑर्बिट में लाने वाले थ्रस्टर्स ने ऑटोमेटिक कमांड समझने में चूक कर दी और वह अस्थिर कक्षा में पहुंचकर नष्ट हो गया। लेकिन चंद्रयान-3 के एक-एक थ्रस्टर ने कमांड के मुताबिक काम किया। यकीनन इसमें बहुत बड़ी भूमिका चंद्रयान-2 से हासिल किए गए तजुर्बे की रही।
चंद्रयान-3 अभियान की सफलता पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यह ठीक ही कहा कि यह विकसित एवं नये भारत का जयघोष है और इससे देश को एक नई ऊर्जा और चेतना मिली है। उन्होंने चंद्रयान-3 की सफलता को जिस तरह नए भारत की नई उड़ान करार देते हुए इसे अमृतकाल की प्रथम प्रभा में अमृत वर्षा की संज्ञा दी, उससे इस यकीन को बल मिलता है कि वर्ष 2047 तक भारत विकसित राष्ट्र बनने के अपने सपने को वास्तव में साकार करने की दिशा में बढ़ रहा है।