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प्रकृति को समर्पित मकर संक्रांति महापर्व

  • डॉ राघवेंद्र शर्मा
    सनातन से उत्पन्न भारतीय संस्कृति का बारीकी से अध्ययन किया जाए तो हम पाएंगे कि यह व्यावहारिकता और ज्ञान विज्ञान के साथ गुंथी हुई है। यही कारण है कि भारतीय संस्कारों में जितने भी पर्व अथवा महापर्व हैं, उनका मनुष्य जीवन में व्यापक प्रभाव परिलक्षित है। मनुष्य कैसे स्वस्थ रहे, उसे किस प्रकार महान आदर्शों का स्मरण बना रहे, वह किस प्रकार ऊर्जावान हो सकता है, इस बात की चिंता भारतीय त्यौहारों में नियम आदि निश्चित करते समय की गई है। मकर संक्रांति पर्व भी एक प्रकार से प्रकृति से जुड़ा हुआ महापर्व ही है। यह बात और है कि सदैव ही भारतीय संस्कारों में नकारात्मकता ढूंढने वाले लोग इसे एक दाकियानूसी, रूढ़िवादी परंपरा ही करार देते हैं। परंतु गौर से देखें तो मकर संक्रांति महापर्व भगवान सूर्यनारायण की पूजा अर्चना का पर्व है। यह मानव मात्र के स्वास्थ्य वर्धन का महापर्व है। यह प्रकृति के परिवर्तन के साथ समायोजित होने का त्यौहार है। सर्व विदित है और शास्त्र बताते हैं कि वास्तव में सूर्य नारायण श्री भगवान सत्यनारायण का ही अंश हैं। उन्हीं से ऊर्जा का प्रादुर्भाव है और ऊर्जा प्राण अथवा आत्मा का मूल तत्व है‌। यदि सरल भाषा में कहें तो सूर्य से ही जीवन है और उसके बगैर चेतन की कल्पना तक नहीं की जा सकती। यही वजह है कि भगवान सूर्य नारायण को भी परमपिता परमात्मा के समान ही पूजा उपासना योग्य मान्यता प्राप्त है। इन सभी धारणाओं को इस व्यवहार से भी पुष्टि प्राप्त होती है कि सूर्य नारायण मकर संक्रांति से पूर्व तक दक्षिणायन रहते हैं। अर्थात उनकी गति धीमी रहती है और तेज न्यूनतम बना रहता है। फल स्वरुप समूचे ब्रह्मांड में शीत लहर और ठंडा मौसम का प्रभाव बना रहता है। किंतु मकर संक्रांति के दिन से सूर्य नारायण उत्तरायण हो जाते हैं। उनकी गति तीव्र हो जाती है तथा तेज ओजपूर्ण हो जाता है। फल स्वरुप मौसम गर्म होने लगता है और शनै: – शनै: दिन बड़े होने लगते हैं। इसे मौसम का संक्रमण काल भी कहा जाता है। यानि कि मकर संक्रांति के पूर्व से जो मौसम ठंडा होता है वह गर्मी में परिवर्तित होने लगता है। यह सूर्य की गति और दिशा बदलने का द्योतक है। यही वजह कि मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्य की पूजा उपासना की जाती है। इस दिन तिल का सेवन करने, उसके माध्यम से स्नान आदि करने का विधान भी है। जहां तक खानपान की बात है तो हमारे वेद शास्त्रों में आयुर्वेदिक लिखित सत्य है कि तिल का प्रभाव उष्णीय होता है। इसके शरीर पर घर्षण से सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है। यह पोखर, तालाबों, नदियों के जल का स्पर्श पाकर स्वास्थ को अनुकूलता एवं सकारात्मकता प्रदान करती है। यही कारण है कि हिंदू धर्म को मानने वाले लोग मकर संक्रांति के दिन पवित्र नदियों, तालाबों के इर्द-गिर्द एकत्रित होते हैं। वहां तिल के द्वारा शरीर का घर्षण किया जाता है। तदोपरांत निर्मल जल द्वारा स्नान करके भगवान सूर्य को अर्घ प्रदान करते हुए भगवान की उपासना की जाती है‌। उपरोक्त क्रियाओं से यह स्पष्ट हो जाता है कि हमारे ऋषि मुनियों एवं धर्म शास्त्रों में मानव मात्र के जीवन दर्शन को ऐसी परंपराओं से जोड़कर गढ़ा है, जिससे उसे निरंतर ऊर्जा, सकारात्मकता प्राप्त होती रहे। यही दर्शन मकर संक्रांति के पर्व में परिलक्षित होता है। शैव संप्रदाय के लोग मकर संक्रांति महापर्व के दौरान भगवान शिव की आराधना विशेष रूप से करते हैं। इसके पीछे का रहस्य यह बताया जाता है कि त्रिदेवों में भगवान शिव को आदि देव कहा गया है। ब्रह्मांड के संतुलन को बनाए रखने हेतु वे सदैव ही तत्पर बने रहते हैं। चूंकि मकर संक्रांति महापर्व ऋतु परिवर्तन का संधि काल है। ऐसे में जीर्ण – शीर्ण काया के निर्बल लोगों का अस्वस्थ हो जाना एक सामान्य प्रक्रिया भी है। इन्हें काल के ग्रास से बचाया जा सके, इस हेतु देवताओं में महादेव की पूजा अर्चना को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। यही कारण है कि गंभीर रोगों से स्वयं को बचाए रखने की कामना मन में धारण कर संक्रांति महापर्व के दिन भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक किया जाने का भी प्रावधान है।
  • सनातन से उत्पन्न भारतीय संस्कृति का बारीकी से अध्ययन किया जाए तो हम पाएंगे कि यह व्यावहारिकता और ज्ञान विज्ञान के साथ गुंथी हुई है। यही कारण है कि भारतीय संस्कारों में जितने भी पर्व अथवा महापर्व हैं, उनका मनुष्य जीवन में व्यापक प्रभाव परिलक्षित है। मनुष्य कैसे स्वस्थ रहे, उसे किस प्रकार महान आदर्शों का स्मरण बना रहे, वह किस प्रकार ऊर्जावान हो सकता है, इस बात की चिंता भारतीय त्यौहारों में नियम आदि निश्चित करते समय की गई है। मकर संक्रांति पर्व भी एक प्रकार से प्रकृति से जुड़ा हुआ महापर्व ही है। यह बात और है कि सदैव ही भारतीय संस्कारों में नकारात्मकता ढूंढने वाले लोग इसे एक दाकियानूसी, रूढ़िवादी परंपरा ही करार देते हैं। परंतु गौर से देखें तो मकर संक्रांति महापर्व भगवान सूर्यनारायण की पूजा अर्चना का पर्व है। यह मानव मात्र के स्वास्थ्य वर्धन का महापर्व है। यह प्रकृति के परिवर्तन के साथ समायोजित होने का त्यौहार है। सर्व विदित है और शास्त्र बताते हैं कि वास्तव में सूर्य नारायण श्री भगवान सत्यनारायण का ही अंश हैं। उन्हीं से ऊर्जा का प्रादुर्भाव है और ऊर्जा प्राण अथवा आत्मा का मूल तत्व है‌। यदि सरल भाषा में कहें तो सूर्य से ही जीवन है और उसके बगैर चेतन की कल्पना तक नहीं की जा सकती। यही वजह है कि भगवान सूर्य नारायण को भी परमपिता परमात्मा के समान ही पूजा उपासना योग्य मान्यता प्राप्त है। इन सभी धारणाओं को इस व्यवहार से भी पुष्टि प्राप्त होती है कि सूर्य नारायण मकर संक्रांति से पूर्व तक दक्षिणायन रहते हैं। अर्थात उनकी गति धीमी रहती है और तेज न्यूनतम बना रहता है। फल स्वरुप समूचे ब्रह्मांड में शीत लहर और ठंडा मौसम का प्रभाव बना रहता है। किंतु मकर संक्रांति के दिन से सूर्य नारायण उत्तरायण हो जाते हैं। उनकी गति तीव्र हो जाती है तथा तेज ओजपूर्ण हो जाता है। फल स्वरुप मौसम गर्म होने लगता है और शनै: – शनै: दिन बड़े होने लगते हैं। इसे मौसम का संक्रमण काल भी कहा जाता है। यानि कि मकर संक्रांति के पूर्व से जो मौसम ठंडा होता है वह गर्मी में परिवर्तित होने लगता है। यह सूर्य की गति और दिशा बदलने का द्योतक है। यही वजह कि मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्य की पूजा उपासना की जाती है। इस दिन तिल का सेवन करने, उसके माध्यम से स्नान आदि करने का विधान भी है। जहां तक खानपान की बात है तो हमारे वेद शास्त्रों में आयुर्वेदिक लिखित सत्य है कि तिल का प्रभाव उष्णीय होता है। इसके शरीर पर घर्षण से सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है। यह पोखर, तालाबों, नदियों के जल का स्पर्श पाकर स्वास्थ को अनुकूलता एवं सकारात्मकता प्रदान करती है। यही कारण है कि हिंदू धर्म को मानने वाले लोग मकर संक्रांति के दिन पवित्र नदियों, तालाबों के इर्द-गिर्द एकत्रित होते हैं। वहां तिल के द्वारा शरीर का घर्षण किया जाता है। तदोपरांत निर्मल जल द्वारा स्नान करके भगवान सूर्य को अर्घ प्रदान करते हुए भगवान की उपासना की जाती है‌। उपरोक्त क्रियाओं से यह स्पष्ट हो जाता है कि हमारे ऋषि मुनियों एवं धर्म शास्त्रों में मानव मात्र के जीवन दर्शन को ऐसी परंपराओं से जोड़कर गढ़ा है, जिससे उसे निरंतर ऊर्जा, सकारात्मकता प्राप्त होती रहे। यही दर्शन मकर संक्रांति के पर्व में परिलक्षित होता है। शैव संप्रदाय के लोग मकर संक्रांति महापर्व के दौरान भगवान शिव की आराधना विशेष रूप से करते हैं। इसके पीछे का रहस्य यह बताया जाता है कि त्रिदेवों में भगवान शिव को आदि देव कहा गया है। ब्रह्मांड के संतुलन को बनाए रखने हेतु वे सदैव ही तत्पर बने रहते हैं। चूंकि मकर संक्रांति महापर्व ऋतु परिवर्तन का संधि काल है। ऐसे में जीर्ण – शीर्ण काया के निर्बल लोगों का अस्वस्थ हो जाना एक सामान्य प्रक्रिया भी है। इन्हें काल के ग्रास से बचाया जा सके, इस हेतु देवताओं में महादेव की पूजा अर्चना को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। यही कारण है कि गंभीर रोगों से स्वयं को बचाए रखने की कामना मन में धारण कर संक्रांति महापर्व के दिन भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक किया जाने का भी प्रावधान है।

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