- पंकज चतुर्वेदी
हम यदि स्वयं को कोई सर्वश्रेष्ठ उपहार देना हो तो कई लोग असमंजस में पड़ जाएंगे कि स्वयं का स्वयं को सर्वश्रेष्ठ उपहार क्या हो सकता है । विद्वान और विज्ञान दोनों ऐसा कहते हैं कि यदि हमने स्वयं को समझ लिया व पहचान लिया तो यह स्वयं का स्वयं को दिया गया सर्वश्रेष्ठ उपहार है। दुनिया भर के गुणा भाग के स्थान पर यदि हम स्वयं के गुणों का योग कर लें। तो जीवन में बहुत कुछ परिवर्तन आ सकता है। स्वयं को यदि पहचान लिया तो फिर आगे बढ़ने के लिए जीवन पथ का चयन सरल होने के साथ-साथ उस पर ध्यान भी केंद्रित हो जाएगा। जहां ध्यान केंद्रित होगा वहां परिणाम भी मिलेंगे।
इसलिए सबसे पहला प्रयास स्वयं को समझने, जानने और पहचानने का करना चाहिए।हम दुनिया को जानने-समझने और पहचानने का भ्रम पाले रहते हैं।किंतु खुद के बारे में ढंग से नहीं समझ पाते।वर्तमान समय के आभासी जगत में इस प्रकार के भ्रम सहजता से किसी को भी हो जाते हैं। यदि अपने गुण,क्षमताओं व योग्यताओं का भान हो जाए। तो फिर दुनिया में हमारा गुणगान सुनिश्चित है। इसलिए स्वयं को स्वयं से जोड़ने का प्रयास करिए।खुद को खुद से जुड़ने के लिए एनर्जी, फ्रीक्वेंसी और वाइब्रेशन इनका विज्ञान बहुत महत्वपूर्ण है। हम सब के पास प्रतिदिन के लिए एक सीमित मात्रा में ऊर्जा का भंडार है । दिन भर के बाद ऊर्जा समाप्त होने लगती है ।तब हम फिर रात्रि विश्राम कर एवं पर्याप्त पोषण ले अपनी ऊर्जा को पुनः प्राप्त करते हैं ।यही जीवन चक्र है।
जैसा ऊर्जा का स्तर वैसे ही वाइब्रेशन और वैसी ही फ्रीक्वेंसी का स्तर और वही जीवन में सफलता का स्तर, यही सिद्धांत है। वास्तव में जिस हम प्रकार धन का ध्यान रखते हैं।उसी प्रकार हमारी सीमित ऊर्जा प्रतिदिन कहां व्यय या निवेश हो रही है,इस पर ध्यान दिया तो जीवन में सफलता सरल हो जाएगी। अर्थशास्त्र की भाषा में एक सिद्धांत है ‘रिटर्न ऑन इन्वेस्टमेंटट’ तो ऊर्जा के लिए भी हमको इस बात का ध्यान रखना है कि हम ऊर्जा कहां लगा रहे हैं।विज्ञान में एक थर्मोडायनेमिक्स का सिद्धांत है। जिसके अनुसार ऊर्जा को ना तो बना जा सकते है। ना ही नष्ट किया जा सकता है।ऊर्जा को सिर्फ परिवर्तित किया जा सकता है। सामान्यतः लोग इस भ्रम में रहते हैं के जीवन व मृत्यु के बीच समय कम है ।समय कम नहीं अपितु समय सीमित है। जीवन सीमित,ऊर्जा सीमित ।किंतु संभावनाएं असीमित।लेकिन कब जब ऊर्जा का व्यय -निवेश सही स्थान पर केंद्रित हो इसके लिए प्रतिदिन पांच से दस मिनट बिस्तर छोड़ने से पूर्व आत्म अवलोकन करें । खुद से संवाद करें। क्या कर रहे हैं। क्यों कर रहे हैं। सार क्या। परिणाम क्या। लक्ष्य क्या। उद्देश्य क्या।
इस सबसे ऊर्जा का निवेश स्वतः ही सही स्थान पर होगा। ऊर्जा मूलता दो ही स्थानों पर व्यय-निवेश होती है। लोगों में या वस्तु में । इन दोनों के अतिरिक्त हमारी ऊर्जा और कहीं नहीं जाती। कुछ लोग हमको अतिरिक्त उर्जा प्रदान कर देते हैं जैसे देवस्थान, संत पुरुष,व आध्यात्मिक केंद्र। वहीं कुछ लोग हमारी ऊर्जा ले लेते हैं। हमें इस बात का ध्यान रखना है कि कोई हमसे हमारी ऊर्जा व्यर्थ में ही ना लेले । कब किन लोगों से मिल रहे हैं। वे ऊर्जा प्रदान करने वाले हैं या ऊर्जा ग्रहण करने वाले, हमको यह पहचानना होगा। थर्मोडायनेमिक्स का विज्ञान हर जगह काम करेगा। ऊर्जा का स्वरूप परिवर्तित होता रहेगा निर्भर करता है कि आपका वास्ता दिन भर में इस प्रकार के लोगों से पड़ रहा है।
शारीरिक ऊर्जा के साथ साथ मानसिक ऊर्जा का भी अविभाज्य पक्ष है। जो मूल रूप से हमारे अवचेतन मस्तिष्क से संबंधित है। जहां बहुत सारी अनुत्तरित भावनात्मक अनुभव है जो हमारी भूतकाल की नकारात्मक यादों का संग्रह है। वास्तव में यह सब अवचेतन में अशुद्धि व नकारात्मकता में वृद्धि कर रहे हैं। स्वयं की इस मानसिक नकारात्मकता से जूझने में भी हमारी बहुत सारी ऊर्जा व्यर्थ जाती है।
अर्थात दूसरों की बाहय नकारात्मकता के साथ-साथ हमारी आंतरिक नकारात्मकता भी हमारी ऊर्जा को नष्ट करती है। इसका सर्वश्रेष्ठ विकल्प यह है कि इस नकारात्मक से संघर्ष कर ऊर्जा अपव्यय के स्थान पर के नाकारात्मक को ही अवचेतन से बाहर फेंक दिया जाए। सुनने में यह कठिन लगता है। पर यदि प्रयास व अभ्यास करेंगे तो सरलता से संभव हो जाएगा।
अवचेतन की जो भी नकारात्मकता है उन बिंदुओं को एक कागज पर लिखकर जलाने और बहाने से भी अवचेतन में शुद्धता आ जाएगी। इस पर सहज विश्वास नहीं होगा। किंतु सत्य यही है । हमें से कितनों ने खुशी, प्यार, शांति, आनंद, उत्सव, दुख व कष्ट को स्पर्श किया है । किसी ने भी नहीं। परंतु फिर भी यह सब हमने अनुभव किए हैं। यानी भावनात्मक रूप से हम सब इनसे परिचित हैं। यदि इन्हीं सब को हम भावनाओं के रूप में किसी कागज पर लिखकर जलाया या बहा देंगे तो निश्चित तौर पर हमारे अवचेतन में शुद्धता का स्थान बढ़ जाएगा। जिस से ऊर्जा का अपव्यय बच जाएगा। जीवन में एक बड़ा संघर्ष हैप्पीनेस यानी प्रसन्नता का है। यह भी स्पर्श नहीं की जा सकती, लेकिन हमेशा अनुभव की जाती है। प्रसन्नता हमारी जीवन शैली का उप उत्पाद है। जीवनशैली हमारी अवचेतन अर्थात मानसिक ऊर्जा और उसके आधार पर शारीरिक ऊर्जा पर निर्भर करती है । जैसे बिजली के लिए सुझाव दिया जाता है कि ‘बिजली की बचत ही बिजली का उत्पादन है’। ऐसे ही हमारी ऊर्जा के लिए भी यही सुझाव है कि ‘ऊर्जा का सही जगह उपयोग ही ऊर्जा के उत्पादन के समतुल्य है’ निर्णय आपका है कि आप उर्जा का व्यय करते हैं या अपव्यय। समझदारी से ही प्रतिदिन की सीमित ऊर्जा से जीवन में असीमित सफलता के परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं।
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